बिहार में फिल्म 'फुले' के जरिए क्या संदेश देना चाहते हैं कांग्रेस नेता राहुल गांधी?
बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने जातीय समीकरण साधने की रणनीति तेज कर दी है. राहुल गांधी 15 मई को पटना में दलित छात्रों के साथ 'फुले' फिल्म देखेंगे और दरभंगा में जनसभा करेंगे. कांग्रेस इसे प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर सीधा हस्तक्षेप मान रही है. पार्टी का लक्ष्य है 17% दलित वोटों को साधकर अपनी पुरानी जमीन वापस पाना.;
बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है, राजनीतिक सरगर्मियां भी तेज होती जा रही हैं. खासकर कांग्रेस ने इस बार अपने पुराने जनाधार को फिर से जाग्रत करने की ठानी है. राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी सामाजिक न्याय के एजेंडे को केंद्र में रखते हुए जातिगत समीकरणों में अपनी पकड़ मज़बूत करने की दिशा में बढ़ रही है.
राहुल गांधी का 15 मई का बिहार दौरा केवल प्रचार का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि रणनीतिक संकेत भी दे रहा है. पटना में वे दलित और पिछड़े वर्ग से संवाद करेंगे, सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ 'फुले' फिल्म देखेंगे और दरभंगा में जनसभाओं को संबोधित करेंगे. पार्टी इसे प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि सामाजिक मुद्दों पर सीधे हस्तक्षेप मान रही है.
‘फुले’ फिल्म से क्या संदेश देगी कांग्रेस?
राहुल गांधी पटना में अपने दौरे की शुरुआत सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों के साथ ‘फुले’ फिल्म देखने से करेंगे. यह फिल्म महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है, जो जातिवादी व्यवस्था के खिलाफ उनके संघर्ष को चित्रित करती है. इस पहल के जरिए राहुल गांधी न केवल सामाजिक न्याय का संदेश देने की कोशिश करेंगे, बल्कि दलित और पिछड़ा वर्ग के युवाओं से प्रत्यक्ष जुड़ाव भी स्थापित करेंगे. कांग्रेस के 50 से अधिक नेता इस दिन बिहार के विभिन्न इलाकों में कार्यक्रमों में शामिल होंगे. इसे कांग्रेस के व्यापक संगठनात्मक प्रदर्शन के रूप में देखा जा रहा है.
दलित वोटबैंक को साधने की रणनीति
राहुल गांधी इस बार खासतौर पर दलित वोटबैंक को साधने की रणनीति के तहत बिहार का दौरा कर रहे हैं. कांग्रेस का लक्ष्य प्रदेश के 17 प्रतिशत दलित मतदाताओं को अपने पाले में लाना है. यह राहुल गांधी की पिछले पांच महीनों में चौथी बिहार यात्रा है, जिससे पार्टी की इस वोट बैंक के प्रति गंभीरता झलकती है. दलित युवाओं से संवाद, सामाजिक आयोजनों में भागीदारी और सिनेमा देखने जैसे कार्यक्रम इस दौरे की खासियत है.
राजद पर भी दबाव
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, राहुल गांधी की यह सक्रियता सिर्फ मतदाताओं को साधने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजद पर दबाव बनाने की रणनीति का भी हिस्सा है. सूत्र बताते हैं कि सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और राजद के बीच मतभेद हैं. कांग्रेस पिछली बार की तरह 70 सीटों की मांग कर रही है, जबकि राजद इसे 50-60 तक सीमित रखना चाहती है.
पुरानी जमीन पाना चाहती है कांग्रेस
राहुल गांधी की इस चुनावी रणनीति में एक और बड़ा संदेश छिपा है. कांग्रेस अब बिहार में अपनी पुरानी जमीन वापस पाना चाहती है. कांग्रेस के कुछ नेता तो यहां तक कह रहे हैं कि अगर सम्मानजनक सीटें नहीं मिलीं, तो पार्टी सभी सीटों पर अकेले भी लड़ने का जोखिम उठा सकती है. उनका मानना है कि इससे कांग्रेस को दीर्घकालिक तौर पर बिहार में पैरों पर खड़े होने में मदद मिलेगी. हालांकि, कांग्रेस के लिए यह राह आसान नहीं होगी। राज्य में आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी जैसी क्षेत्रीय ताकतें पहले से मौजूद हैं जिनका मजबूत सामाजिक आधार है. आरजेडी का 'माय' समीकरण यानी मुस्लिम-यादव के साथ दलित समुदाय में भी प्रभाव है. ऐसे में राहुल गांधी को यह भी चुनौती है कि वे कैसे इस मजबूत सामाजिक ताने-बाने में सेंध लगा पाएंगे.
क्या है फिल्म 'फुले' की कहानी?
सन् 1848 से 1897 तक की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में बनी यह फिल्म समाज सुधारकों ज्योतिराव फुले (प्रतीक गांधी) और सावित्रीबाई फुले (पत्रलेखा) को समर्पित है. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे फूलों की खेती करने वाले एक साधारण व्यक्ति ज्योतिबा ने सामाजिक असमानता और जातिवाद के खिलाफ एक असाधारण संघर्ष छेड़ा. उस दौर में जब महज 13 साल की उम्र में बेटियों की शादी कर दी जाती थी, तब फुले दंपति ने लड़कियों को शिक्षा देने का संकल्प लिया. उन्होंने न केवल समाज की आलोचना झेली, बल्कि अपमान, हिंसा और बहिष्कार जैसी कठिनाइयों का भी डटकर सामना किया.
फिल्म में यह भी उजागर किया गया है कि किस तरह ज्योतिबा फुले, फ्रांस की क्रांति से प्रभावित होकर एक समतामूलक समाज की कल्पना में विश्वास रखते थे और जीवनभर उसी लक्ष्य की पूर्ति में जुटे रहे. इस संघर्ष में सावित्रीबाई फुले ने भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया और भारत की पहली महिला शिक्षिका बनकर नारी शिक्षा की अलख जगाई. ‘फुले’ सिर्फ एक बायोपिक नहीं, बल्कि सामाजिक जागरूकता और परिवर्तन का सशक्त दस्तावेज है, जो आज भी समानता, शिक्षा और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे लोगों को प्रेरित करता है.