कंप्यूटर, पंचायत और करिश्मा... राजीव गांधी ने जो बोया, वो आज भारत काट रहा है, पढ़ें अनसुने किस्से
राजीव गांधी भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री पायलट से नेता बने एक दूरदर्शी शिल्पकार थे. उन्होंने कंप्यूटर और टेलिकॉम क्रांति की नींव रखकर देश को 21वीं सदी की दहलीज़ पर खड़ा किया. ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि वाले राजीव ने पंचायती राज को सशक्त किया, युवाओं को नीति के केंद्र में लाया, और शांति प्रयासों हेतु श्रीलंका में IPKF भेजा, पर बोफोर्स विवाद से घिर गए.;
Rajiv Gandhi Death Anniversary: राजीव गांधी को अक्सर भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बनने के गौरव से पहचाना जाता है, लेकिन उनकी असली पहचान उस बदलाव से जुड़ी है, जिसे उन्होंने चुपचाप लेकिन दृढ़ता से आगे बढ़ाया. जब देश इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उथल-पुथल से जूझ रहा था, तब राजीव एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जिसने राजनीति में तकनीक, साफ-सुथरी छवि और दूरदृष्टि को प्राथमिकता दी. उनकी सोच थी अगर भारत को 21वीं सदी में खड़ा होना है, तो उसे कंप्यूटर, टेलीकॉम और विज्ञान की सीढ़ियां चढ़नी होंगी.
आज जब 21 मई को उनकी पुण्यतिथि पर हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो साफ दिखता है कि राजीव गांधी सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, बल्कि एक ऐसे शिल्पकार थे जिन्होंने आधुनिक भारत की बुनियाद को गढ़ा. उनका विश्वास था कि युवा अगर देश की नीतियों का हिस्सा बनें, तो बदलाव स्थायी और शक्तिशाली होगा. शायद यही कारण है कि आज भी उनके विचार चाहे वो पंचायती राज की बात हो या सूचना क्रांति की भारत के नीति-निर्माताओं और युवाओं के लिए दिशा-प्रदर्शक बने हुए हैं. आइए पढ़ते हैं और अनसुने किस्से...
एविएशन के प्रति गहरा लगाव
राजीव गांधी पायलट बनने के लिए राजनीति में नहीं आए थे. उन्होंने इंग्लैंड के कैम्ब्रिज से पढ़ाई अधूरी छोड़ने के बाद दिल्ली में कमर्शियल पायलट की ट्रेनिंग ली और इंडियन एयरलाइंस में बतौर पायलट ₹5000 मासिक वेतन पर नौकरी शुरू की. यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि वे फ्लाइट शेड्यूल के समय इतने अनुशासित रहते थे कि उन्हें पहचानने वाले अधिकारी भी अक्सर भूल जाते थे कि यह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का बेटा है.
संजय गांधी की मृत्यु ने राजनीति में धकेला
राजीव गांधी राजनीति में आने के इच्छुक नहीं थे. लेकिन 1980 में छोटे भाई संजय गांधी की अचानक प्लेन क्रैश में मौत के बाद इंदिरा गांधी पर राजनीतिक उत्तराधिकारी का दबाव बढ़ गया, और तब उन्होंने भारी मन से राजनीति में प्रवेश किया. इस फैसले ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी.
'मिस्टर क्लीन' की छवि
1980 के दशक में जब भारतीय राजनीति भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी हुई थी, तब राजीव गांधी को उनकी ईमानदारी और साफ-सुथरी छवि के कारण मीडिया ने 'मिस्टर क्लीन' की उपाधि दी थी. पर विडंबना यह रही कि बोफोर्स घोटाले में उनका नाम आने के बाद यही छवि धूमिल हो गई.
तकनीक को लेकर अग्रणी सोच
राजीव गांधी पहले भारतीय प्रधानमंत्री थे जिन्होंने देश में कंप्यूटर और सूचना तकनीक क्रांति की नींव रखी. उस समय जब उनके फैसलों का मजाक उड़ाया जा रहा था कि 'कंप्यूटर बेरोजगारी लाएगा', तब उन्होंने ज़िद के साथ कहा, “हमें 21वीं सदी में प्रवेश करना है, तो तकनीक ही रास्ता है.”
पहली बार गैर-राजनीतिक भाषण में चर्चा
राजीव गांधी का नाम पहली बार देशव्यापी चर्चा में तब आया जब 1971 में बांग्लादेश युद्ध के समय एक छात्र सम्मेलन में उन्होंने अपनी मां के फैसलों का समर्थन करते हुए भाषण दिया. यह भाषण किसी राजनीतिक मंच से नहीं, बल्कि युवाओं के बीच से आया था.
दोस्तों को अंतिम सांस तक नहीं छोड़ा
राजीव गांधी अपने पुराने पायलट दोस्तों से प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मिलते रहते थे. उन्होंने कभी अपने पुराने साथियों से दूरी नहीं बनाई. उनके दोस्त बताते हैं कि वे अचानक फोन कर लेते थे, और कहते थे, "चलो, पुराने दिनों की चाय हो जाए.”
होमी जहांगीर भाभा से प्रेरणा
राजीव गांधी बचपन में वैज्ञानिक बनना चाहते थे और परमाणु वैज्ञानिक होमी भाभा से बहुत प्रभावित थे. वे अक्सर उनके लेक्चर में बैठते थे और विज्ञान को समझने की कोशिश करते थे. हालांकि उनका करियर दूसरा मोड़ ले गया.
सोनिया गांधी को खुद खाना बनाना सिखाया
विदेश में पढ़ाई के दौरान राजीव और सोनिया गांधी को कई बार आर्थिक तंगी झेलनी पड़ी. ऐसे में राजीव ने खुद खाना बनाना सीखा और सोनिया को भी सिखाया. दोनों अपने छोटे से फ्लैट में मिलकर खाना पकाते थे.
राजीव का संगीत प्रेम
राजीव गांधी को वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक बहुत पसंद था. वे बीथोवेन और मोजार्ट को सुनते हुए आराम करते थे. यहां तक कि वे कई बार तनाव के समय भी अपने पुराने रिकॉर्ड प्लेयर से संगीत बजाकर खुद को शांत करते थे.
देश का सबसे युवा प्रधानमंत्री
राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने तब उनकी उम्र मात्र 40 वर्ष थी. वे भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने और यह रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ सका. उनकी यह युवा छवि उन्हें छात्रों और युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बनाती थी.
शिक्षा के लिए कम्प्यूटरीकरण अभियान
वे स्कूलों में कंप्यूटर लाने वाले पहले नेता थे. उनके प्रयास से 1986 में नई शिक्षा नीति लाई गई जिसमें कंप्यूटर साक्षरता को बढ़ावा देने की बात कही गई थी. यह एक क्रांतिकारी कदम था जिसे उस समय बहुत आलोचना झेलनी पड़ी.
शांति का पैगाम लेकर श्रीलंका गए
1987 में उन्होंने भारत-श्रीलंका समझौता किया और IPKF (Indian Peace Keeping Force) को श्रीलंका भेजा ताकि वहां के तमिलों और सरकार के बीच शांति कायम हो सके. यह मिशन विवादों में घिर गया लेकिन राजीव ने शांति की कोशिशें नहीं छोड़ीं.
'हिन्दुस्तान' शब्द के मायने पर भाषण
एक बार संसद में एक चर्चा के दौरान राजीव गांधी ने "हिन्दुस्तान" शब्द की व्याख्या करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक भूगोल नहीं, बल्कि एक विचार है. विविधता में एकता का विचार. उनका यह भाषण बाद में कई पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया.
‘मैं मरने से नहीं डरता’
21 मई 1991 को उनकी हत्या से ठीक पहले उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था, “मुझे मौत का डर नहीं है, क्योंकि मेरा जीवन इस देश के लिए समर्पित है.” यह उनके जीवन का अंतिम सार्वजनिक संदेश बना.
हर साल गरीब बच्चों को खुद किताबें भेजते थे
प्रधानमंत्री रहते हुए भी राजीव गांधी कुछ स्कूलों में पढ़ रहे गरीब बच्चों की लिस्ट खुद मंगवाते थे और उन्हें साल की शुरुआत में किताबें और स्टेशनरी भिजवाते थे. यह काम वे बिना किसी प्रचार के करते थे.