सांवले रंग पर ताने की धमकी से पत्नी ने की थी आत्महत्या, कोर्ट ने कहा- ये क्रूरता नहीं, 27 साल बाद पति को दी राहत

कोर्ट ने 27 साल बाद एक शख्स को बरी कर दिया है. दरअसल अपीलकर्ता की पत्नी ने आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसका पति उसे सांवले रंग को लेकर ताने देता था. इतना ही नहीं, उसे दूसरी शादी के लिए भी धमकाता था. अब इस मामले में कोर्ट ने कहा कि यह क्रूरता नहीं है.;

( Image Source:  AI Perplexity )
Edited By :  हेमा पंत
Updated On : 26 July 2025 12:25 PM IST

महाराष्ट्र के सतारा जिले में एक स्तब्ध कर देने वाली घटना हुई. जहां 27 साल पहले एक महिला ने कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली. उसके इस फैसले ने न सिर्फ उसके परिवार बल्कि उसके पति के जीवन को भी हमेशा के लिए बदल दिया. दरअसल पत्नी के मायके वालों का कहना था कि उसका पति पत्नी के रंग को लेकर बोलता था.

साथ ही, दूसरी शादी करने की धमकी भी देता था. निचली अदालत ने पति को दोषी मानते हुए पांच साल की सजा सुनाई. अब इस मामले में कोर्ट ने शख्स को बरी कर दिया और कहा कि इस तरह की धमकी और टिप्पणी कानून के तहत आपराधिक उत्पीड़न नहीं माने जाते हैं.

ताने मारना अपराध नहीं

सजा के खिलाफ 1998 में पति ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया. करीब तीन दशक बाद, आखिरकार न्यायमूर्ति एस.एम. मोदक की अदालत में इस मामले की अंतिम सुनवाई हुई. जब यह सब कुछ हुआ था, तब व्यक्ति एक चरवाहा था. न्यायमूर्ति मोदक की अध्यक्षता में उच्च न्यायालय ने इस केस को संवेदनशीलता के साथ परखा. उन्होंने माना कि 'वैवाहिक जीवन में झगड़े, तकरार, असहमति ये दुर्भाग्यपूर्ण तो हैं, पर हर बार आपराधिक कानून का मामला नहीं बनते.

क्रूरता का उदाहरण नहीं

अदालत ने इस पर ज़ोर दिया कि पति द्वारा की गई टिप्पणियां गलत थीं, लेकिन कानूनी रूप से आपराधिक उत्पीड़न की श्रेणी में नहीं आती हैं. दूसरी शादी की धमकी और खाने को लेकर ससुर की नाराज़गी, घरेलू कलह के उदाहरण हैं, क्रूरता के नहीं.

कानूनी बिंदुओं पर हुई चूक

न्यायालय ने यह भी कहा कि निचली अदालत ने IPC की धाराओं 498A और 306 के मूल तत्वों को सही तरीके से लागू नहीं किया. न्यायाधीश धाराओं के मूल सिद्धांतों और अवयवों को भूल गए हैं. उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि पति के कथित व्यवहार और पत्नी की आत्महत्या के बीच कोई सीधा संबंध था.

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