जब भारत ने दुनिया को चौंकाया, पोखरण में गूंजा Smiling Buddha; जानिए कैसे हुआ भारत का पहला परमाणु परीक्षण

18 मई 1974 को भारत ने राजस्थान के पोखरण परीक्षण स्थल पर अपना पहला सफल परमाणु परीक्षण किया, जिसे 'ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा' नाम दिया गया. इस परीक्षण के साथ भारत दुनिया की छठी परमाणु शक्ति बन गया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में किया गया यह परीक्षण भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों और आत्मनिर्भरता का प्रतीक बना. इस ऐतिहासिक घटना ने भारत की रक्षा नीति और अंतरराष्ट्रीय छवि में बड़ा बदलाव लाया.;

By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 18 May 2025 6:50 AM IST

What is Smiling Buddha, Pokhran Test 18 May 1974: भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव के बीच भारत के लिए वो यादगार दिन भी आ गया, जब 18 मई को भारत अपने पहले परमाणु परीक्षण 'स्माइलिंग बुद्धा' की वर्षगांठ मना रहा है. वर्ष 1974 में इसी दिन राजस्थान के पोखरण में भारत ने अपने रणनीतिक संकल्प का परिचय देते हुए दुनिया को बताया था कि वह न सिर्फ शांति का समर्थक है, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर निर्णायक प्रतिक्रिया देने में भी सक्षम है. आज, जब पाकिस्तान बार-बार आतंकी गतिविधियों के माध्यम से भारत की सहनशीलता को परख रहा है, तब 'स्माइलिंग बुद्धा' जैसे कदम की ऐतिहासिक प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. यह परीक्षण केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं था, बल्कि यह भारत की सुरक्षा नीति का स्तंभ बना.

आज जब भारतीय सेना सीमाओं पर चौकन्नी है और सरकार 'जीरो टॉलरेंस' की नीति पर अडिग है, तब पोखरण की वह गूंज एक बार फिर रणनीतिक चेतावनी बनकर उभरती है कि भारत शांति चाहता है, लेकिन कमजोर नहीं है.

क्या है स्माइलिंग बुद्धा?

18 मई 1974 को भारत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में अपना पहला परमाणु परीक्षण पोखरण में किया. इस परीक्षण का कोड नाम स्माइलिंग बुद्धा (Smiling Buddha) रखा गया, क्योंकि इस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी. यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन था, क्योंकि वह अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के बाद दुनिया का छठा परमाणु शक्ति संपन्न देश बना. भारत ने इसे शांतिपूर्ण उद्देश्य वाला परीक्षण बताया. यह परीक्षण भारत की तकनीकी और रणनीतिक ताकत का प्रतीक बना.

कैसे हुआ परीक्षण?

यह एक भूमिगत परमाणु विस्फोट था, जिसकी तीव्रता 8 से 12 किलोटन के बीच मानी गई. इस परीक्षण का नेतृत्व डॉ. राजा रामन्ना, डॉ. होमी सेठना और डॉ. अय्यंगार जैसे वैज्ञानिकों ने किया. इसमें डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम भी शामिल थे. यह परीक्षण बेहद गोपनीय तरीके से किया गया था. इसका उद्देश्य भारत की आत्मनिर्भरता और वैज्ञानिक क्षमता को दिखाना था.

क्यों जरूरी था परमाणु परीक्षण?

1962 में चीन और 1971 में पाकिस्तान से हुए युद्धों ने भारत को यह सिखाया कि सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर बनना ज़रूरी है. परमाणु क्षमता एक रणनीतिक ढाल बन सकती थी. इंदिरा गांधी सरकार ने इस दिशा में बड़ा कदम उठाया. यह भारत की सुरक्षा नीति को मजबूत करने वाला निर्णय था. इससे देश को वैश्विक स्तर पर नई पहचान मिली.

दुनिया ने कैसे प्रतिक्रिया दी?

इस परीक्षण के बाद अमेरिका और कनाडा जैसे देशों ने भारत की आलोचना की. कनाडा ने भारत को परमाणु सहायता देना बंद कर दिया. यह परीक्षण NPT (परमाणु अप्रसार संधि) के विरोध में एक संकेत था. भारत ने साफ किया कि वह संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा. भारत आज तक NPT पर हस्ताक्षर नहीं कर पाया है.

आज का महत्व क्या है?

हर साल 18 मई को यह दिन भारत के लिए गर्व का प्रतीक माना जाता है. यह दिखाता है कि भारत विज्ञान और तकनीक के ज़रिए अपनी रक्षा और शांति नीति को संतुलित कर सकता है. ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा ने रास्ता दिखाया कि भारत आत्मनिर्भर होकर भी जिम्मेदार परमाणु शक्ति बन सकता है. इसने भविष्य की नीति की नींव रखी. यही से भारत की परमाणु नीति और परीक्षणों की शुरुआत मानी जाती है.

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