India Shining से प्रभावित हो BJP में हुए शामिल, बीकानेर से बने सांसद- फिर राजनीति से बना ली दूरी; आखिर क्यों टूट गए थे धर्मेंद्र?

धर्मेंद्र का राजनीतिक सफर बेहद छोटा लेकिन चर्चा से भरा रहा. 2004 में BJP के ‘India Shining’ अभियान से प्रभावित होकर वे राजनीति में आए और बीकानेर से भारी बहुमत से लोकसभा पहुंचे, लेकिन संसद में कम उपस्थिति, सिस्टम से निराशा और भावनात्मक घुटन के कारण उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली. बाद में उन्होंने खुलकर कहा कि राजनीति उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी और यह अनुभव उनके लिए मानसिक रूप से थका देने वाला रहा. अपने परिवार की राजनीतिक सक्रियता के बावजूद धर्मेंद्र ने कभी वापसी नहीं की.;

( Image Source:  instagram.com/aapkadharam )
Edited By :  अच्‍युत कुमार द्विवेदी
Updated On : 24 Nov 2025 11:26 PM IST

Dharmendra politics BJP journey India Shining campaign: भारतीय सिनेमा के छह दशकों तक चमकते सितारे रहे धर्मेंद्र ने भले ही करोड़ों दिलों पर राज किया हो, लेकिन उनकी राजनीतिक यात्रा बेहद छोटी और उतार-चढ़ाव से भरी रही. 89 साल की उम्र में निधन से पहले उन्होंने फिल्मों की तरह राजनीति में भी दमदार एंट्री की, लेकिन यह दुनिया उन्हें रास नहीं आई.  साल 2004 में बीजेपी के ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान से प्रभावित होकर धर्मेंद्र राजनीति में उतरे. वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी और शत्रुघ्न सिन्हा से मुलाकातों के बाद उन्होंने औपचारिक रूप से बीजेपी जॉइन की.

धर्मेंद्र उसी साल राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और कांग्रेस उम्मीदवार रामेश्वर लाल डूडी को 60,000 से अधिक वोटों से हराकर लोकसभा पहुंच गए. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में उस समय बीजेपी भले ही केंद्र की सत्ता खो चुकी थी, लेकिन धर्मेंद्र की लोकप्रियता, सादगी और पंजाबी आकर्षण ने उन्हें संसद तक पहुंचा दिया.

5 साल का कार्यकाल, लेकिन विवादों के साए में

धर्मेंद्र का सांसद के रूप में कार्यकाल (2004–2009) उतना सफल नहीं रहा, जितनी बड़ी जीत उन्होंने हासिल की थी. वे अक्सर 'अनुपस्थित सांसद' कहलाए- संसद में कम उपस्थिति, सीमित जनसंपर्क और ज्यादा समय फिल्मों और अपने फार्महाउस में बिताने को लेकर उन्होंने आलोचना झेली. हालांकि समर्थक दावा करते रहे कि वे पर्दे के पीछे से काम करते थे और उनका कार्यालय लगातार जनता की समस्याओं पर नजर रखता था. धर्मेंद्र भी कई बार कह चुके थे कि वे ईमानदारी से काम करते थे, लेकिन उन्हें उसका श्रेय नहीं मिलता.

“मैं राजनीति में घुटन महसूस करता था

राजनीति से दूरी बनाने का सबसे बड़ा कारण उनकी भावनात्मक टूटन थी. उन्होंने एक सभा में कहा था, “मैं राजनीति में घुटन महसूस करता था. जिस दिन राजनीति में आने के लिए राज़ी हुआ, मैंने वॉशरूम में जाकर आईने पर सिर मारा… राजनीति मेरे बस की बात नहीं थी.” उनके बेटे सनी देओल ने भी बाद में कहा कि पिता राजनीति में आकर पछताते थे और यह अनुभव उनके लिए मानसिक रूप से थका देने वाला था. धर्मेंद्र ने कभी खुलकर सिस्टम की जटिलताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा था, “काम मैं करता था, क्रेडिट कोई और ले जाता था… शायद वो जगह मेरी नहीं थी.”

परिवार रहा राजनीति में सक्रिय, पर धर्मेंद्र ने दूरी बनाए रखी

धर्मेंद्र के बाद भी देओल परिवार ने राजनीति जारी रखी... उनकी पत्नी हेमा मालिनी तीन बार से मथुरा से BJP की सांसद रहीं. इससे पहले, 2004–2009 तक वे राज्यसभा में भी रहीं. वहीं, उनके बेटे सनी देओल 2019 में गुरदासपुर से सांसद बने. इस दौरान चुनाव प्रचार में पिता ने उनका बखूबी साथ दिया. धर्मेंद्र हमेशा कहते थे कि वे भाषण देने वाले नेता नहीं, दिल से बात करने वाले इंसान हैं. वे कहते थे, “मैं कोई नेता नहीं… भाषण नहीं देता, बस दिल की बात कहता हूं.”

किसान आंदोलन पर समर्थन

2020 के किसान आंदोलन के दौरान धर्मेंद्र ने केंद्र सरकार से किसानों की समस्याओं के समाधान की अपील की थी... लेकिन ट्रोलिंग के चलते उन्हें अपना पोस्ट हटाना पड़ा. एक यूज़र की टिप्पणी पर उन्होंने लिखा था, “आप मुझे गाली दें, मुझे खुशी मिलेगी कि आप खुश हैं… पर मैं अपने किसान भाइयों के लिए दुखी हूं.”

फिल्मी सफलता जैसी चमक राजनीति में नहीं मिली

धर्मेंद्र ने राजनीति में आते ही चुनाव जीत लिया था, लेकिन यह दुनिया उनकी संवेदनशील प्रकृति के बिल्कुल विपरीत साबित हुई. 2009 के बाद उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा. भावनात्मक थकान, राजनीतिक कटुता और सिस्टम से निराशा ने उन्हें राजनीति से पूरी तरह दूर कर दिया — यह स्वीकार करने के बावजूद कि उन्होंने प्रयास किए थे, लेकिन यह संसार उनके लिए नहीं था.

Similar News