मिसाइल नहीं... दुश्मनों का काल है भारत का 'सुदर्शन चक्र', IADWS टेस्ट ने दिखाई वायु रक्षा की नई ताकत, जानें खासियत
भारत ने ओडिशा से Integrated Air Defence Weapon System (IADWS) का सफल परीक्षण किया. इसमें QRSAM, VSHORADS और Directed Energy Weapons शामिल हैं. यह प्रणाली दुश्मन के फाइटर जेट, ड्रोन, हेलिकॉप्टर और बैलिस्टिक मिसाइल तक को नष्ट कर सकती है. IADWS को ‘सुदर्शन चक्र’ कहा जा रहा है, जो भारत की रक्षा क्षमता को नई ऊंचाई पर ले गया है.;
23 अगस्त 2025 को ओडिशा के चांदीपुर टेस्ट रेंज से भारत ने Integrated Air Defence Weapon System (IADWS) का पहला सफल परीक्षण किया. यह सिस्टम भारत की सुरक्षा रणनीति में अब तक का सबसे बड़ा अपग्रेड माना जा रहा है. यह सिर्फ एक मिसाइल सिस्टम नहीं बल्कि एक पूर्ण एयर डिफेंस शील्ड है जो दुश्मन के फाइटर जेट, ड्रोन, हेलिकॉप्टर, बैलिस्टिक मिसाइल और यहां तक कि स्टील्थ टेक्नोलॉजी वाले टारगेट को भी खत्म कर सकता है.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस परीक्षण को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह बहुस्तरीय रक्षा क्षमता की पुष्टि करता है. उन्होंने कहा कि अब भारत की महत्वपूर्ण सुविधाएं और सीमाएं दुश्मन के हवाई हमलों से और अधिक सुरक्षित होंगी.
IADWS क्या कर सकता है?
IADWS को खास तौर पर इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह एक साथ कई स्तरों पर हवाई खतरों से निपट सके.
- पहला स्तर: नजदीकी हमलों से बचाव (VSHORADS)
- दूसरा स्तर: मध्यम दूरी के हवाई खतरों को रोकना (QRSAM)
- तीसरा स्तर: हाई-टेक लेजर वेपन (DEW) जो पल भर में टारगेट जला सकता है.
इसका मतलब यह हुआ कि दुश्मन का कोई भी विमान या मिसाइल भारत की सीमा के अंदर पहुंचने से पहले ही नष्ट किया जा सकेगा.
अंतरराष्ट्रीय तुलना
रूस का S-500 Prometheus आज दुनिया की सबसे एडवांस्ड एयर डिफेंस प्रणाली मानी जाती है. वहीं अमेरिका के पास F-35 और Su-57 जैसे स्टील्थ फाइटर हैं जिन्हें पकड़ना मुश्किल होता है. लेकिन भारत का IADWS इन्हें चुनौती देता है क्योंकि इसमें AI-सक्षम ट्रैकिंग सिस्टम और लेजर वेपन है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इसे पूरी तरह से तैनात कर दिया गया तो यह न सिर्फ भारत बल्कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र की शक्ति-संतुलन की तस्वीर बदल देगा.
सुदर्शन चक्र की क्षमता
DRDO ने इस प्रोजेक्ट का नाम “सुदर्शन चक्र” रखा है. इसका सीधा मतलब है – दुश्मन चाहे कहीं से हमला करे, यह प्रणाली उसे काट देगी.
- रेंज: 2500 किमी तक
- ऊंचाई पर इंटरसेप्ट: 150 किमी
- खासियत: AI, लेजर गाइडेंस, सैटेलाइट सपोर्ट
- स्पीड: मैक 5 तक (यानी ध्वनि की गति से 5 गुना)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे "भारत का सुरक्षा कवच" बताते हुए कहा कि आने वाले समय में यह प्रणाली न सिर्फ भारत की सीमाओं बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र तक के हवाई क्षेत्र को सुरक्षित बनाएगी.
QRSAM: मध्यम दूरी का प्रहरी
QRSAM (Quick Reaction Surface to Air Missile) का सबसे बड़ा फायदा है कि यह 30 किमी तक के हवाई खतरे को तुरंत खत्म कर देता है. इसमें ड्यूल-स्टेज सॉलिड फ्यूल मोटर है और यह किसी भी मौसम में काम कर सकता है.
- स्पीड: मैक 4.7 (करीब 5758 किमी/घंटा)
- ऊंचाई: 98 फीट से 33 हजार फीट तक
- तकनीक: स्वदेशी RF Seeker
इसका इस्तेमाल दुश्मन के फाइटर जेट और हेलिकॉप्टर को गिराने में किया जाएगा.
VSHORADS: नजदीकी दुश्मन का दुश्मन
VSHORADS (Very Short Range Air Defence System) को सैनिक अपने कंधे पर भी ले जा सकते हैं. यह हल्का लेकिन बेहद शक्तिशाली हथियार है.
- रेंज: 6 किमी तक
- ऊंचाई: 11,500 फीट तक
- टारगेट: ड्रोन, हेलिकॉप्टर, निचली उड़ान भरने वाले फाइटर जेट
- स्पीड: मैक 1.5 (1800 किमी/घंटा)
सीमा पर इसे सैनिक आसानी से ऑपरेट कर सकते हैं, जिससे पाकिस्तान और चीन की तरफ से आने वाले ड्रोन हमले बेअसर हो जाएंगे.
DEW: भविष्य की घातक तकनीक
IADWS का असली मास्टरस्ट्रोक है Directed Energy Weapon (DEW). यह हाई पावर लेजर से काम करता है. इसमें कोई मिसाइल नहीं दागी जाती बल्कि लेजर बीम सीधा टारगेट को जलाकर खत्म कर देता है.
- फायदे: कोई मिसाइल खर्च नहीं, टारगेट तुरंत नष्ट
- नुकसान: इसे चलाने के लिए हाई पावर एनर्जी सोर्स चाहिए
- भविष्य: DRDO आने वाले 10 सालों में इसे और मजबूत बनाने पर काम कर रहा है
रणनीतिक महत्व
भारत का यह कदम सिर्फ तकनीकी उन्नति नहीं बल्कि रणनीतिक संदेश भी है. चीन पहले से अपनी एयर डिफेंस प्रणाली (HQ-9B) पर काम कर रहा है और पाकिस्तान को भी उससे तकनीकी मदद मिल रही है. लेकिन IADWS के आने के बाद भारत की वायु सीमाएं अब और ज्यादा सुरक्षित हो गई हैं.
2017 से शुरू हुई यात्रा
यह प्रोजेक्ट 2017 में शुरू हुआ था जब भारत ने पहली बार QRSAM और VSHORADS पर काम शुरू किया. 2025 आते-आते इन्हें एकीकृत कर दिया गया और अब यह दुनिया की सबसे एडवांस्ड एयर डिफेंस शील्ड बन गई है. इसमें DRDO, BEL, ISRO और कई निजी कंपनियों का योगदान रहा.
भारत का भविष्य
अगर IADWS को बड़े पैमाने पर तैनात किया गया तो भारत रक्षा तकनीक में आत्मनिर्भर हो जाएगा. यह प्रणाली आने वाले समय में निर्यात के लिए भी इस्तेमाल हो सकती है. विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत अब न सिर्फ अपने लिए बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका जैसे देशों को भी यह तकनीक बेच सकता है. इससे भारत का रक्षा बाज़ार और मजबूत होगा.