लोकसभा में गूंजा कैश कांड! जस्टिस वर्मा पर महाभियोग वार, CJI की सिफारिश के बाद स्पीकर ने बनाई तीन जजों की जांच कमेटी
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा पर कैश कांड के गंभीर आरोपों ने संसद में हलचल मचा दी है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने महाभियोग जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वरिष्ठ जजों वाली तीन सदस्यीय समिति गठित की है. 146 सांसदों के हस्ताक्षर और CJI की सिफारिश के बाद मामला सीधे महाभियोग प्रक्रिया में पहुंच गया है.;
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा से जुड़ा कैश कांड अब संसद तक पहुंच गया है. लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने मंगलवार को ऐलान किया कि इस मामले की गहन जांच के लिए तीन सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया है. आरोप है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं और कदाचार के सबूत सामने आए हैं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने भी गंभीर माना है.
इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत तब हुई जब लोकसभा स्पीकर को कुल 146 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव मिला. इस प्रस्ताव पर भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ-साथ विपक्ष के नेता ने भी हस्ताक्षर किए थे. दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से मांग की गई कि संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत जस्टिस वर्मा को उनके पद से हटाने की कार्रवाई की जाए. नियमों के मुताबिक, प्रस्ताव को पर्याप्त समर्थन और गंभीर आरोपों का आधार मिलने के बाद महाभियोग की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी गई.
उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन
लोकसभा अध्यक्ष ने जिस समिति की घोषणा की है, उसमें न्यायपालिका के तीन दिग्गज शामिल हैं- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस मनिंदर मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं वरिष्ठ कानूनविद बी. वी. आचार्य. इस समिति को मामले की पूरी छानबीन कर रिपोर्ट सौंपनी होगी. रिपोर्ट आने तक महाभियोग प्रस्ताव संसद में लंबित रहेगा.
सुप्रीम कोर्ट और CJI की गंभीर टिप्पणी
स्पीकर बिरला ने यह भी खुलासा किया कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने जस्टिस वर्मा के मामले पर इन-हाउस जांच करवाई थी. इस जांच में दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की राय भी शामिल थी. दोनों ने माना कि आरोप इतने गंभीर हैं कि विस्तृत और स्वतंत्र जांच जरूरी है. CJI की सिफारिश पर ही यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भेजी गई थी, जिसके बाद संसद में प्रस्ताव आया.
आरोपों में भ्रष्टाचार और आचरणहीनता के संकेत
हालांकि आरोपों की पूरी डिटेल सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन स्पीकर के बयान से संकेत मिलता है कि मामला सिर्फ वित्तीय अनियमितताओं तक सीमित नहीं है. इसमें ऐसे पहलू भी हैं जो न्यायपालिका की गरिमा और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं. भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते ये तथ्य, अदालत में जनता के विश्वास को हिला सकते हैं. यही कारण है कि संसद ने मामले को सीधे महाभियोग प्रक्रिया में डालने का फैसला किया.
आरोप सही होने पर क्या होगा?
अब पूरी जिम्मेदारी तीन सदस्यीय जांच समिति की है, जो सबूत, गवाहों और दस्तावेज़ों की जांच करेगी. अगर समिति अपनी रिपोर्ट में आरोप सही पाती है तो संसद में महाभियोग पर मतदान होगा. दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत मिलने पर राष्ट्रपति के आदेश से जस्टिस वर्मा को पद से हटाया जा सकता है. यह मामला न केवल न्यायपालिका में पारदर्शिता पर बहस को हवा देगा, बल्कि राजनीति में भी नए समीकरण खड़े कर सकता है, क्योंकि इस प्रस्ताव में सत्ता और विपक्ष दोनों का समर्थन शामिल है.