'जिंदा लोगों को मृत बताया गया है तो उन्हें जिंदा ले आइए', SC ने कहा - EC के काम में हम करेंगे हस्तक्षेप
बिहार के SIR (मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर कड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने जिंदा लोगों को मृत घोषित करने की घटनाओं पर चिंता जताई और कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो हम चुनाव आयोग के काम में हस्तक्षेप करेंगे. बशर्ते मृत बताए गए लोग जिंदा हैं तो अदालत में आकर अपना बयान दें.;
बिहार में मतदाता सूची गहन पुनरीक्षण अभियान को लेकर बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है. याचिकाकर्ता के आरोपों के मुताबिक कई जिंदा लोगों को सरकारी रिकॉर्ड में मृत घोषित कर दिया गया है, जिससे उन्हें वोटिंग जैसे मूल अधिकार से भी वंचित होना पड़ रहा है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. चुनाव आयोग को भी चेतावनी दी है. कोर्ट ने साफ कहा कि यदि स्थिति नहीं सुधरी, तो हमें दखल देना पड़ेगा.
अदालत ने इस मसले पर सुनवाई के दौरान कहा कि चुनाव आयोग कानूनी तरीके से कार्य करने वाला एक संवैधानिक प्राधिकारी है. अगर बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में "बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने" के प्रमाण मिले तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे.
12 और 13 अगस्त को SIR पर होगी सुनवाई
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार करने के लिए समय-सीमा तय की और कहा कि इस मुद्दे पर सुनवाई 12 और 13 अगस्त को सुनवाई होगी. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि आप 15 ऐसे लोगों को लेकर अदालत में आइए, जिनके बारे में आपका दावा है कि ईसी ने जिंदा लोगों को मृत घोषित कर दिया है. जबकि वे जीवित हैं.
अगर गड़बड़ी है तो हम आपकी बात सुनेंगे
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ने एक बार फिर आरोप लगाया कि चुनाव आयोग द्वारा 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली मसौदा सूची से कुछ लोगों को बाहर रखा जा रहा है और वे अपना महत्वपूर्ण मतदान का अधिकार खो देंगे। भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ने एक बयान जारी किया है कि 65 लाख लोगों ने एसआईआर (SIR) प्रक्रिया के दौरान गणना फॉर्म जमा नहीं किए हैं क्योंकि वे या तो मर चुके हैं या स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं। उन्होंने कहा कि इन लोगों को सूची में शामिल होने के लिए नए सिरे से आवेदन करना होगा।
जस्टिस सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता से कहा, "भारत का चुनाव आयोग, एक संवैधानिक संस्था होने के नाते, कानून के अनुसार कार्य करने वाला माना जाता है. यदि कोई गड़बड़ी होती है, तो आप अदालत के संज्ञान में लाएं. हम आपकी बात सुनेंगे."
वहीं, जस्टिस बागची ने आगे कहा, "आपकी आशंका है कि लगभग 65 लाख मतदाता मसौदा सूची में शामिल नहीं होंगे. अब चुनाव आयोग मतदाता सूची में सुधार की मांग कर रहा है. हम एक न्यायिक संस्था के रूप में इस प्रक्रिया की समीक्षा कर रहे हैं. यदि बड़े पैमाने पर लोगों को सूची से बाहर रखा जाता है, तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे. आप 15 ऐसे लोगों को सामने लाएं जिनके बारे में वे (ईसी) वाले कहते हैं कि वे मृत हैं, जबकि वे जीवित हैं."
65 लाख लोग कौन हैं?
आरजेडी सांसद मनोज झा की ओर से पेश हुए सिब्बल ने कहा कि चुनाव आयोग जानता है कि ये 65 लाख लोग कौन हैं और अगर मसौदा सूची में उनके नाम शामिल हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी. इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "अगर मसौदा सूची में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं लिखा है, तो आप इसे हमारे संज्ञान में लाएं."
चुनाव आयोग की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि मसौदा सूची के प्रकाशन के बाद भी गणना प्रपत्र दाखिल किए जा सकते हैं. पीठ ने याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग से 8 अगस्त तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा. इस मामले में याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग की ओर से लिखित दलीलें/संकलन दाखिल करने के लिए नोडल अधिकारी नियुक्त किए गए हैं.
सूची के प्रकाशन पर रोक से इनकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूची के चल रहे एसआईआर कार्य में "सामूहिक बहिष्कार" के बजाय "सामूहिक समावेश" होना चाहिए और चुनाव आयोग से आधार और मतदाता पहचान पत्र दस्तावेज स्वीकार करना जारी रखने को कहा. दोनों दस्तावेजों की "वास्तविकता की धारणा" पर जोर देते हुए, शीर्ष अदालत ने बिहार में मसौदा मतदाता सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया. बता दें कि मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित होने वाली है.
चुनाव की बढ़ेगी शुद्धता
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में बिहार में मतदाता सूचियों की चल रही एसआईआर को यह कहते हुए उचित ठहराया है कि इससे मतदाता सूची से "अयोग्य व्यक्तियों को बाहर" करने से चुनाव की शुद्धता बढ़ेगी.