‘राजा बेटा’ सिंड्रोम पर हाई कोर्ट का प्रहार, रेप-हत्या के आरोपी को 30 साल की सजा, कहा - 'मां की ममता अंधी हो सकती है, इंसाफ नहीं’
पंजाब–हरियाणा हाई कोर्ट ने रेप-हत्या के आरोपी को 30 साल की सजा सुनाते हुए ‘राजा बेटा’ मानसिकता पर कड़ा प्रहार किया. कोर्ट ने कहा - मां की ममता अंधी हो सकती है, लेकिन इंसाफ नहीं. हालांकि, कोर्ट ने कहा कि मां की गलती यह थी कि वह अपने "राजा-बेटे" को बचाने की कोशिश कर रही थी, जिसके लिए उसे सजा नहीं दी जा सकती. हालांकि, उसके कृत्य निंदनीय हैं.;
भारतीय समाज में ‘राजा बेटा’ सिर्फ एक शब्द नहीं, बल्कि वह मानसिकता है, जो कई बार अपराध को भी ममता की आड़ में सही ठहराने की कोशिश करती है. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने समाज की सदियों पुरानी इस सोच पर तीखा प्रहार करते हुए रेप और हत्या के दोषी को व्यक्ति को 30 साल की कठोर सजा सुनाई है. ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अदालत ने बेहद भावुक लेकिन सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, “मां की ममता अंधी हो सकती है, लेकिन इंसाफ नहीं.”
हाई कोर्ट ने साफ किया कि कोई भी अपराधी सिर्फ इसलिए दया का पात्र नहीं बन सकता क्योंकि वह किसी मां या बाप का 'राजा बेटा' है. यह फैसला न केवल पीड़िता के लिए न्याय है, बल्कि उस सामाजिक सोच के खिलाफ भी चेतावनी है जो माताएं अपने राजा बेटों को कानून से ऊपर मान लेती हैं.
'राजा बेटा' सिंड्रोम से जुड़े एक मामले में पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने एक नाबालिग के रेप और हत्या के दोषी एक व्यक्ति को 30 साल की जेल की सजा मुकर्रर की है. बेंच ने कहा कि 'भारत के इस हिस्से में', परिवार के सदस्य, खासकर माताएं, अक्सर 'कीमती' बेटों के लिए अंधा प्यार दिखाती हैं.
इतना ही नहीं, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के जस्टिस अनूप चिटकारा और सुखविंदर कौर ने कहा कि दूसरे बच्चों और महिलाओं को बचाने के लिए, दोषी को तब तक जेल की चार दीवारों के अंदर रहना चाहिए, जब तक कि वह अपनी मर्दानगी के ढलने के करीब न पहुंच जाए. यह मामला 2018 में एक नाबालिग लड़की के रेप और हत्या से जुड़ा है.
देना होगा 30 लाख रुपये जुर्माना
जस्टिस अनूप चिटकारा और सुखविंदर कौर एक मां-बेटे की जोड़ी की अपील सुन रहे थे, उन्हें पांच साल की नाबालिग लड़की से जुड़े रेप और हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था. कोर्ट ने दोषी पर 30 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया, जो बच्चे के परिवार को दिया जाएगा.
क्या है पूरा मामला?
31 मई, 2018 को नाबालिग लड़की के साथ उसके पिता के कर्मचारी ने बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी. उसके पिता एक छोटे-मोटे टेंट लगाने का काम करते थे और आरोपी लगभग पांच-छह साल से उनके साथ काम कर रहा था. आरोपी कथित तौर पर नाबालिग को अपने घर ले गया, जहां उसने रसोई के चाकू से उसके साथ बलात्कार किया और उसकी हत्या कर दी. इसके बाद उसके शव को एक बड़े रसोई के बर्तन में छिपा दिया.
लड़की घर से गायब होने की जब तलाश शुरू हुई तो कुछ ग्रामीणों बताए कि उन्होंने नाबालिग को आरोपी को ले जाते हुए देखा था. इसकी सूचना मिलने पर सीसीटीवी लगे स्कूल के मालिक से संपर्क किया गया. वीडियो रिकॉर्डिंग में आरोपी को नाबालिग का हाथ पकड़कर उसे ले जाते हुए पाया गया. परिवार के सदस्य अन्य लोगों के साथ आरोपी के घर पहुंचे, जहां उसकी मां मौजूद थी.
मां को क्यों माना दोषी?
दरअसल, पुलिस ने नाबालिग पीड़िता और आरोपी के बारे में पूछताछ की, तो उसने उनकी उपस्थिति से इनकार कर दिया, लेकिन जब उन्होंने अंदर जाने की कोशिश की, तो उसने उन्हें अंदर नहीं घुसने दिया. बच्ची के चचेरे भाई-बहनों में से एक ने परिसर में एक डिब्बा पड़ा हुआ देखा और उसी में बच्ची का शव मिला.
मां द्वारा अपने बेटे को बचाने की कोशिश को देखते हुए, हाई कोर्ट ने कहा कि सामाजिक रवैया, हालांकि, भयानक था, लेकिन यह नया नहीं था. कोर्ट ने कहा, "मां को जब पता चला कि उसका राजा-बेटा उतना सीधा नहीं है जितना उसके नाम से लगता है, और उसने पांच साल की एक बच्ची पर हमला करके उसे बेरहमी से मार डाला है, तो उसने पुलिस को बताने या बच्ची के लिए इंसाफ मांगने के बजाय अपने बेटे को बचाने को ज्यादा अहमियत दी."
मां को सभी आरोपों से बरी करते हुए, कोर्ट ने कहा कि उसकी एकमात्र गलती यह थी कि वह अपने "राजा-बेटे" को बचाने की कोशिश कर रही थी, जिसके लिए उसे सजा नहीं दी जा सकती; हालाँकि, उसका आचरण निंदनीय हो सकता है. वहीं आरोपी की मौत की सजा को 30 साल में बदलते हुए, कोर्ट ने कहा कि सभी दंडात्मक उपायों को फांसी की टोकरी में डालना सही नहीं होगा.
इससे पहले 24 जनवरी, 2020 को ट्रायल कोर्ट ने मां-बेटे दोनों को दोषी ठहराया और आरोपी को मौत की सजा सुनाई. जबकि उसकी मां को सात साल की कड़ी कैद की सजा सुनाई गई. मां और बेटे ने बाद में हाई कोर्ट में अपनी सजा को चुनौती दी.
मां-बेटे के खिलाफ इन धाराओं में मुकदमा दर्ज
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आरोपी पर IPC की धारा 302 (हत्या), 376 (रेप), 120-B (आपराधिक साजिश), 366 (अपहरण, अगवा करना या महिला को शादी के लिए मजबूर करना, आदि), 363 (अपहरण), 201 (अपराध के सबूत मिटाना, या अपराधी को बचाने के लिए झूठी जानकारी देना) और प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट, 2012 की धारा 6 (गंभीर यौन हमला) के तहत मामला दर्ज किया गया.
पुलिस ने आरोपी की मां पर भी धारा 120-B (आपराधिक साजिश), 366 (अपहरण, अगवा करना या महिला को शादी के लिए मजबूर करना, आदि), 363 (अपहरण), 201 (अपराध के सबूत मिटाना, या अपराधी को बचाने के लिए झूठी जानकारी देना) के तहत मामला दर्ज किया था.