अब अपराध नहीं रहेगी मानहानि? सुप्रीम कोर्ट ने कहा - बदलाव का समय आ गया है
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि अब समय आ गया है कि मानहानि को आपराधिक अपराध के तौर पर समाप्त किया जाए. यह टिप्पणी 2016 के उस फैसले के विपरीत है, जिसमें कोर्ट ने मानहानि कानून की संवैधानिक वैधता को मान्यता दी थी. हाल ही में द वायर और जेएनयू प्रोफेसर के बीच आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एमएम सुंदरेश ने कहा कि इसे अब सुधारने की आवश्यकता है. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी इस सुझाव का समर्थन किया.;
Supreme Court on Defamation Laws: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारत में मानहानि कानूनों (Defamation Laws) को अपराध से हटाने की संभावना को संकेत दिया. इस टिप्पणी का मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट 2016 के फैसले से अलग सोच रहा है, जिसमें अदालत ने कहा था कि मानहानि के खिलाफ आपराधिक कानून संवैधानिक रूप से वैध हैं, क्योंकि प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और गरिमा के मौलिक अधिकार में शामिल है।
Bar and Bench के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम.एम. सुंदरेश ने कहा, “मुझे लगता है कि अब मानहानि को आपराधिक अपराध से हटाने का समय आ गया है…” वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, जो ऑनलाइन प्रकाशन The Wire का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ने इस टिप्पणी का समर्थन करते हुए सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया.
2016 के एक लेख से जुड़ा है मामला
यह चर्चा JNU के एक प्रोफेसर द्वारा The Wire के खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि मामले को सुनते हुए हुई. मामला 2016 के उस लेख से जुड़ा है, जिसमें प्रोफेसर पर 'Jawaharlal Nehru University: The Den of Secessionism and Terrorism' नामक 200 पृष्ठीय विवादित रिपोर्ट तैयार करने का आरोप लगाया गया था, और JNU को 'Organised Sex Racket का केंद्र' बताया गया था. इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने The Wire के खिलाफ नोटिस को पहले ही सही ठहराया था.
समय के साथ बदल चुका है कानूनी प्रावधान
कानूनी प्रावधान समय के साथ बदल चुका है. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 को मानहानि के लिए वैध ठहराया था. अब इसे भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) की धारा 356 ने प्रतिस्थापित कर दिया है, जो अभी भी मानहानि को आपराधिक अपराध मानती है. सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां अब यह संकेत देती हैं कि आपराधिक दंड अब शायद उपयुक्त नहीं हैं, खासकर जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया रिपोर्टिंग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
मानहानि को आपराधिक अपराध मानने पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार है अदालत
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में कहा था कि आपराधिक मानहानि अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक उचित प्रतिबंध है और यह अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का एक अहम हिस्सा है. सोमवार की टिप्पणियां यह संकेत देती हैं कि अदालत अब मानहानि को आपराधिक अपराध मानने पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो सकती है, जिससे भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा के संरक्षण के बीच संतुलन बदल सकता है.
यह फैसला पत्रकारों, कानूनी विशेषज्ञों और नागरिक समाज द्वारा बारीकी से देखा जा रहा है, क्योंकि यह देश में मीडिया और आम जनता के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बड़ा असर डाल सकता है.