कुतुबुद्दीन ऐबक ने मात्र 60 घंटे में बनवाया था अढ़ाई दिन का झोपड़ा, 800 साल पुराना है इतिहास

संभल और अजमेर शरीफ में जारी विवाद के बीज राजस्थान के अजमेर में मौजूद अढाई दिन के झोपड़े की काफी चर्चा सुनाई दे रही है. बता दें कि हिंदू, मुस्लिम समेत जैन समाज के मिले जुले आर्किटेक्चर इस मस्जिद में देखने को मिलते हैं. लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि इस मस्जिद को अढाई दिन का झोपड़ा क्यों कहा जाता है?;

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Edited By :  सार्थक अरोड़ा
Updated On : 1 Dec 2024 7:35 AM IST

मंदिर मस्जिद का विवाद कई सालों से चलता आ रहा है. लेकिन इस बीच संभल और अजमेर शरीफ में जारी विवादविवाद चल रहा है. इस बीच एक मस्जिद का जिक्र किया जा रहा है. जिसे 800 साल पहले तैयार किया गया था. अंदर से देखा जाए तो मस्जिद में हिंदू, मुस्लिम समेत जैन आर्किटेक्चर की मिली जुली झलक देखने मिलती हैं. हम बात कर रहे हैं. अजमेर में प्रसिद्ध मस्जिद 'अढाई दिन के झोंपड़े' की.

लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि आखिर इस 800 साल पुरानी को मस्जिद को अढाई दिन की मस्जिद क्यों कहा जाता है? आज हम आपको मस्जिद के निर्णाण से लेकर इसके पीछे की जानकारी देने वाले हैं.

कैसे पड़ा इसका ये नाम?

राजस्थान के अजमेर में प्रसिद्ध इस मस्जिद जिसे ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ भी कहा जाता है. कई लोग इसके नाम के पीछे के इतिहास को जानने की उत्सुकता रखते हैं. कई जानकारियों के अनुसार इस मस्जिद का नाम उस समय रखा गया जब मुहम्मद गोरी ने गुजरात से निकलते समय में इस इमारत को देखा था. जिसके बाद उन्होंने इसे मस्जिद में बदलने का आदेश दिया. कहा जाता है कि इसके निर्माण में सिर्फ ढाई दिन का समय लगा था. इस कारण से इसे अढाई दिन का झोंपड़ा के नाम से जाना जाता है. कई जानकारी ऐसी भी हैं कि मुहम्मद गोरी ने अपने सेनापति से इस सुंदर जगह को मस्जिद में बदलने का आदेश देते हुए सिर्फ 60 घंटो का समय दिया था. आदेश को पूरा करना था लेकिन ऐसा करना मुमकिन भी नहीं था. इसलिए कम समय रहने के कारण इसमें ऐसे बदलाव कर दिए गए कि यहां नमाज पढ़ी जा सके. उस समय से वहां मस्जिद का निर्माण हुआ और इसे अढाई दिन का झोपड़ा कहा जाने लगा.

संस्कृत स्कूल को तोड़कर बनवाई गई मस्जिद

इतिहास में जब-जब इस मस्जिद का जिक्र हुआ है. उस समय एक बहस छिड़ी है, कि संस्कृत कॉलेज को तुड़वाकर इसका निर्माण किया गया है. कहा जाता है कि इस कॉलेज में संस्कृत के कई विषयों के बारे में पढ़ाया और समझाया जाता था. लेकिन उस समय के शासक रहे मोहम्मद गोरी की नजर जब इसपर पड़ी तो उन्होंने इसे तुड़वाकर यहां मस्जिद का निर्माण करवा दिया. अपने शासक के आदेशों का पालन करते हुए सेनापति ने यहां कम समय रहते हुए इमारत को तोड़ा और मस्जिद बनवा दी.

आज भी संस्कृत स्कूल के हैं सबूत

1192 ईस्वी में तैयार हुए ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़े’ के अंदर ही कई ऐसे सबूत मिलते हैं जो इस बात का प्रमाण दे सकते हैं कि मस्जिद से पहले यहां संस्कृत स्कूल या फिर मंदिर था. इसके गेट के अंदर घुसने के दौरान ही बायीं ओर एक संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है. इस शिलालेख में स्कूल का जिक्र मिलता है. हालांकि बदलावों के बाद से ही इसे मस्जिद के रूप में जाना जाता है.

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