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सुप्रीम कोर्ट में ‘XXX’ के नाम से याचिका, ऐसा करने वाला कोई आम आदमी नहीं, खुद जज हैं! क्यों छिपाई पहचान?

सुप्रीम कोर्ट में ‘XXX’ नाम से दायर एक याचिका ने सबको चौंका दिया… यह याचिका कोई आम नागरिक नहीं, खुद एक मौजूदा हाईकोर्ट जज की ओर से दाखिल की गई है. आखिर एक न्यायाधीश अपनी पहचान क्यों छुपाना चाहता है? क्या वजह है इस गोपनीयता की? क्या इससे न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं? जानिए, इस अनोखी याचिका की पूरी कहानी.

सुप्रीम कोर्ट में ‘XXX’ के नाम से याचिका, ऐसा करने वाला कोई आम आदमी नहीं, खुद जज हैं! क्यों छिपाई पहचान?
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( Image Source:  Pakhi Shukla @pakhishukla21 )

सोचिए, अगर कोई आम आदमी ‘XXX’ के नाम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाले… तो शायद पहली ही तारीख पर फटकार पड़ जाए…, लेकिन जब हाईकोर्ट का जज खुद ऐसा करे? तब? दरअसल, एक चौंकाने वाले मामला सामने आया है, जहां एक मौजूदा हाईकोर्ट जज ने खुद की पहचान छिपाकर ‘XXX’ के नाम से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस याचिका में क्या मांग की गई है? पहचान छिपाने की वजह क्या है? और क्या ये ट्रेंड नया संकट बन सकता है?

दरअसल, दिल्ली स्थित अपने आधिकारिक आवास पर मिली नकदी की बोरियों के मामले में संसद में निष्कासन प्रस्ताव का सामना कर रहे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक गुप्त याचिका दायर की थी. उन्होंने अपनी याचिका के जरिए शीर्ष अदालत से आंतरिक जांच रिपोर्ट और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश द्वारा उन्हें न्यायाधीश पद से हटाने की सिफारिश को रद्द करने की मांग की है. ताज्जुब की बात यह है कि जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका "XXX" के क्यों दायर की. उन्होंने नाम छुपाने की कोशिश क्यों की है? क्या वो कोठी से कैठ मिलने के मामले को कोई नया मोड़ देना चाहते हैं, क्या?

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ सोमवार को उनकी याचिका पर सुनवाई करेगी. याचिका में उनका नाम "XXX" लिखा है. अपने नाम के लिए इस तरह कोडिंग का इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के रिकॉर्ड में यौन उत्पीड़न या हमले की शिकार याचिकाकर्ता महिलाओं की पहचान छिपाने के लिए किया जाता है. इसका इस्तेमाल वैवाहिक हिरासत के विवादों में फंसे किशोरों और नाबालिगों की पहचान उजागर होने से रोकने के लिए भी किया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में सभी अदालतों से बलात्कार पीड़ितों के नाम उजागर न करने को कहा है.

SC ने 24 जुलाई को दर्ज की थी याचिका

लोकसभा अध्यक्ष इस हफ्ते मुख्य न्यायाधीश को पैनल सदस्यों के नाम लिखने के लिए पत्र लिख सकते हैं. "XXX" बनाम भारत संघ" शीर्षक वाली न्यायमूर्ति वर्मा की याचिका इस साल सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई 699 वीं दीवानी रिट याचिका है. केंद्र जहां पहला प्रतिवादी है, वहीं सुप्रीम कोर्ट खुद दूसरा प्रतिवादी है। यह याचिका 17 जुलाई को दायर की गई थी और रजिस्ट्री द्वारा बताई गई कमियों को दूर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई को याचिका दर्ज की थी.

दिलचस्प बात यह है कि जहां "XXX बनाम भारत संघ" याचिका न्यायमूर्ति दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष क्रम संख्या 56 पर सूचीबद्ध है, वहीं अधिवक्ता मैथ्यूज जे नेदुमपुरा की एक न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ नकदी, उसके जलने और उसके बाद गायब होने के रहस्य को उजागर करने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की मांग को लेकर दायर एक याचिका भी दर्ज है.

LS में वर्मा के खिलाफ निष्कासन नोटिस स्वीकार

इस बीच, लोकसभा ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ 150 से अधिक सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित एक निष्कासन नोटिस स्वीकार कर लिया है. लोकसभा अध्यक्ष इस सप्ताह मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई को पत्र लिखकर एक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश और एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम मांग सकते हैं, जो न्यायाधीश जांच अधिनियम, 1968 के तहत एक जाँच समिति का हिस्सा होंगे।

इस मामले में आगे क्या होगा?

लोकसभा स्पीकर की मांग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति के गठन के लिए एक प्रतिष्ठित न्यायविद को नामित करेंगे. 'कोठी में नकदी' विवाद के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रत्यावर्तित न्यायमूर्ति वर्मा ने अपनी याचिका में आंतरिक जांच रिपोर्ट की वैधता को चुनौती दी है, जिसमें उन्हें उनके आवासीय परिसर में बेहिसाब नकदी रखने का दोषी पाया गया है. उन्होंने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया है कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा 8 मई को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को उन्हें हटाने की सिफारिश को असंवैधानिक घोषित किया जाए.

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