Greater Noida Nikki Dowry Death: निक्की की संदिग्ध मौत में दूध का धुला कोई नहीं, वह सामाजिक ‘कैंसर’ की भेंट चढ़ी - किरन बेदी

ग्रेटर नोएडा में निक्की भाटी की संदिग्ध मौत पर देश की पहली महिला आईपीएस और पूर्व उप-राज्यपाल किरन बेदी ने समाज, परिवार और पंचायतों को कठघरे में खड़ा किया. उन्होंने कहा कि निक्की दहेज जैसी सामाजिक ‘कैंसर’ की शिकार हुई और इसमें ससुराल के साथ-साथ उसके मायके और समाज भी जिम्मेदार हैं. बार-बार प्रताड़ना के बावजूद बेटी को ससुराल भेजना बड़ी गलती थी. बेदी ने कहा, यह हत्या है या आत्महत्या, जांच तय करेगी, लेकिन घटना ने समाज की कुरीतियों की पोल खोल दी है.;

“दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में निक्की भाटी की उसकी ससुराल में हुई संदिग्ध मौत को अभी हत्या कहना गलत है. पुलिस जांच पूरी होने पर ही यह तय होगा कि निक्की ने खुद आग लगाकर आत्महत्या की है या फिर उसे किसी अन्य ने साजिशन जलाकर मारा है. मीडिया और पीड़िता का परिवार अभी से हत्या-हत्या का शोर मचा रहे हैं, जोकि सरासर गलत है. जहां तक सवाल इस कांड के सामने आने का है, तो इसके लिए मैं तो सीधे तौर पर आज के मौजूदा समाज, निक्की के परिवार को भी सबसे पहले जिम्मेदार मानती हूं.''

''निक्की की संदिग्ध मौत के पीछे कारण अगर दहेज की डिमांड निकलेगा तो समझ लीजिए, यह प्रथा भारतीय समाज में कैंसर की बीमारी से ज्यादा खतरनाक है. कैंसर बीमारी का इलाज तो संभव है. मगर इस दहेज प्रथा के रूप में समाज में मौजूद कैंसर को खत्म करने में अभी हमारी आने वाली कम से कम दो-तीन पीढ़ियां मर-खप चुकी होंगीं. हालांकि मैं अभी निक्की की मौत वजह पर तो कुछ नहीं बोलूंगी. बस इतना जरूर देख रही हूं मीडिया में कि निक्की के मायके वालों का आरोप है कि उसकी ससुराल वाले कीमती कार और दहेज के लिए उसे अक्सर प्रताड़ित करते थे. अगर यह बात सही है तो जितने दोषी निक्की के ससुराल वाले दहेज मांगने के लिए हैं. उससे ज्यादा दोषी मैं निक्की के मां-बाप और परिवार को मानती हूं. उन्होंने दहेज देकर शादी की ही क्यों?”

मनमुटाव के बावजूद निक्‍की के घरवाले उसे बार-बार ससुराल भेजते ही क्‍यों थे?

यह तमाम बेबाक बातें बेखौफ होकर बयान की हैं हमेशा खरा-खरा बोलने के लिए चर्चित किरन बेदी ने, जो 1972 बैच की दबंग और भारत की पहली महिला आईपीएस व पुदुचेरी की पूर्व उप-राज्यपाल हैं. दिल्ली से बेंगलुरु जाते वक्त रास्ते में किरन बेदी फोन लाइन पर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन से एक्सक्लूसिव बात कर रही थीं. उन्होंने कहा, “मैं देख रही हूं कि जब निक्की की संदिग्ध हालातों में मौत हो चुकी है. तब उसके मायके वाले बढ़-चढ़कर बोल रहे हैं कि निक्की की ससुराल वाले लंबे समय से दहेज और कीमती कार की डिमांड कर रहे थे. इसी मुद्दे पर ससुराल में हुए मन-मुटाव के चलते निक्की और उसकी बड़ी बहन कंचन अक्सर लंबे समय के लिए अपनी ससुराल से मायके भी नाराज या दुखी होकर चली आती थीं. बाद में इनकी कौम-समाज की पंचायत में बे-सिर-पैर का समझौता करके, निक्की को मां-बाप दुबारा उसी ससुराल वाले घर में भेज देते थे. जिन ससुरालीजनों के ऊपर निक्की की मौत के बाद मायके वाले दहेज के लिए निक्की का कत्ल कर डालने की बात कह रहे हैं.''

समाज के पंचायती ठेकेदारों और गांव के प्रधान जी का क्या बिगड़ा?

''मैं पूछती हूं कि अब जब संदिग्ध हालातों में निक्की की मौत हो चुकी है, तब मायके पक्ष के समाज के वे पंच-सरपंच या प्रधान जी कहां है जिनके द्वारा कराये गए समझौते की कमजोर बैसाखियों के भरोसे निक्की को उसकी संदिग्ध मौत से पहले कई बार, मां-बाप समाज में अपनी नाक ऊंची रखने के लालच में उसे (निक्की) उन्हीं ससुरालियों के बीच फेंक आते थे, जो ससुराल वाले निक्की और उसके मायके वालों के पीछे दहेज के लिए हाथ धोकर पड़े रहते थे. निक्की को जन्म तो उसके मां-बाप ने दिया था. ससुराल में तो निक्की का जन्म नहीं हुआ था न. जब मां-बाप ही अपना सिर समाज में ऊंचा रखने की गरज में कि, अगर शादीशुदा बेटी (निक्की) मायके में रहेगी तो समाज क्या कहेगा? इस घटिया-घिनौनी सोच के साथ उसे (निक्की) हर बार मायके से ससुराल छोड़ आते थे. जिसका नतीजा अब निक्की की ससुराल में हो चुकी संदिग्ध मौत के रूप में दुनिया के सामने है. निक्की की मौत से समाज के पंचायती ठेकेदारों गांव के प्रधान जी का क्या बिगड़ा? उनका तो कुछ नहीं गया न. बेटी मां-बाप की पाली-पोसी पढ़ाई लिखाई चली गई न अकाल मौत के मुंह में. निक्की की मौत तो हो ही गई न. क्या अगर मां-बाप ने अपनी बेटी समझकर, समाज के कथित ठेकेदारों की चिंता से ज्यादा बढ़कर अपनी बेटी निक्की की जिंदगी की सलामती की चिंता की होती. निक्की आज अपने मायके में रह रही होती तो क्या आज निक्की का मायका और निक्की ज्यादा सुखी नहीं होते. अब जब निक्की की मौत से किसी का क्या नुकसान हुआ? निक्की अपनी जान से चली गई. और मायके वाले जब तक जिंदा रहेंगे तब तक निक्की की अनुपस्थिति उन्हें चैन से नहीं सोने देगी.”

नाक ऊंची रखने के चक्‍कर में बेटी को खो दिया

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में पूर्व और देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरन बेदी बोलीं, “मैं तो कहती हूं जब निक्की और उसकी बड़ी बहन कंचन के ऊपर ससुराल वाले इस कदर के जुल्म ढहा ही रहे थे. तो मायके वाले बजाए समाज के कथित पंचायतियों के बेटी को सीधे थाने लेकर क्यों नहीं पहुंचे? थाने गए होते तो कम से कम आज निक्की अपने मां-बाप के पास ही सही, सलामत तो होती. लेकिन फिर वही बात कि पुलिस के पास बेटी को लेकर जाने से मां-बाप की नाक जो नीची हो रही थी. इसलिए जब जब निक्की मायके जाकर अपने मां-बाप के घर रोई, तब तब समाज के कुछ ठेकेदार-पंचायतियों के बीच बैठकर राजीनामा करवा कर उसे (निक्की) फिर उसी घर में भेज दिया जहां उसे परेशान करने के आरोप आज मां बाप या निक्की का परिवार लगा रहा है.”

जब अपनी ही बेटी को घर में रखने में शर्म आने लगे तो...

पुदुचेरी की पूर्व उप-राज्यपाल किरन बेदी ने तो यहां तक कहा कि, “जब मायके वालों को ही अपनी पैदा की हुई बेटी अपने ही घर में रखने में शर्म आने लगे. या कोई शादीशुदा लड़की जब मायके वालों को ही बोझ लगने लगे. तब फिर उस लड़की की मदद के लिए कोई गैर क्यों खड़ा होगा? दूसरे सुना है कि लड़की एक नामी निजी स्कूल में पढ़ी हुई थी. ऐसे में मैं तो उस स्कूल से भी सवाल करती हूं कि स्कूल वालों ने निक्की को क्या शिक्षा दी खाक? स्कूल यह तक सिखा सका निक्की को कि जो विपरीत परिस्थितियां उसके वैवाहिक जीवन में बन चुकी थीं उनसे निक्की को कैसे निपटना है? आज महिलाओं-लड़कियों के हित में सौ-सौ मजबूत कानून भरे पड़े हैं. उनका इस्तेमाल तो करना हम सीखें और अपने बच्चों को सिखाएं. तभी तो निक्की जैसी देश की बाकी परेशान-हाल बेटियां-बहुएं अपनी रक्षा-सुरक्षा खुद कर सकेंगी. वरना फिर कोई निक्की खुद को बेबस-लाचार समझकर, इसी हाल में पहुंच जाएगी. और फिर मैं तो कहती हूं कि अगर निक्की ने खुद ही अपनी जीवन लीला समाप्त की हो अगर, तो यह कौन सी पढ़े-लिखे होने की बात है. इंसान की जिंदगी से बढ़कर और क्या हो सकता है? निक्की को परिस्थितियों से डटकर लड़ना चाहिए था. मां-बाप मायका अगर समाज में अपनी नाक ऊंची रखने की खातिर निक्की की मदद नहीं कर रहे थे, तब निक्की को उनके सामने भी नाक रगड़ने की क्या जरुरत थी. खुद पढ़ी लिखी थी. खुद और अपने बच्चों के जीवन के बारे में पहले उसे सोचना चाहिए था. बाकी सब दुनिया बाद की बात होना चाहिए थी उसके लिए.”

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