28 साल बाद मिला न्याय! क्या है संजीव भट्ट मामला, जिसमें कोर्ट से मिली राहत?
गुजरात की एक अदालत ने शनिवार को पूर्व आईपीएस अफसर संजीव भट्ट को सबूत ना मिलने के आभाव में आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है.अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे मामले को साबित नहीं कर सका है.;
गुजरात के पोरबंदर में एक अदालत ने 1997 में हिरासत में टॉर्चर करने के मामले में पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बरी किया है. अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे मामले को साबित नहीं कर सका है. वहीं इस मामले में एडिशनल चीफ मजिस्ट्रेट मुकेश पांड्या ने एसपी भट्ट को उनके खिलाफ लगी आईपीसी धाराओं के तहत मामले में सबूतों के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए बरी किया है.
अदालत के इस फैसले के बाद संजीव भट्ट को बड़ी राहत मिली है. आपको बता दें कि उन्हें साल 1990 में जामनगर की कस्टडी में आरोपी की हत्या के मामले में उम्रकैद सुनाई गई थी.
उम्रकैद की सुनाई गई थी सजा
वहीं इस उम्रकैद की सजा के बाद साल 1996 में उनके खिलाफ कई और मामले दर्ज किए गए. जिसमें उन्हें 20 साल की सजा सुनाई गई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने पालनपुर में राजस्थान क एक वकील को ड्रग केस में हिरासत में लिया था. फिलहाल वह वकील भी अभी जेल में बंद हैं और अपनी सजा काट रहे हैं.
कस्टडी में टॉर्चर करने का लगा था आरोप
आपको बता दें कि उनपर भारतीय दंड संहिता की धारा 330 के तहत कनफेशन के लिए किसी को चोट पहुंचाने के मामले में और 324 खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाने के मामले में आरोप लगाया गया था. यह शिकायत नारन जादव की शिकायत पर आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) और शस्त्र अधिनियम के मामले में पुलिस हिरासत में कबूलनामा लेने के लिए उसे शारीरिक और मानसिक यातना देने के लिए था.
कोर्ट ने दिया था निर्देश
साल 2013 में 15 अप्रैल को पोरबंदर शहर के बी-डिवीजन पुलिस स्टेशन में संजीव भट्ट के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी. बताया गया कि नारन जादव को पोरबंदर में संजीव भट्ट के घर पर ले जाकर कई फिजिकल टॉर्चर किया गया था. आरोप था कि जादव के प्राइवेट पार्ट्स के साथ साथ कई हिस्सों पर बिजली के झटके दिए गए थे. अदालत में इस टॉर्चर की जानकारी दी गई थी. जिसके बाद अदालत ने भट्ट के खिलाफ जांच के निर्देश जारी किए.