INSIDE STORY: 'सुप्रीम जूता-कांड' में ‘जज’ ‘जाति’ और ‘जज्बात’ की खतरनाक कहानी में गजब कर गए CJI बी आर गवई...!

6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में हुए “जूता-कांड” ने पूरे देश को हिला दिया. वकील राकेश किशोर ने चीफ जस्टिस बी आर गवई की ओर जूता फेंका, जिससे कोर्ट और न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठे. बताया जा रहा है कि यह घटना गवई द्वारा भगवान विष्णु पर की गई टिप्पणी से आहत होकर हुई. वरिष्ठ वकील डॉ. ए.पी. सिंह ने इसे “काला दिन” बताया, जबकि उन्होंने CJI गवई की संयम और परिपक्वता की सराहना की. घटना अब “जज, जाति और जज्बात” के विवाद में उलझ चुकी है.;

“6 अक्टूबर 2025 (सोमवार) को सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई यानी भूषण रामकृष्ण गवई (CJI B R Gavai) की मौजूदगी में उनकी ओर वकील राकेश किशोर द्वारा जूता उछालने का जब से तमाशा हुआ है, तभी से देश में कोहराम मचा है. ब्रिटिश हुकूमत और उसके बाद फिर आजाद भारत में देश के सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की शर्मनाक घटना का यह शायद पहला मौका होगा. जूता कांड तो सुप्रीम कोर्ट में हुआ मगर इसकी चर्चा देश के विशेष वर्ग से लेकर आमजन तक में है.

घटना किस कदर हिंदुस्तान की हुकूमत और न्याय-व्यवस्था के ऊपर भारी साबित हुई है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, डैमेज कंट्रोल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई से इस मामले को लेकर बात करनी पड़ गई. घटना को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. इन चर्चाओं को अगर एक जगह संग्रहित करके देखा जाए तो इससे जो लब्बोलुआब निकल कर बाहर आता है, उसके मुताबिक यह कांड ‘जज’ ‘जाति’ और ‘जज्बात’ के जाल-जंजाल में फंसा या कहिए फड़फड़ाता दिखाई पड़ रहा है. कुछ लोग इस कांड के पीछे कथित रूप से ही सनातन का अपमान और भगवान विष्णु के मामले में कुछ दिन पहले ही चीफ जस्टिस बी आर गवई द्वारा की गई टिप्पणी को भी मान रहे हैं. लोकतंत्र है. सबको इसमें अपने विचार रखने का मौलिक अधिकार है.”

भारत की न्यायायिक सेवा में 6 अक्टूबर 2025 काला दिन

इस मामले पर स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने एक्सक्लूसिव बात की निर्भया हत्याकांड के फांसी की सजा पाए मुजरिमों (20 मार्च 2020 को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाए जा चुके) के बचाव पक्ष वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह से. उन्होंने कहा, “जो कुछ घटना घटी मैं उसका कतई समर्थन नहीं करता हूं. भारत की न्यायायिक सेवा में 6 अक्टूबर 2025 काले दिन के रूप में दर्ज हो चुकी है. जिसे मिटाने पर देश में कभी कोई रबड़ बनाई ही नहीं जा सकेगी.

क्‍या आहत होकर वकील राकेश किशोर ने किया कांड?

हां, इतना जरूर है कि वकील राकेश किशोर ने इस घटना को अंजाम क्यों दिया? उनकी मंशा क्या रही होगी? यह वही बेहतर बता सकते हैं. मगर जो कुछ इस घटना से निकल कर सामने आया है उसने यह तय कर दिया है कि इस काले और सुप्रीम जूता कांड की जड़ में कहीं न हीं किसी न किसी तरह से आरोपी वकील राकेश किशोर का आहत मन और उनकी आहत भावनाएं जरूर शामिल हैं. राकेश किशोर ने कहा है कि वे सनातन का अपमान नहीं होने देंगे. जिस तरह से कुछ दिन पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश ने विष्णु भगवान को लेकर टिप्पणी की थी. उस तरह की टिप्पणी राकेश किशोर के दिल-ओ-दिमाग पर बेहद नगवार गुजरी और उसी घटना से आहत वकील राकेश किशोर ने यह कांड अंजाम दे डाला.”

Full View

गैरजरूरी टिप्‍पणी की नहीं थी कोई जरूरत

स्टेट मिरर हिंदी के एक सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह बोले, “मुख्य न्यायाधीश ने विष्णु भगवान को लेकर जो भी कहा सनातन धर्म को मानने वाली जनता और वकील राकेश किशोर उसे सही नहीं मानते हैं. उनके मुताबिक किसी भी न्यायाधीश को किसी भी धर्म या देवी-देवता को लेकर इस तरह की मुंहजुबानी टिप्पणियां करने का कोई कानूनी हक नहीं है. अगर मुख्य न्यायाधीश को विष्णु भगवान से जुड़े विषय पर कोई पीआईएल या आवेदन सही नहीं लगा तो वे बेहद संतुलित संयमित भाषा में जो करना चाहते थे वह कानूनी रूप से कागज पर लिख कर भी कह सकते थे. मुख्य न्यायाधीश को यह कहने की कोई जरूरत ही नहीं थी कि “जाइए फिर विष्णु भगवान से ही जाकर करवा लीजिए या उन्हीं से जाकर कह दीजिए.”

भगवान विष्णु की मूर्ति चीफ पर जस्टिस के कमेंट का हो रहा विरोध

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बी आर गवई के सामने खजुराहो (मध्य प्रदेश) में भगवान विष्णु की मूर्ति को लेकर उनके द्वारा की गई टिप्पणियों पर बवाल मचा ही हुआ था. इसी बीच 17 सितंबर 2025 को सत्यम सिंह राजपूत ने भी इसी विषय पर चीफ जस्टिस गवई की टिप्पणियों का विरोध करते हुए एक खुला पत्र उन्हें (बी आर गवई मुख्य न्यायाधीश) को लिखा था. जिसमें उन्होंने कहा था कि मुख्य न्यायाधीश अपनी उन टिप्पणियों पर पुनर्विचार कर उन्हें वापिस लेने और सभी धार्मिक समुदायों का विश्वास बहाल करने के लिए उचित स्पष्टीकरण जारी करने की कृपा करें.

खजुराहो के प्रसिद्ध जावरी मंदिर से जुड़े मामले पर हुई थी टिप्‍पणी

यहां जिक्र जब सुप्रीम जूता कांड का हो रहा है तब ऐसे में इस बवाल की जड़ में जाना जरूरी है. जिसके मुताबिक खजुराहो के प्रसिद्ध जावरी मंदिर में स्थित भगवान विष्णु जी की खंडित मूर्ति की मरम्मत और उसके रखरखाव का आदेश देने के बाबत याचिक सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई थी. जिसकी सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच कर रही थी. उस बेंच ने सुनवाई करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि, यह विषय अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग देखेगा. इसी दौरान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गवई ने चुटकी लेने वाले अंदाज में यह टिप्पणी भी कर दी थी कि, “अब तो आप स्वयं भगवान से ही प्रार्थना कीजिए. आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं. तो अब उन्हीं से प्रार्थना कीजिए.”

मामले को ठंडा करने के लिए पीएम मोदी को आना पड़ा मैदान में

बस मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की उसी मौखिक टिप्पणी के खार खाए बैठे सुप्रीम कोर्ट के बुजुर्ग वकील राकेश किशोर का खून खौल उठा और उन्होंने, मुख्य न्यायाधीश की तरफ अपना जूता उछाल दिया. इतनी चर्चा तो मुख्य न्यायाधीश गवई की भगवान विष्णु के ऊपर की गई मौखिक टिप्पणी को नहीं मिली थी, जिससे कई गुना ज्यादा बबाल अब वकील राकेश किशोर के इस शर्मनाक सुप्रीम जूता-कांड को लेकर मचा है. उस हद तक कि मामले को ठंडा करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी मैदान में उतर कर, मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई से बात करनी पड़ गई.

'भगवान विष्‍णु पर चीफ जस्टिस की टिप्‍पणी अनुचित'

बहरहाल, इस मामले पर लंबी खास बातचीत के दौरान स्टेट मिरर हिंदी के सवालों का जवाब देते हुए सुप्रीम कोर्ट के ही वरिष्ठ फौजदारी वकील डॉ. ए पी सिंह कहते हैं, “मैं राकेश किशोर वकील ने जो किया उसकी तरफदारी तो नहीं करता हूं. उन्हें जो सजा मिलनी थी वह भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने आरोपी वकील को उनकी वकालत का लाइसेंस रद्द करके दे दी है. ‘जज’ ‘जाति’ और ‘जज्बात’ के चारों ओर घूमती इस चर्चित कहानी में मगर यह भी निकल कर सामने आता है कि भगवान विष्णु पर जो मौखिक टिप्पणी माननीय मुख्य न्यायाधीश ने की थी, वह भी उचित तो नहीं ही थी. न उन्होंने वह टिप्पणी की होती न ही राकेश किशोर वकील को अपनी कुंठा शांत करने के लिए जूता-कांड अंजाम देना होता. मैं तो कहूंगा कि दोनों ही पक्ष ने अपने अपने हिसाब से सही नहीं किया.”

जूता कांड को कैश कराने में जुटे लोग

डॉ. ए पी सिंह आगे बोले, “हां इतना जरूर है कि अब इस जूता कांड को हर कोई अपने अपने हिसाब, नफा-नुकसान के हिसाब से कैश करने में जुटा है. बहती गंगा में हर कोई बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने का मौका हाथ से निकलने देना नहीं चाहता है. यह सही नहीं है. साथ ही वकील राकेश किशोर ने जिस तरह की बेजा हरकत को अंजाम दिया. उसी के ठीक विपरीत मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई ने इस शर्मनाक घटना के बाद भी अपना आपा न खोकर, जिस बौद्धिक परिपक्वता का परिचय जमाने को दिया है. वह भी अद्दभूत है. अगर मुख्य न्यायाधीश ने इस जूता कांड में गजब के सब्र और शांति, सूझबूझ का परिचय न दिया होता तो यह जूता कांड अब तक देश में विवाद की आग को दावानल का रूप दिलवाने में न कितना बड़ा अनर्थ का द्योतक साबित हो चुका होता. मैं तो कहूंगा कि विष्णु भगवान पर मौखिक टिप्पणी करने वाले मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई साहब ने जूता कांड के बाद गजब के धैर्य का परिचय देते हुए, मिसाल कायम कर डाली है. वरना यह पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट से बाहर आते-आते विकराल रूप भी ले सकता था.”

Similar News