तुमसे न हो पाएगा! वादे, जुमले और विदेश छुट्टी के बाद क्या करने का है प्लान... राहुल गांधी के नाम खुला पत्र
यह एक खुला पत्र है जो राहुल गांधी के नेतृत्व, कांग्रेस की वर्तमान स्थिति और चुनावी रणनीतियों पर तीखा सवाल उठाता है. इसमें गठबंधन की राजनीति, हार के बाद के रवैये और पार्टी की दिशा पर गंभीर आलोचना की गई है. यह पत्र एक जागरूक नागरिक की आवाज़ है जो नेतृत्व में स्पष्टता, ज़िम्मेदारी और ईमानदारी की मांग करता है.;
प्रिय राहुल गांधी जी, आपसे बहुत बार कुछ कहने की कोशिश की, पर अब लगता है कि खुलकर, सीधे और स्पष्ट शब्दों में बात करनी ही पड़ेगी. क्योंकि देश का भविष्य मज़ाक नहीं है, और आप इसे मज़ाक की तरह लेते आए हैं. सबसे पहले तो एक बात साफ़ कर दूं कि कांग्रेस अब पहले जैसी नहीं रह गई है जैसा 2014 से पहले थी. अब आप अकेले चुनाव लड़ने में सक्षम नहीं हैं. इसी वजह से आपको विपक्षी दलों को एकजुट करके महागठबंधन बनाने की जरूरत पड़ी. अब आप उसी के सहारे सभी चुनावी लहरों में अपनी नैया पार करना चाहते हैं.
आपने बिहार की राजधानी पटना में आयोजित संविधान सुरक्षा सम्मलेन में कहा कि अलग अलग चुनाव लड़कर एनडीए को हराया नहीं जा सकता है. अगर एनडीए को हराना है तो महागठबंधन के सभी दलों को एकजुट होकर चुनाव लड़ना होगा.
लेकिन जब चुनाव के नतीजे आते हैं तो आपको करारी हार का सामना करना पड़ता है. फिर आप कहते हैं कि मैं सीख रहा हूं, मैं लड़ रहा हूं. पर साहब, एक आदमी अपनी हार से सीखता है पर आप? आपकी तो हर हार एक नई बहानेबाज़ी बन जाती है. जब भी चुनाव होते हैं, आप मंच पर आते हैं, कुछ पुरानी बातें दोहराते हैं और हारने के बाद एक दो ट्वीट कर के विदेशों में छुट्टी मनाने चले जाते हैं. ये कोई नेतृत्व नहीं होता, ये तो भागने का दूसरा नाम है. कांग्रेस अब कोई पारिवारिक जागीर नहीं है, न ही देश की जनता अब किसी खानदान की वफादार है.
इससे पहले 8 मार्च को जब आप गुजरात गए थे तब आपने कहा था कि गुजरात नया विकल्प चाह रहा है, लेकिन कांग्रेस पार्टी उसे दिशा नहीं दिखा पा रही है. यह सच्चाई है और इसे कहने में मुझे कोई शर्म या डर नहीं है. हमें कांग्रेस की उसी विचारधारा पर लौटना होगा, जो गुजरात की विचारधारा है. जो गांधी जी और सरदार पटेल जी ने हमें सिखाई थी. हमें जनता के बीच जाना होगा, उनकी बातें सुननी होंगी. हमें दिखाना होगा कि हम सिर्फ नारे लगाने नहीं, बल्कि उनकी समस्याओं का समाधान ढूंढने आए हैं. चलिए आपने माना कि शीर्ष नेतृत्व के पास पार्टी को बेहतर करने का कोई नया विजन नहीं है.
बहुत दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि राजनीति आपके DNA में नहीं है. हर बार वही पुरानी स्क्रिप्ट ‘संविधान खतरे में है’, ‘हम लड़ेंगे’, ‘हम डरेंगे नहीं’. हर बार वही ढाक के तीन पात, आप संविधान की कॉपी लेकर खड़े हो जाते हैं. जैसे आपने उसे हथियार बना रखा हो. आप हर बार यही बोलते रहते हैं, और लोग आपसे दूर होते जाते हैं. अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस आपकी निजी जर्नी है या 140 करोड़ देशवासियों की उम्मीद?
सच्चाई ये है, राहुल जी, आपको न पार्टी संभालना आता है, न संगठन संभालने आता है. जहां नेहरू-इंदिरा की विरासत पार्टी को एक दिशा देती थी, आज कांग्रेस दिशाहीन हो चुकी है. माफ कीजिए, ये बात कड़वी है पर सच्ची... कुछ लोग पैदा होते हैं विपक्ष में बैठने के लिए. और दुर्भाग्य से आप उनमें से ही हैं. देश को नेता चाहिए, दर्शक नहीं.
दूध का जला मट्ठा भी फूंक-फूंककर पीता है. जनता भी अब समझदार हो गई है. आप पर भरोसा करके जनता कई बार जल चुकी है. अब वो विकल्प तलाश रही है, पर अफ़सोस, कांग्रेस में उसे विकल्प नहीं दिखता. और आप हैं कि मानते नहीं. न हार मानते हैं, न गलती मानते हैं, न रास्ता बदलते हैं. बस, वही रटी-रटाई लाइनें और खोखला आत्मविश्वास.
इस पत्र का मक़सद आपको नीचा दिखाना नहीं है, बल्कि आपको यह दिखाना है कि आपके पास अब भी समय है. पर कब तक? क्योंकि समय भी ठहरता नहीं, और देश तो बिल्कुल नहीं. आप सुधरिए, या फिर पार्टी को किसी ऐसे हाथों में दीजिए जो उसे बचा सके.
आपका शुभचिंतक,
एक जागरूक भारतीय नागरिक