INSIDE STORY: कम से कम 3 संतान को जन्म देने का संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान, मेडिकल साइंस की नजर में कितना खरा?
RSS प्रमुख मोहन भागवत के तीन बच्चों को जन्म देने के बयान पर वैज्ञानिक दृष्टि से कई सवाल उठ रहे हैं. दिल्ली AIIMS के पूर्व विशेषज्ञ डॉ. जे. बी. शर्मा ने कहा कि किसी दंपत्ति की या उनकी संतान की स्वास्थ्य और मानसिक स्थिति का बच्चों की संख्या से कोई सीधा संबंध नहीं है. आधुनिक जीवनशैली और सामाजिक परिस्थितियों के आधार पर दो संतान पर्याप्त मानी जाती हैं. तीन से अधिक संतान स्वास्थ्य और परवरिश पर प्रभाव डाल सकती हैं, जबकि सही उम्र में माता बनना सुरक्षित होता है.;
संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) ने हाल ही में बयान दिया है कि, “हमारे देश की जनसंख्या नीति के मुताबिक एक दंपती के पास 2.1 बच्चा होना चाहिए. गणित के मुताबिक 2.1 का मतलब 2 होता है मगर, सामाजिक जीवन में 2.1 का मतलब कम से कम 3 बच्चों से है. रिसर्च भी इस तथ्य को साबित करती हैं कि एक परिवार में 3 बच्चों वाले मां-बाप और संतान, सभी स्वस्थ रहते हैं. स्वास्थ्य अध्ययन के मुताबिक इसके कारण परिवार में अहम की लड़ाई की आशंका भी कम होती है. एक परिवार के तीन बच्चे ‘ईगो मैनेजमेंट’ करना भी बेहतरी से सीख पाते हैं.”
यह तो रहा संघ प्रमुख मोहन भागवत जी का वह बयान जो देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. इस बयान पर जितने मुंह उतनी बातें शुरू हो गई हैं. कई वर्गों में तो संघ प्रमुख के इस बयान पर समझिए कि ‘बहस’ ही छिड़ी हुई है. कुछ लोगों का कहना है कि, “मोहन भागवत जी कोई डॉक्टर या प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ जब नहीं हैं तब फिर, वह इस तरह का बयान क्यों कैसे और किस स्वास्थ्य अध्ययन या फिर किस वैज्ञानिक-अनुसंधान के हवाले से दे रहे हैं?”
विज्ञान की नजर से संघ प्रमुख का बयान
संघ प्रमुख के इस अजीब-ओ-गरीब बयान को लेकर देश में मची उठा-पटक के बीच कई लोगों का कहना है कि, इस तरह की भारत में छोड़िये दुनिया में अभी तक कोई प्रमाणित-रिसर्च ही सामने नहीं लाई गई है जो, वैज्ञानिक रूप से साबित-सिद्ध कर सकी हो कि जिन, दंपत्ति के तीन संतान हैं वे दंपत्ति और उनकी संतानें उन दंपत्तियों और उनकी संतानों की तुलना में ज्यादा ताकतवर या बलशाली साबित हुए, जिनके एक या दो संतान हैं. दूसरी ओर अपने इस बवाली बयान को पुख्ता करने को कहिए या फिर मजबूती से साधने की गरज से संघ प्रमुख आगे कहते हैं कि, “हिंदू-परिवार में तीन बच्चे न होने से या तीन से कम संतान होने के चलते ही हिंदू समाज के परिवार लुप्त-विलुप्त होते जा रहे हैं. जोकि हिंदू जनसंख्या की नजर से बाकी धर्म-कौमों की तुलना में ठीक नहीं माना जा सकता है.” चलिए छोड़िए संघ प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) को जो कहना था सो उन्होंने कह दिया. एक जागरूक और आम-नागरिक के वैज्ञानिक सिद्ध ज्ञान के लिए यह तो जरूरी है ही कि आखिर, संघ प्रमुख का यह बेहद चर्चित कहिए या फिर अटपटा बयान आखिर आधुनिक विज्ञान में किस पायदान पर खड़ा है?
क्या कहते हैं दिल्ली एम्स के पूर्व स्पेशलिस्ट?
'स्टेट मिरर हिंदी' के एडिटर इनवेस्टीगेशन ने इस बयान के बाद जेहन में आ रहे तमाम सवालों के ठोस वैज्ञानिक जवाब के लिए एक्सक्लूसिव बात की, भारत के अनुभवी और बेहद सुलझे हुए “स्त्री एवं प्रसूति रोग” विशेषज्ञ डॉ. जे बी शर्मा (Gynaecologist and Obstetrician Dr. JB Sharma) से. डॉ. जे बी शर्मा को स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के रूप में करीब 4 दशक (40 साल) का पैना तजुर्बा है. अपने विषय की विशेज्ञता के अनुभव के आधार पर अब तक हजारों अनुसंधान-लेख लिख चुके डॉ. जे बी शर्मा, दो दशक तक देश के सबसे बड़े नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences AIIMS New Delhi) के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में प्रोफेसर/यूनिट प्रमुख रहकर हाल ही में सेवा-निवृत्त हुए हैं.
साल 2015 में डॉ. बीसी राय अवार्ड (Dr B C Roy Award) से सम्मानित और वर्तमान में दिल्ली से सटे गाजियाबाद के यशोदा मेडिसिटी अस्पताल, इंदिरापुरम (Yashoda Medicity Hospital Indirapuram, Ghaziabad) में, स्त्री एवं प्रसूति-रोग विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत डॉ. जे बी शर्मा 'स्टेट मिरर हिंदी' से नई दिल्ली में लंबी विशेष-बातचीत की. उन्होंने कहा, “मैं किसी पॉलिटिकल या नॉन-पालिटिकल बयान पर कुछ नहीं बोल सकता. आपने क्योंकि जागरुकता के लिए जनहित में पूछा है तो मैं अपने पेशे के लंबे अनुभव से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित जवाब दे रहा हूं. मेरे द्वारा दिए जा रहे इन जवाबों का किसी भी व्यक्ति-विशेष के बयान से कोई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष वास्ता नहीं है.”
सवाल : तीन बच्चों को जन्म देने वाले माता-पिता और एक ही माता-पिता से जन्म लेने वाले तीन बच्चे ही ज्यादा स्वस्थ रहते हैं?
जवाब : नहीं ऐसा नहीं है. संतान और माता-पिता की स्वस्थता या अस्वस्थता से इसका कोई वास्ता नहीं है कि, एक माता-पिता कम से कम तीन संतानों को ही जन्म दें. तभी उनकी स्वस्थता या अस्वस्थता का पैमाना तय होगा. तीन से कम संतान को जो माता-पिता (दंपत्ति) जन्म देंगे वे शारीरिक या मानसिक रूप से अस्वस्थ ही रहेंगे. न ही विज्ञान में कहीं अनुसंधानिक रूप यह प्रमाणित है कि एक ही माता-पिता से जन्मे एक या दो बच्चे अस्वस्थ रहते हैं, और एक ही कपल से जन्म लेने वाले सिर्फ तीन बच्चे ही स्वस्थ रहेंगे.
सवाल : क्या जिन माता-पिता के गर्भ से एक या दो ही बच्चे जन्म लेते हैं उन बच्चों के मानसिक अथवा शारीरिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
जवाब : नहीं ऐसा नहीं है. माता-पिता हों या फिर संतान. दोनों के ही नजरिए से एक बात जरूरत वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है कि कम उम्र में अगर कोई कपल माता-पिता बनता है यानी संतानोत्तपत्ति करता है, तो इसका बुरा बेहद विपरीत असर माता-पिता और संतान पर जरूर पड़ता है. ऐसी स्थिति में माता-पिता को कई शारीरिक-मानसिक और चिकित्सकीय समस्याएं पैदा हो सकती हैं. जबकि कम उम्र के माता-पिता से जन्म लेने वाले बच्चों में भी कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं होने की प्रबल संभावनाएं होती हैं. कम उम्र के कपल से जन्म लेने वाली संतान का शारीरिक-मानसिक विकास या तो सही तरह से नहीं होता है. अगर विकास हो भी गया तो कुछ न कुछ ऐसी समस्याएं संतान में जरूर आने की संभावनाएं बनी ही रहती हैं, जो संतान के लिए हमेशा के लिए परेशानी-मुसीबत का कारण बन जाती हैं.
सवाल : आज की भागमभाग वाली दिनचर्या में कई कपल एक भी संतान को जन्म नहीं देना चाहते. कुछ कपल दो संतान को जन्म देने की प्लानिंग अमल में लाते हैं. नगण्य संख्या में कुछ दंपत्ति तीन संतान को जन्म देने की सीढ़ी या पायदान तक भी पहुंच जाते हैं. स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ की हैसियत से आप इन तीन में से किसे और क्यों प्राथमिकता देंगे?
जवाब : इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज की भागमभाग वाली जिंदगी में इंसान ने अपने स्वास्थ्य को नजरंदाज करना शुरू कर दिया है. भारत की सामाजिक-भौगोलिक-पारिवारिक व्यवस्था या परिस्थितियों में अगर मैं स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ के रूप में बात करूं तो हर कपल (पति-पत्नी) को कम से कम दो संतान को जन्म देना चाहिए. इसके पीछे भी मैं सामाजिक, वैज्ञानिक और चिकित्सकीय कारण-निवारण या वजहें बता रहा हूं. पहली वजह स्त्री को जितनी पीड़ा पहली बार की प्रसव प्रक्रिया में सहन करनी पड़ती है, उतनी दूसरी या तीसरी बार की प्रसव-प्रक्रिया में पीड़ा बर्दाश्त नहीं करनी होती है. दूसरी संतान का जन्म बेहद आसानी से होने की प्रबल संभावनाएं बनती हैं. दूसरे, हर माता-पिता को दो संतान को जन्म देने की कोशिश करनी चाहिए. इसलिए नहीं कि परिवार बड़ा होना चाहिए. अपितु इसलिए क्योंकि एक संतान की परवरिश घर-परिवार के अंदर उसके मानसिक-शारीरिक और सामाजिक विकास में काफी हद तक बाधक सिद्ध होती है. माता-पिता अपने रोजमर्रा के काम-धंधे जीवन-यापन में व्यस्त रहते हैं.
इन हालातों में इकलौती संतान के मनोभावों को समझने के लिए उसके पास कोई दूसरा विकल्प किसी हम-उम्र बच्चे के रूप में नहीं होता है. ऐसे विपरीत हालातों में इकलौती संतान अपने आप में ही मजबूरी में ‘सीमित’ रहकर खुद जीने की उस कोशिश में जबरदस्ती जुटने को मजबूर हो जाती है, जो उसके मानसिक और शारीरिक विकास में सबसे बड़ी बाधा सिद्ध होती है. घर-परिवार में अगर दो संतान हों तो वे एक दूसरे के साथ बेहतर वातावरण में परवरिश करके बेहतर मानसिक और शारीरिक विकास कर पा सकती हैं.
सवाल : क्या तीसरी संतान को जन्म देने वाले माता-पिता शारीरिक और मानसिक रुप से समय से पहले ही शारीरिक-मानसिक दुर्बलता का शिकार होने लगते हैं?
जवाब : नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि किस दंपत्ति को कितनी संतान उत्पन्न करना चाहिए? मैं बताना यह चाहता हूं कि जो समस्याएं शारीरिक-मानसिक-प्रयोगिक रूप से पहली बार माता-पिता बनने में दंपत्ति के सामने आती हैं. दूसरी और तीसरी बार संतान को जन्म देने के दौरान वे सब परेशानियां, पहली बार की तुलना में बहुत कम होती हैं. ऐसा नहीं है कि मां अगर तीसरी संतान को जन्म देती है. तो उस तीसरी संतान के जन्म की वजह से मां के मानसिक-शारीरिक विकास पर कोई विपरीत प्रभाव पड़ता है. न ही तीसरे बच्चे के रूप में एक ही दंपत्ति के गर्भ से जन्म लेने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर ही कोई विपरीत असर पड़ता है.
हां, इतना अवश्य है कि तीन से ज्यादा संतान को अगर एक दंपत्ति जन्म देता है. तो यह संख्या कहीं न कहीं खुले तौर पर माता-पिता और संतान के लिए सामाजिक, व्यवस्थायी, प्रायोगिक, मानसिक, शारीरिक अथवा चैकित्सकीय रूप से जरूर प्रभावित करती है. ज्यादा संख्या में संतान की बेहतर परवरिश नहीं हो सकती है. ज्यादा उम्र में चौथी-पांचवीं अथवा छठी संतान के भी कमजोर और बीमारियों से ग्रसित पैदा होने की प्रबल संभावनाएं बनती हैं. अधिक उम्र में मां बनना स्त्री-प्रसूता के लिए कभी कभी तो जानलेवा तक साबित हो जाता है.
दूसरे, महिलाओं में बढ़ती उम्र के साथ “मोनोपॉज” जैसी और भी तमाम समस्याओं की प्रमुखता बढ़ जाती है. गर्भ में संतान को पालने के लिए जिन चीजों की मां से बच्चे को जरूरत होती है, बढ़ती उम्र में मां के पास उन जरूरी चीजों का भी अभाव होने लगता है. इसलिए मां और बच्चा दोनों के ही अस्वस्थता के चांसेज बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं. चिकित्सा-विज्ञान की नजर से कहूं तो, किसी भी महिला-लड़की के 'मां' बनने की सही उम्र 23-24 साल से लेकर ज्यादा से ज्यादा 33-35 साल तक ही सही है.