पीएम मोदी के डबल दिवाली गिफ्ट का आपको कैसे होगा फायदा? GST सुधार समझिए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिवाली से पहले "डबल दिवाली गिफ्ट" के रूप में बड़े जीएसटी सुधारों का ऐलान किया है. इन सुधारों का मकसद रोजमर्रा की वस्तुएं सस्ती करना, छोटे कारोबारियों को राहत देना और टैक्स प्रणाली को सरल बनाना है. तीन स्तंभों - संरचनात्मक सुधार, रेट रैशनलाइजेशन और ईज़ ऑफ लिविंग - पर आधारित यह खाका उपभोक्ताओं, किसानों, छात्रों, महिलाओं और उद्योग जगत को सीधा फायदा देगा. इससे उपभोग बढ़ेगा, एमएसएमई क्षेत्र मज़बूत होगा और आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी.;
भारत में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) को लागू हुए आठ साल पूरे हो चुके हैं. 1 जुलाई 2017 को जिस टैक्स सिस्टम की शुरुआत हुई थी, उसका लक्ष्य था देशभर में एक समान कर व्यवस्था लागू करना और 'वन नेशन, वन टैक्स' की दिशा में आगे बढ़ना. शुरुआती दौर में जीएसटी ने कई चुनौतियां पेश कीं, जैसे जटिल रिटर्न प्रक्रिया, इनपुट टैक्स क्रेडिट में समस्याएं और दरों की अस्पष्टता, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार लाए गए. अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि इस साल दिवाली से पहले देश को 'डबल दिवाली' गिफ्ट मिलेगा. यह गिफ्ट होगा जीएसटी में बड़े सुधारों का, जिनसे आम जनता की जेब हल्की होगी और छोटे कारोबारियों को राहत मिलेगी.
सरकार ने तीन स्तंभों पर आधारित एक नया खाका तैयार किया है, संरचनात्मक सुधार, रेट रैशनलाइजेशन, और ‘ईज़ ऑफ लिविंग’. इनका मकसद न केवल कर व्यवस्था को सरल और पारदर्शी बनाना है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि आम आदमी, किसानों, महिलाओं, छात्रों और छोटे कारोबारियों को सीधा लाभ पहुंचे. सरकार का दावा है कि इन सुधारों से न केवल वस्तुएं सस्ती होंगी बल्कि आर्थिक गतिविधियां तेज होंगी और भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा और मजबूत होगी.
आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर ये जीएसटी सुधार क्यों ज़रूरी हैं, इनमें क्या बदलाव होंगे और ये आम जनता से लेकर उद्योगों तक सबके लिए कैसे फायदे लेकर आएंगे.
जीएसटी सुधारों का पृष्ठभूमि
जीएसटी की शुरुआत एक ऐतिहासिक कदम था. इससे पहले भारत में अलग-अलग राज्यों में वैट, एक्साइज, एंट्री टैक्स और सर्विस टैक्स जैसी कई परतों वाली टैक्स व्यवस्था थी. इससे कारोबारियों को भारी परेशानी होती थी और उपभोक्ताओं पर भी दोहरा कर बोझ पड़ता था. जीएसटी ने इस जटिलता को कम किया, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर कई समस्याएं सामने आईं.
अब जब यह व्यवस्था आठ साल पुरानी हो चुकी है, तो समय आ गया है कि इसे बदलते आर्थिक हालात, बढ़ती जनसंख्या और बदलती उपभोग की आदतों के अनुरूप ढाला जाए. यही वजह है कि केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ चर्चा कर ‘नेक्स्ट-जनरेशन जीएसटी रिफॉर्म्स’ का खाका तैयार किया है.
सुधारों के तीन स्तंभ
1. संरचनात्मक सुधार
- उल्टे शुल्क ढांचे (Inverted Duty Structure) को दुरुस्त करना.
- वस्तुओं और सेवाओं की श्रेणियों (Classification) में स्पष्टता लाना.
- कर दरों और नीतियों में स्थिरता लाकर उद्योगों को भरोसा दिलाना.
- इससे इनपुट टैक्स क्रेडिट के अटकने की समस्या कम होगी और उत्पादन प्रक्रिया सरल बनेगी.
2. रेट रैशनलाइजेशन
- दैनिक उपयोग की वस्तुओं और छोटे कारोबारियों के लिए टैक्स कम करना.
- टैक्स स्लैब की संख्या घटाना और केवल दो मुख्य स्लैब रखना (स्टैंडर्ड और मेरिट).
- विशेष दरें सिर्फ कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर ही लागू होंगी.
- इससे न केवल वस्तुएं सस्ती होंगी बल्कि उपभोग बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी.
3. ईज़ ऑफ लिविंग
- स्टार्टअप्स और छोटे कारोबारियों के लिए रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया आसान बनाना.
- प्री-फिल्ड रिटर्न्स लागू करना ताकि मैन्युअल इंटरवेंशन कम हो.
- रिफंड प्रक्रिया तेज और ऑटोमैटिक करना, खासकर एक्सपोर्टर्स और छोटे कारोबारियों के लिए.
- इससे व्यवसाय करना आसान होगा और भारत की रैंकिंग वैश्विक ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ में और बेहतर होगी.
आम जनता को क्या फायदा होगा?
- सस्ती होंगी रोज़मर्रा की चीज़ें - खाने-पीने की वस्तुएं, टॉयलेटरीज़ और कपड़े जैसे सामानों पर टैक्स घटेगा.
- महिलाओं और छात्रों को राहत - सैनेटरी पैड, किताबें, स्टेशनरी और शिक्षा से जुड़ी सेवाएँ और सस्ती होंगी.
- किसानों के लिए सहूलियत - खाद, बीज और कृषि उपकरणों पर टैक्स में कटौती से खेती की लागत घटेगी.
- मध्यम वर्ग को राहत - घरेलू उपकरण, मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक सामान अपेक्षाकृत किफायती होंगे.
- छोटे कारोबारियों को फायदा - रजिस्ट्रेशन और रिटर्न प्रक्रिया आसान होगी, जिससे समय और लागत दोनों बचेंगे.
उद्योग जगत के लिए फायदे
- स्पष्ट टैक्स ढांचे से निवेश बढ़ेगा और नई कंपनियाँ स्थापित होंगी.
- निर्यातकों को तेजी से रिफंड मिलने से कैश फ्लो बेहतर होगा.
- इनपुट और आउटपुट टैक्स में तालमेल से देशी उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा.
- दीर्घकालीन नीति स्थिरता से उद्योगों को बिज़नेस प्लानिंग आसान होगी.
इन सुधारों से तीन बड़े बदलाव संभव
- उपभोग बढ़ेगा, जिससे जीडीपी पर सकारात्मक असर होगा.
- एमएसएमई क्षेत्र मज़बूत होगा, जो रोजगार सृजन का सबसे बड़ा आधार है.
- टैक्स प्रणाली सरल और पारदर्शी होने से टैक्स अनुपालन (Compliance) बढ़ेगा और राजस्व में इज़ाफा होगा.
सामने आ सकती हैं ये चुनौतियां
- दरों के यथार्थीकरण में राज्यों की सहमति ज़रूरी होगी
- टैक्स कटौती से अल्पकालिक राजस्व घाटा हो सकता है
- तकनीकी ढांचे (जैसे प्री-फिल्ड रिटर्न और ऑटोमेटेड रिफंड) को सही ढंग से लागू करना आसान नहीं होगा
लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि लंबे समय में ये चुनौतियां भारत की आर्थिक मजबूती और आम जनता के फायदे के सामने छोटी साबित होंगी.