फांसी की जगह लीथल इंजेक्शन? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को घेरा, पूछा- मौत की सजा को लेकर क्यों नहीं है विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड के पारंपरिक फांसी के विकल्प के रूप में लीथल इंजेक्शन अपनाने का सुझाव देने पर सरकार की प्रतिक्रिया को नकारात्मक दृष्टि से देखा. याचिका में कहा गया कि फांसी क्रूर और दर्दनाक है, जबकि लेथल इंजेक्शन तेज, मानवतावादी और गरिमापूर्ण है. अदालत ने कहा कि सरकार समय के अनुसार बदलाव अपनाने के लिए तैयार नहीं है और मामले की सुनवाई 11 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई. याचिका ने मृत्युदंड को कम दर्दनाक और सम्मानजनक बनाने की मांग की है.;
Supreme Court on death penalty hanging lethal injection: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की उस आपत्ति पर कड़ी नाराजगी जताई, जिसमें मौत की सजा पाए कैदियों को पारंपरिक फांसी के बजाय लीथल इंजेक्शन चुनने का विकल्प देने का प्रस्ताव खारिज किया गया था. यह मामला एक सार्वजनिक हित याचिका (PIL) से जुड़ा है, जिसमें तर्क दिया गया कि वर्तमान पद्धति कैदियों के लिए अनावश्यक कष्ट और दर्द पैदा करती है.
याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा ने शीर्ष अदालत को बताया कि मृत्युदंड पाने वाले कैदियों को यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि वे फांसी या लीथल इंजेक्शन में से किसे चुनना चाहते हैं. उन्होंने लीथल इंजेक्शन को 'तेज़, मानवीय और गरिमापूर्ण' बताया, जबकि फांसी को 'क्रूर, बर्बर और लंबी खिंचने वाली' पद्धति कहा. वकील ने यह भी कहा कि सैन्य पद्धति में ऐसे विकल्प पहले से मौजूद हैं, तो आम न्यायिक व्यवस्था में क्यों नहीं.
कैदियों को विकल्प देना 'संभव नहीं' है: केंद्र
केंद्र ने इसके जवाब में कहा कि कैदियों को विकल्प देना 'संभव नहीं' है. वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने बताया कि यह निर्णय नीति (Policy) से संबंधित है. इस पर न्यायाधीश विक्रम नाथ और संदीप मेहता ने कहा कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं है और फांसी की पद्धति अब पुराने जमाने की है.
'फांसी में कैदियों को कई मिनटों तक पीड़ा झेलनी पड़ती है'
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि फांसी में कैदियों को कई मिनटों तक पीड़ा झेलनी पड़ती है, जबकि लीथल इंजेक्शन, फायरिंग स्क्वॉड, इलेक्ट्रोकेशन या गैस चैंबर जैसे विकल्प में मृत्यु कुछ ही मिनटों में हो जाती है. उन्होंने कहा कि अमेरिका के 50 राज्यों में से 49 में लेथल इंजेक्शन का इस्तेमाल होता है.
'हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार होना चाहिए'
PIL में यह भी पूछा गया कि CrPC की धारा 354(5) संविधान के अनुच्छेद 21 के खिलाफ है, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देती है, और यह सुप्रीम कोर्ट के गियान कौर मामले के निर्णय का भी उल्लंघन करती है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हर व्यक्ति को गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार होना चाहिए.
11 नवंबर को फिर होगी सुनवाई
फांसी की पद्धति को क्रूर और अमानवीय बताते हुए यह भी कहा गया कि यह संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के खिलाफ है, जो कहता है कि मृत्युदंड का पालन न्यूनतम कष्ट पहुंचाने के तरीके से होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई 11 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी.