EXCLUSIVE: जिन्नाह तो बहुत ‘बिचारे-भोले-न-समझ-कम-अक्ल’ थे, कि अंग्रेजों ने उन्हें ‘मोहरा’ बनाकर भारत को बंटवा डाला, हा...हा. हा..!
जिन्नाह को लेकर शाहिद सिद्दीकी ने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने कहा कि मोहम्मद अली जिन्नाह इतने भोले और कम समझ वाले थे कि अंग्रेजों ने उन्हें भारत के खिलाफ मोहरा बनाकर इस्तेमाल किया और पाकिस्तान बनवाया. सिद्दीकी ने यह भी कहा कि जिन्नाह की कोई सीधी भूमिका नहीं थी, बल्कि अंग्रेजों की फूट डालो-राज करो नीति के तहत उन्हें मजबूर किया गया. आज जिन्नाह की छवि को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है.;
दुनिया जानती है कि सन् 1947 में कैसे भारत को बंटवारे की आग में और किस-किसने झोंका था. भारत को जबरिया अपने और चंद अपनों के सुख की खातिर किस हद तक गिरकर घाघ-मक्कार मोहम्मद अली जिन्नाह ने खुद को भारत का ‘विलेन’ बनाकर किस कदर की क्या भूमिका उस खूनी-बंटवारे के दौर में निभाई. जिस पाकिस्तान को बनाने के लिए जिन्नाह ने भारत के टुकड़े कराए, उसके बाद उसी पाकिस्तान की सर-ज़मीं पर किस कदर बदहाली-बेहाली के आलम में मोहम्मद अली जिन्नाह ने अंतिम सांसें लीं.
यह सब किसी ने नहीं छिपा है. भारत-पाकिस्तान बंटवारे की खूनी कहानी में ऐसी बदनाम मास्टरमाइंड शख्सियत रहे जिन्नाह को अगर इस तमाम के बाद भी कोई यह कहे कि, मोहम्मद अली जिन्नाह तो बेहद “समझदार, काबिल, भारत के हितैषी” थे. इस कदर के कथित शरीफ-लाचार जिन्नाह को तो अंग्रेजों ने भारत के खिलाफ “मोहरा” बनाकर पाकिस्तान बनवाने में इस्तेमाल किया था. ऐसे में पाकिस्तान और जिन्नाह के कुछ तथाकथित समर्थकों को छोड़कर, बाकी दुनिया यही कहेगी कि, “अगर मोहम्मद अली जिन्नाह वास्तव में बेहद काबिल, शरीफ, समझदार, शिक्षित” शख्सियत ही थे, जैसा कि आज भी उनके कुछ मुरीद या तरफदार मानते-बताते या गाते फिर रहे हैं, तब फिर ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि “अंग्रेजों के हाथों भारत पाकिस्तान बंटवारे के लिए बतौर मोहरा इस्तेमाल हो चुके मोहम्मद अली जिन्नाह काहे के काबिल या सुलझे हुए अथवा बेहद शालीन व्यक्तित्व के स्वामी रहे होंगे, जिन्होंने किसी गैर (अंग्रेजों) के कहने पर अपने ही हिंदुस्तान का बंटवारा कराने के लिए अपना इस्तेमाल आंख मूंदकर हो जाने दिया.
अगर जिन्नाह को भारत-पाकिस्तान बंटवारे में निर्दोष पाक-दामन बताने वाले जिन्नाह के सिपहसलारों की बात सुनी भी जाए कि, जिन्नाह की सीधी कोई मंशा नहीं थी, भारत को काटकर पाकिस्तान बनवाने में. तब तो बंटवारे को लेकर आज की पीढ़ी का पूरा हक है कि वह जिन्नाह को सवालों के दायरे में लाकर खड़ा करे.”
शाहिद सिद्दीकी ने खोले राज
अब तो पाकिस्तान को भारत से अलग हुए भी 77-78 साल होने को जा रहे हैं. ऐसे में स्टेट मिरर हिंदी इस गड़े मुर्दे को आज सात-आठ दशक बाद क्यों उखाड़ रहा है? पाठकों के जेहन में इस सवाल का जवाब यह है कि, हाल ही में हमारे एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन ने समाजवादी पार्टी के पूर्व सासंद शाहिद सिद्दीकी से “पॉडकास्ट” में एक्सक्लूसिव बात की थी. वही शाहिद सिद्दीकी जिनका दावा है कि वे देश के तमाम पूर्व प्रधानमंत्रियों, कांग्रेस के तमाम कद्दावर नेताओं के “राजदार” या कहिए कि उनके करीबी रहे हैं. इसी के चलते उन्हें न केवल कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं की, अपितु अन्य पार्टियों के भी तमाम नामचीन-नेताओं की नब्ज की गति पता थी.
शाहिद सिद्दीकी को आखिर क्यों किसी केंद्रीय हुकूमत ने मंत्री नहीं बनाया
खुद में इस कदर के काबिल मंझे हुए राजनीतिज्ञ होने के बाद और देश के तमाम धुरंधर नेताओं की नब्ज की चाल से वाकिफ होने के बाद भी, शाहिद सिद्दीकी को आखिर कभी देश की किसी केंद्रीय हुकूमत ने किसी ताकतवर ‘मंत्री’ की कुर्सी पर सजाए जाने का मौका क्यों नहीं दिया? जबकि उन्हीं के दावे के मुताबिक वे राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी सहित तमाम पार्टियों और नेताओं के हम-प्याला-हम-निवाला थे. क्यों शाहिद सिद्दीकी को महज एक अदद और कांग्रेस व भाजपा की धुर-विरोधी राजनीतिक पार्टी “समाजवादी-पार्टी” की ही राज्यसभा सांसदी पाकर ही, दबे-पांव बेहद खामोशी के साथ देश की राजनीति से “बाहर” हो जाना पड़ा? यह बात जमाना जानता है और माकूल जवाब तो इसका सिर्फ और सिर्फ शाहिद सिद्दीकी, समाजवादी पार्टी जिसने उन्हें एक बार राज्यसभा भेजने के बाद उनका सहयोग लेने से तौबा कर ली, या अन्य किसी भी पार्टी ने (जैसे कि कांग्रेस, जिसका हर दबंग कद्दावर नेता) इनकी जेब में पड़े हुए थे, आखिर क्यों इन्हें सत्ता के सिहांसन का सुख भोगने का मौका आखिर क्यों नहीं दिया?
जाहिर सी बात है कि शाहिद सिद्दीकी जैसे जिस महत्वाकांक्षी नेता की 10 जनपथ, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, संजय गांधी, यानी गांधी परिवार में, बेरोक-टोक एंट्री रही हो. जिन शाहिद सिद्दीकी के दावे के मुताबिक उन्हें राजीव गांधी अपना “हमराज” माना करते थे, जो शाहिद सिद्दीकी राजीव गांधी के दिन-रात, हर सुख-दुख के साथी थे. आखिर फिर वह कौन सी कमी या वजह या “राज” था कि, तमाम काबिलियतों के बाद भी ऐसे शाहिद सिद्दीकी कभी भी कांग्रेस के लंबे शासनकाल में खुद को “कांग्रेसी सत्ता के शासनकाल में सिंहासन” पर नहीं सजवा पाए?
“जंगल में मोर नाचा” किसने देखा?
बहरहाल, छोड़िए आज जब देश में न तो कांग्रेस ताकतवर है और न ही आज इंदिरा गांधी, संजय गांधी या राजीव गांधी हमारे बीच मौजूद हैं. और न ही बीते कई दशक में यही शाहिद सिद्दीकी भी कांग्रेस में कोई खास पद ही हासिल कर सके. तो अब ऐसे में “जंगल में मोर नाचा” किसने देखा? आखिर जब शाहिद सिद्दीकी कांग्रेस और गांधी परिवार में इस कदर भीतर तक घुसे हुए थे तब फिर उन्हें कांग्रेस पार्टी की ओर से कभी कोई मंत्री-पद या राज्यसभा की सासंदी तक क्यों नहीं हासिल हो सकी? क्यों शाहिद सिद्दीकी को राजीव गांधी, सोनिया, इंदिरा गांधी का इतना करीबी (शाहिद सिद्दीकी के ही दावे के मुताबिक कि वे कांग्रेस परिवार में अंदर तक घुसे हुए थे, 10 जनपथ पर उनकी बेरोक-टोक उन 5-10 लोंगों में एंट्री थी जिनसे सुरक्षाकर्मी भी कभी कोई सवाल नहीं किया करते थे), राज्यसभा की सांसदी पाने तक के लिए आखिर समाजवादी पार्टी का ‘दामन’ क्यों थामना पड़ा? इसका जवाब तो कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और शाहिद सिद्दीकी ही बेहतर दे सकते हैं.
बंटवारे में मोहम्मद अली जिन्नाह की तो कोई सीधी भूमिका थी ही नहीं?
खैर, एक सवाल के जवाब में शाहिद सिद्दीकी ने एक और बड़ा तुरुप का पत्ता चला या कहिए कि अंधेरे में तीर चला, (क्यों चला इसके पीछे उनकी अंदरूनी क्या लंबी सोच या रणनीति रही होगी, यह वही बेहतर जानते होंगे) कि सन् 1947 में भारत के टुकड़े करवा कर पाकिस्तान बनवाने में मोहम्मद अली जिन्नाह की तो कोई सीधी भूमिका थी ही नहीं? वो तो अंग्रेजों का ‘मोहरा’ बन गए. बातचीत में एक तरफ तो शाहिद सिद्दीकी मोहम्मद अली जिन्ना को जिंदादिल, मनमौजी, पढ़ा-लिखा, निर्विवाद, विदेश में रहने का शौकीन, इंसान होने का दम भरते हैं. वहीं दूसरी ओर खुद ही कहते हैं कि जिन्नाह की भारत से पाकिस्तान को अलग करवाने में कोई भूमिक नहीं थी. जिन्नाह को तो अंग्रेजों ने भारत-पाकिस्तान बंटवारे में “मोहरा” बनाकर इस्तेमाल किया था?
अंग्रेजों ने जिन्ना को भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर लिया
अब ऐसे में भी सवाल खड़ा होना लाजिमी है कि, अगर जिन्ना बेहद सुलझे हुए, काबिल और उच्च-शिक्षित इंसान थे ही. तब फिर वह मास्टरमाइंड और भारत के कट्टर दुश्मन अंग्रेजों की बातों में आखिर अपनी तमाम काबिलियतों के बाद भी, कैसे उनका (धूर्त अंग्रेजों के) मोहरा बनकर इस्तेमाल कर लिए गए? क्या अपने समर्थकों में इस कदर के उच्च शिक्षित और बेहद सुलझे हुए समझे जाने वाले मोहम्मद अली जिन्नाह, वास्तव में अंग्रेजों के हाथों “मूर्ख” बना डाले गए हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे को लेकर? या फिर जिन्नाह के आज मौजूद समर्थक जिन्नाह की मौत के कई साल बाद भी किसी बुरे साए की मानिंद हाथ धोकर उनके नाम के साथ साथ चल रहे, भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दाग को धोने की कोशिशों में यह राग अलाप रहे हैं कि, “मोहम्मद अली जिन्नाह का तो हाथ ही नहीं था पाकिस्तान बनवाने में. वे तो “बिचारे” की भूमिका में थे सो उन्हें जबरिया साम दाम दण्ड भेद अपना कर अंग्रेजों ने भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर लिया. अगर यही सच है तो भी सवाल यह पैदा होता है कि आखिर जिन्नाह जैसा मास्टरमाइंड उच्च शिक्षित इंसान आखिर सिर्फ और सिर्फ भारत से पाकिस्तान को अलग करवाने की करतूत में ही अंग्रेजों द्वारा कैसे और क्यों कथित रूप से इस्तेमाल कर लिया गया? जिन्नाह का ऐसा बेजा इस्तेमाल अंग्रेजों ने और कहीं क्यों नहीं किया भारत के खिलाफ?”
इतिहास में कहीं आज क्यों लिखा हुआ पढ़ने को नहीं मिलता कि...
बातचीत के दौरान शाहिद सिद्दीकी कहते हैं, “दरअसल अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति थी. इसी का इस्तेमाल उन्होंने मोहम्मद अली जिन्नाह का भारत से पाकिस्तान को अलग करवाने में किया. न केवल जिन्नाह इस्तेमाल किए अपितु अंग्रेजों ने मुस्लिम लीग को भी इस घिनौने काम के लिए बेजा इस्तेमाल किया.” ऐसे में सवाल फिर वही कि आखिर जिन्नाह तो महान इंसान थे. उच्च-शिक्षित व्यक्तित्व थे. वे इतनी आसानी से अंग्रेजों के हाथों इस बात पर राजी हो ही कैसे गए कि, “जिसके चलते अंग्रेजों ने भारत से पाकिस्तान को अलग करवा डाला? अगर जिन्नाह भारत के मुरीद थे. भारत के प्रति 24 कैरट के ईमानदार थे, तब फिर इतिहास में कहीं आज क्यों लिखा हुआ पढ़ने को नहीं मिलता कि जिन्नाह ने अंग्रेजों के उस प्रस्ताव पर लात मार दी थी, जिसमें अंग्रेजों ने जिन्नाह के सामने भारत से पाकिस्तान को अलग करने का घिनौना प्रस्ताव रखा. क्यों नहीं मोहम्मद अली जिन्नाह ने खुलकर भारत के साथ खड़े होकर, अंग्रेजों का खुला विरोध करके भारत और भारतीयता के प्रति अपनी पाक-साफ नीयत की उजागर नहीं होने दिया.”
अब तो न जिन्नाह हैं न अंग्रेज
बहरहाल आज न जिन्नाह जिंदा हैं न ही उनका भारत पाकिस्तान को बांटकर, आने वाली पीढ़ियों के लिए ‘बबूल’ के पड़े लगा जाने वाले मक्कार अंग्रेज. भारत के साथ अब से 70 साल पहले जिस-जिसने और जो कुछ बुरा किया, वह फिर चाहे जिन्ना रहे हों या फिर अंग्रेज. हर किसी ने अपने “कुकर्मों” की सजा अपने ‘बुरे’ अंत के साथ भोगी. जिसका जमाना गवाह है. किसी को कुछ बताने, दिखाने या साबित करने की जरूरत नहीं है. आज जिसके मन में जो आ रहा है वो अपनी सुविधा अपने स्वार्थ की नजर से गा-बजा और सुना रहा है. फिलहाल इतिहास के पन्नों में दर्ज इतिहास को देखने-पढ़ने और आज के दौर में “बांक-बहादुरों” की बे-सिर-पैर की बातें सुनने से एक बात तो साफ हो जाती है कि, “भारत से पाकिस्तान को अलग करवाने में मोहम्मद अली जिन्नाह उस कदर के पाक-दामन भी नहीं रहे होंगे, जिस कदर आज उनके चंद चाहने वाले उनकी पाकीजगी का बीन बजाकर सुनाने पर आमादा हैं.”