सबूत नहीं, तो केस नहीं! मंदिर में इस्लाम का प्रचार- प्रसार करना गलत या सही....HC ने ये कहकर रद्द किया FIR

दिल्ली हाईकोर्ट ने उस एफआईआर को खारिज कर दिया जिसमें कुछ मुस्लिम युवकों पर मंदिर में इस्लाम के प्रचार-प्रसार का आरोप लगाया गया था. कोर्ट ने साफ कहा कि "केवल धार्मिक पहचान के आधार पर किसी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, जब तक कोई ठोस सबूत न हो.;

( Image Source:  Sora_ AI )
By :  सागर द्विवेदी
Updated On : 25 July 2025 12:25 AM IST

कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में तीन मुस्लिम युवकों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है. इन पर आरोप था कि उन्होंने एक हिंदू मंदिर परिसर में इस्लाम धर्म की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले पर्चे बांटे और मौखिक रूप से अपनी धार्मिक मान्यताओं की व्याख्या की. अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक किसी व्यक्ति को धर्मांतरण के लिए बाध्य करने का ठोस प्रमाण नहीं हो, तब तक इस तरह की गतिविधियां अपराध की श्रेणी में नहीं आतीं.

यह मामला बागलकोट जिले के जामखंडी स्थित रामतीर्थ मंदिर से जुड़ा है. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 4 मई 2025 की शाम, मंदिर परिसर में तीन मुस्लिम युवक इस्लामिक शिक्षाओं का प्रचार कर रहे थे और हिंदू धर्म पर कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणियां भी कीं. लेकिन हाई कोर्ट ने यह कहते हुए एफआईआर रद्द कर दी कि प्रचार करना अपराध नहीं है, जब तक धर्मांतरण की मंशा साबित न हो.

कोर्ट ने क्यों रद्द की एफआईआर?

जस्टिस वेंकटेश नाइक टी की एकल पीठ ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 299, 351(2) और 3(5) के साथ-साथ कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2022 की धारा 5 के तहत लगाए गए आरोप साबित नहीं होते. अदालत के अनुसार, “याचिकाकर्ताओं द्वारा किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में बदलने का कोई प्रयास नहीं किया गया, इसलिए यह कार्रवाई इन धाराओं के तहत अपराध नहीं मानी जा सकती.

आरोप क्या थे?

शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि जब वह रामतीर्थ मंदिर गया, तब मंदिर परिसर में तीन युवक इस्लामिक शिक्षा का प्रचार कर रहे थे. उनके अनुसार, युवकों ने “हिंदू धर्म की आलोचना की और अपमानजनक बातें कहीं.” इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मुस्लिम युवकों ने मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं को इस्लाम अपनाने पर गाड़ी देने और दुबई में नौकरी दिलाने का लालच भी दिया.

याचिकाकर्ताओं की दलील

तीनों मुस्लिम युवकों ने हाई कोर्ट में एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ इस्लाम और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं का प्रचार किया था.उनके वकील ने कोर्ट में कहा, “याचिकाकर्ताओं पर लगाए गए आरोपों से स्पष्ट नहीं होता कि उन्होंने किसी को धर्मांतरण के लिए बाध्य किया। न ही कोई सबूत है जिससे यह सिद्ध हो कि वे किसी व्यक्ति को इस्लाम कबूल करवाने का प्रयास कर रहे थे.

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने माना कि “सिर्फ धार्मिक पर्चे बांटना या मौखिक रूप से किसी धर्म की व्याख्या करना तब तक अपराध नहीं है जब तक जबरन धर्मांतरण या किसी तरह का प्रलोभन देने का स्पष्ट प्रमाण न हो. न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि आरोपियों की नीयत धर्म परिवर्तन की नहीं थी, बल्कि वे केवल धार्मिक जानकारी साझा कर रहे थे.

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