पैसा न मिलने से वित्तीय संकट में देश का टॉप NIRD&PR, वित्त मंत्रालय ने बजट किया जीरो; शिवराज सिंह चौहान ने क्यों मांगे 992 करोड़ रुपये?
देश की ग्रामीण विकास व्यवस्था में प्रशिक्षण-क्षमता और नीति-अनुसंधान का केंद्र माना गया NIRD&PR, को वर्ष 1958 में स्थापित किया गया था. ऐसे में जब इसे शून्य बजट दिया गया तो यह सवाल उठता है कि सरकार का इरादा क्या है? इसे निष्क्रिय करना या स्वायत्त बनाना? इस बीच मंत्रालय द्वारा लगभग ₹1 000 करोड़ की मांग उठने से भी संकेत मिलते हैं कि नीतिगत और वित्तीय दोनों स्तर पर गड़बड़ी है.;
केन्द्र सरकार के National Institute of Rural Development & Panchayati Raj (NIRD&PR) नामक ग्रामीण प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान () को वित्त वर्ष 2025-26 में बजट समर्थन के रूप में ‘शून्य’ रुपये दिए हैं. Ministry of Finance द्वारा मात्र ₹1 लाख रुपये का आवंटन किया गया. शिवराज सिंह चौहान द्वारा इस संस्थान के लिए लगभग ₹992.26 करोड़ की राशि जारी करने की मांग की गई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला केंद्रीय बजट एवं संस्थागत नीति के विवादास्पद पहलुओं को उजागर करता है. आइए, जानते हैं क्या है पूरा मामला?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण विकास संबंधी स्थायी समिति ने भी इस मामले पर अपनी राय दी थी. समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था कि संस्थान के वर्तमान प्रशासन की तत्काल समीक्षा करने और उसे बदलने की जरूरत है.
इसके बाद वित्त मंत्रालय द्वारा अपने आवंटन को घटाकर मात्र 1 लाख रुपये कर देने के कुछ महीनों बाद जो पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों के 73.68 करोड़ रुपये से काफी कम है - ग्रामीण विकास मंत्रालय अब हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडी एंड पीआर), जो सरकार का शीर्ष ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थान है, में धन डालने के लिए दबाव बना रहा है. मंत्रालय ने 13 अक्टूबर को एक नोट जारी कर केंद्रीय मंत्रिमंडल से 992.26 करोड़ रुपये के निवेश की मंजूरी मांगी थी, जिसमें 575 करोड़ रुपये एंडोमेंट फंड के लिए और 417.26 करोड़ रुपये पेंशन देनदारियों को पूरा करने के लिए होंगे.
1. क्या है NIRD&PR?
NIRD&PR भारत सरकार के Ministry of Rural Development (MoRD) के अधीन एक स्वायत्त संस्था है, जिसका मुख्यालय है हैदराबाद में है. इस संस्था का प्रमुख काम है ग्रामीण विकास-प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण, नीति अनुसंधान एवं ग्रामीण प्रशासन-पंचायती राज से संबंधित कार्यक्रम चलाना. लंबे समय से यह माना जाता रहा है कि इस तरह की संस्थाएं ग्रामीण विकास को दिशा देती हैं. उदाहरण स्वरूप, प्रशिक्षण कार्यक्रम, डिप्लोमा पाठ्यक्रम, थिंक-टैंक गतिविधियां.
2. बजट कटौती का सिलसिला
वर्ष 2024-25 का संशोधित अनुमान (RE) NIRD&PR को लगभग ₹73.68 करोड़ का बजट मिला था. वर्ष 2023-24 में भी लगभग ₹75.69 करोड़ था?लेकिन वर्ष 2025-26 के बजट में इस संस्थान को मात्र ₹1 लाख का बजट आवंटित किया गया. इसके पीछे है वित्त मंत्रालय की 'डिसएंगेजमेंट पॉलिसी' यानी धीरे-धीरे वित्त एवं प्रशासन से दूरी बनाने की प्रस्तावित नीति.
3. अब शिवराज ने की 992.26 करोड़ की मांग
MoRD ने 13 अक्टूबर 2025 को कैबिनेट की मंजूरी के लिए एक प्रस्ताव भेजा है, जिसमें ₹992.26 करोड़ रुपये जारी का अनुरोध है. इसमें ₹575 करोड़ को ‘एंडोमेंट फंड’ के रूप में प्रस्तावित किया गया है. बाकी ₹417.26 करोड़ को पेंशन जैसी देनदारियों और चल-वाली लागत के लिए प्रस्तावित किया गया है. इसका मकसद संस्थान को निर्बाध चलाने के लिए तथा इसे “सेंटर ऑफ एक्सीलेंस” या 'डिम्ड युनिवर्सिटी' में बदलना है.
4. यह मसला विवाद का विषय क्यों बना?
बजट में इतनी कटौती और अचानक इतनी बड़ी मांग दोनों ही असामान्य है. वित्त मंत्रालय का तर्क यह है कि संस्थान को धीरे-धीरे वित्त एवं प्रशासन से मुक्त करना चाहिए. ताकि वह स्वायत्त बन सके. इसके उलट MoRD का तर्क है कि प्रशिक्षण-संसाधन, शोध एवं ग्रामीण विकास में इस संस्थान की भूमिका बड़ी है. बजट में कटौती से यह काम प्रभावित होगा.
सवाल उठ रहा है कि यदि इतनी कम राशि दी गई है, तो संस्था कैसे काम जारी रखेगी? क्या यह इंतजार है कि वह फिर से सहायता मांगे? NITI Aayog ने भी टिप्पणी की है कि यदि संस्था पुनः मदद मांगने के लिए मजबूर हुई तो क्या होगा?
5. क्या आगे-क्या होगा?
प्रस्ताव यदि मंजूर हुआ, तो NIRD&PR को बड़ी वित्तीय राहत मिलेगी और यह एक नए स्वरूप में काम कर सकेगा. यदि नहीं हुआ, तो संस्थान को संचालन संकट का सामना करना पड़ेगा. संस्थान का प्रशिक्षण कार्यक्रम रोका जा सकता है. शोध-कार्य में कमी आ सकती है. कर्मचारियों की देनदारियां बढ़ सकती हैं. इससे ग्रामीण प्रशिक्षण-क्षमता पर प्रतिकूल असर हो सकता है और सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
6. राज्य एवं राजनीति का आयाम
MoRD के मंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में यह मामला विशेष रूप से राजनीतिक मुद्दा भी बन रहा है. बजट कटौती का समय-सारणी और मांग-प्रस्ताव से साफ है कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता में बदलाव हो सकता है या संस्थान की भूमिका पुनः परिभाषित हो रही है. राज्य एवं केन्द्र के बीच वित्तीय संसाधन बंटवारे, स्वायत्तता एवं प्रभाव-क्षमता के सवाल भी सामने आए हैं.