महज 24 साल की उम्र में मिस इंडिया, साइंटिस्ट, शूटर और अब आर्मी अफसर... कहानी सुपरमॉडल Kashish Methwani की
सपनों को सच करने की उम्र 24 साल बहुत कम मानी जाती है, लेकिन पुणे की कशिश मेथवानी ने इस छोटी-सी उम्र में वो कर दिखाया है, जिसके लिए कई लोगों को पूरी ज़िंदगी भी कम पड़ जाती है. कभी मिस इंडिया का ताज जीतने वाली यह लड़की साइंटिस्ट भी बनी, नेशनल लेवल शूटर भी रही और अब भारतीय सेना में अफसर बनकर देश की सेवा कर रही है.;
हमारे समाज में अक्सर बच्चों से कहा जाता है कि एक रास्ता चुनो, उसी पर चलो और उसी में सक्सेसफुल बनो, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो ‘या तो ये’ और ‘या तो वो’ वाले ऑप्शन से संतुष्ट नहीं होते. वे ‘और... और... और...’ की तलाश में निकलते हैं. कशिश मेथवानी ऐसी ही एक मिसाल हैं.
एक तरफ वह मिस इंटरनेशनल इंडिया का ताज पहनती हैं, दूसरी ओर साइंस में मास्टर्स की पढ़ाई करती हैं, और आखिरकार भारतीय सेना में अफसर बनकर देश की सेवा का संकल्प लेती हैं. कशिश की कहानी केवल सफलता की कहानी नहीं है. यह जुनून, और मुझे सबकुछ करना है वाली सोच की गवाही है. चलिए जानते हैं कैसे उन्होंने अपनी लाइफ में यह सब कुछ अचीव किया.
कौन हैं कशिश मेथानी?
कशिश मेथानी पुणे की रहने वाली हैं. जहां महज 22 साल की उम्र में मिस इंटरनेशनल इंडिया 2023 का खिताब जीत चुकी हैं. इतना ही नहीं, वह एक साइंटिस्ट, शूटर, डांसर, तबला प्येर और अब लेफ्टिनेंट बन चुकी हैं.
बचपन से ही ‘सब कुछ’ करने का जज़्बा
कशिश का बचपन किसी साधारण लड़की जैसा नहीं था. जहां ज्यादातर बच्चों को पेरेंट्स कॉम्पिटिशन में पार्ट लेने के लिए इंस्पायर करते हैं, वहां कशिश खुद अपनी मां से कहती थी कि 'मुझे सब करना है.' डांस, स्पोर्ट्स, कल्चरल प्रोग्राम्स, डिबेट कॉम्पिटिशन– कोई भी मंच उनके लिए अनजान नहीं था. कशिश की मां ने बताया कि 'हमें कभी कहना नहीं पड़ा कि कशिश भाग ले. वो खुद कहती थी कि मैं करूंगी. हार-जीत की परवाह उसे नहीं थी, बस करना जरूरी था.' यही जज़्बा आगे चलकर उनकी पहचान बना.
स्कूल से एनसीसी तक का सफर
आर्मी पब्लिक स्कूल, घोरपड़ी से पढ़ाई करने वाली कशिश ने एकेडमिक्स में हमेशा अव्वल रही हैं. लेकिन असली मोड़ आया नेशनल कैडेट कॉर्प्स (NCC) से. 2021 में दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लेने के दौरान उन्हें ऑल इंडिया बेस्ट कैडेट ट्रॉफी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों मिली. यह पल उनके लिए ब्रेकथ्रू था. बचपन में जहां वो न्यूरोसर्जन बनने का सपना देखती थीं, वहीं अब सेना में जाने का जुनून जाग उठा. एनसीसी ने उन्हें सिर्फ डिसिप्लिन नहीं सिखाया, बल्कि थकान से लड़ना, टीम को मोटिवेट करना और खुद को सीमाओं से आगे धकेलना भी सिखाया.
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ग्लैमर और विज्ञान की दुनिया से सेना तक
कशिश की कहानी का अगला चैप्टर बिल्कुल फिल्मी लगता है. 2023 में उन्होंने Miss International India का खिताब जीता. इस दौरान उनकी ग्लैमरस तस्वीरें सुर्खियों में थीं. लेकिन, उसी दौरान वे साइंस में भी गहराई से डूबी थीं. सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से एमएससी और आईआईएससी बैंगलोर से न्यूरोसाइंस में रिसर्च करने वाली कशिश को Harvard University से पीएचडी के लिए भी सेलेक्शन मिल चुका था. सोचिए एक तरफ रैंप पर वॉक करती सुपरमॉडल, दूसरी तरफ लैब में न्यूरोसाइंस पर रिसर्च करती साइंटिस्ट और जब समय आया चुनने का, तो उन्होंने चमकती रोशनी छोड़, बूट और बैज पहनने का रास्ता चुना.
सीडीएस एग्जाम- ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी की राह
2024 में उन्होंने संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 2 हासिल की. ये आसान नहीं था. एक तरफ ब्यूटी पेजेंट्स की तैयारी, दूसरी तरफ आर्मी का सबसे मुश्किल एग्जाम, दोनों को एक साथ संभालना उनके लिए चुनौती थी. लेकिन यही तो उनकी पहचान है , जहां उन्होंने हार्वर्ड छोड़कर चेन्नई की ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी का दरवाज़ा खटखटाया.
कशिश की बेमिसाल अचीवमेंट्स
ऑफिसर्स ट्रेनिंग अकादमी में उनकी मेहनत का रंग साफ दिखा. उन्होंने वहां सिर्फ बेस्ट कैडेट का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि हर क्षेत्र में मेडल लाए. एयर डिफेंस की हाईएस्ट सर्वोच्च एएडी मेडल, मार्च एंड शूट कॉम्पिटिशन में गोल्ड, सिख ली रेजिमेंट मेडल ,बेस्ट ड्रिल का सम्मान और डिसिप्लिन बैज ,बास्केटबॉल प्रतियोगिता में बेस्ट प्लेयर,और, अकादमी में सबसे ज्यादा शूटिंग स्कोर. इतना ही नहीं, उन्हें एक टर्म के लिए बटालियन अंडर ऑफिसर (BUO) और दूसरी टर्म के लिए अकादमी अंडर ऑफिसर (AUO) चुना गया, जो कि किसी भी कैडेट के लिए सबसे ऊंचा नेतृत्व पद होता है.
एनजीओ चलाती हैं कशिश
कशिश की शख्सियत सिर्फ सेना और मॉडलिंग तक सीमित नहीं. वो नेशनल लेवल पिस्टल शूटर भी हैं, बास्केटबॉल की उम्दा खिलाड़ी, तबला प्लेयर और भरतनाट्यम डांसर भी हैं. उन्होंने Critical Cause नाम का एनजीओ शुरू किया, जो प्लाज़्मा और अंगदान के बारे में जागरूकता फैलाता है. सिर्फ 24 साल की उम्र में वो समाजसेवा से लेकर कला और खेल हर जगह अपनी छाप छोड़ चुकी हैं.
कशिश का फैमिली बैकग्राउंड
कशिश के पिता डॉ. गुरमुख दास, रक्षा मंत्रालय की DGQA से डायरेक्टर पद से रिटायर साइंटिस्ट हैं. मां शोभा आर्मी पब्लिक स्कूल में टीचर हैं. बहन शगुफ्ता इंजीनियर हैं. घर में टीवी होते हुए भी वो ज्यादा समय नहीं देखते थे. माहौल हमेशा पढ़ाई और अनुशासन का रहा. शायद यही कारण था कि दोनों बेटियां अकादमिक और कल्चर दोनों में अव्वल रहीं. लेकिन, सेना में जाना या ब्यूटी पेजेंट्स में हिस्सा लेना, ये सब कशिश ने अपनी पहल पर किया.
‘या तो’ नहीं, ‘और भी’ का मैसेज
कशिश मानती हैं कि ज़िंदगी में सफलता का राज़ सिर्फ मेहनत में नहीं, बल्कि अलग-अलग चीजें आज़माने में है. आपको यह समझना होगा कि आपको किस काम में खुशी मिलती है, आपका पैशन क्या है. करियर उसी पैशन पर बनाइए. जब आप काम को प्यार करेंगे तो मुश्किलें भी आपको रोक नहीं पाएंगी.
स्ट्रग्ल और सेल्फ-डाउट की कहानी
इतनी अचीवमेंट्स के पीछे उनकी चुनौतियां भी बड़ी थीं. उन्होंने खुद इस बात को कबूल किया है कि वो सेल्फ डाउट, एक्ने, बॉडी इश्यूज़ और impostor syndrome से जूझ चुकी हैं. उन्होंने कहा कि 'कभी-कभी हम खुद को अपने ही दिमाग की नेगेटिव आवाज़ से परिभाषित कर लेते हैं. लेकिन असलियत यह है कि हम उससे कहीं ज्यादा हैं.' यही सोच उन्हें बार-बार गिरकर भी उठने की ताकत देती रही.