तुम्हारे दादा अंग्रेज़ों की चापलूसी कर रहे थे... औकात में रहो! 14 अगस्त की शुभकामनाएं मिलने पर भड़के Javed Akhtar

गीतकार जावेद अख्तर जिन्हें उनके बेबाक अंदाज के लिए जाना जाता है. उन्होंने एक बार फिर ट्रोलर्स की बोलती बंद कर दी है. मौका था 15 अगस्त का जब उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर आजादी के दिवस की शुभकामनाएं दी. लेकिन उन्हें 14 अगस्त मनाने के सुझाव मिलने लगे, फिर क्या था जावेद साहब ने ऐसा करारा जवाब दिया कि ट्रोलर्स की बोलती ही बंद हो गई.;

( Image Source:  Instagram : Baithak UK )
Edited By :  रूपाली राय
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भारत ने इस साल अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस बड़े जोश और गर्व के साथ मनाया. इस खास मौके पर देश के जाने-माने गीतकार और लेखक जावेद अख्तर ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स हैंडल के ज़रिए लोगों को शुभकामनाएं दीं. जावेद अख्तर ने अपने संदेश में सभी भारतीयों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देते हुए यह याद दिलाया कि आजादी हमें यूं ही आसानी से नहीं मिली, बल्कि इसके लिए हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी दी, जेलें काटीं और फांसी के फंदे पर चढ़े.

उन्होंने लिखा, टमेरे सभी भारतीय भाइयों और बहनों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि यह आज़ादी हमें थाली में परोसकर नहीं दी गई थी. आज हमें उन लोगों को याद करना चाहिए और सलाम करना चाहिए जिन्होंने जेल की सज़ा सही और जिन्होंने फांसी का सामना किया. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इस अनमोल तोहफ़े आज़ादी को कभी खोने न दें.'

जावेद साहब ने कहा- औकात में रहो

हालांकि, उनकी इस देशभक्ति से भरी पोस्ट के बाद, एक ट्रोल ने उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश की. उस ट्रोल ने कमेंट करते हुए लिखा, 'आपको 14 अगस्त की आज़ादी की शुभकामनाएं.' इस टिप्पणी का मतलब यह था कि जावेद अख्तर को भारत की बजाय पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस (14 अगस्त) मनाना चाहिए.' लेकिन जावेद अख्तर ने चुप रहने के बजाय उसी मंच पर सीधे और बेबाक अंदाज़ में जवाब दिया. उन्होंने लिखा, 'बेटा, जब तुम्हारे बाप-दादा अंग्रेज़ों की चापलूसी कर रहे थे, तब मेरे बुज़ुर्ग देश की आज़ादी के लिए अंडमान के काला पानी में जान दे रहे थे इसलिए अपनी औक़ात में रहो.'

आजादी में योगदान 

यह जवाब सुनकर ट्रोल भी शांत हो गया और सोशल मीडिया पर लोग जावेद अख्तर की हिम्मत और सटीक जवाब की तारीफ करने लगे. यहां 'काला पानी' से जावेद अख्तर ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल का ज़िक्र किया. ब्रिटिश हुकूमत के समय इस जेल में स्वतंत्रता सेनानियों को बेहद कठोर और अमानवीय सज़ाएं दी जाती थी. कई सेनानी वहां या तो बीमारियों से मर गए या उन्हें जान से मार दिया गया. जावेद अख्तर के पूर्वजों का भी भारत की आज़ादी में बड़ा योगदान रहा है. उनके परदादा फ़ज़ल-ए-हक़ खैराबादी (1797-1861) प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान और कवि थे. उन्होंने 1857 की क्रांति का समर्थन किया और अंग्रेज़ों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया था. इसी कारण उन्हें अंडमान की जेल (काला पानी) में भेज दिया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई. उनके दादा, मुज़्तर खैराबादी, भी मशहूर शायर थे और स्वतंत्रता और प्रतिरोध की आवाज़ उठाते थे. उनके पिता, जां निसार अख्तर, भी जाने-माने कवि थे और उन्होंने अपनी कविताओं में स्वतंत्रता, समानता और सामाजिक न्याय के विषयों को मजबूती से उठाया. 

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