Gangster Qadir Manta: पाले हुए बदमाश ‘पुलिस-वसूली’ के चलते फिरते ATM, सिपाही के कत्ल में भी पुलिसिया चूक!
गाजियाबाद के नाहल गांव में कुख्यात गैंगस्टर कादिर मंटा को पकड़ने गई नोएडा पुलिस पर गांववालों ने हमला कर दिया, जिसमें सिपाही सौरभ देशवाल की गोली लगने से मौत हो गई. पूर्व DGP विक्रम सिंह ने पुलिस तंत्र की खामियों और लोकल पुलिस की मिलीभगत पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि कादिर जैसे अपराधी अक्सर लोकल थानों के लिए 'ब्लैक मनी ATM' होते हैं. नोएडा पुलिस ने मसूरी थाने में आमद नहीं दर्ज की, जिससे बदमाशों को समय रहते बच निकलने का मौका मिला.;
दो-तीन दिन पहले गाजियाबाद जिले के थाना मसूरी (Ghaziabad Police) इलाके में स्थित नाहल (Nahal Village Ghaziabad) गांव में, नोएडा पुलिस (Noida Police) के सिपाही सौरभ देशवाल के कत्ल के पीछे की परतें अब धीरे-धीरे खुलकर सामने आ रही हैं. सिपाही सौरभ देशवाल के कत्ल से यह तो साफ हो चुका है कि जिस गैंगस्टर कादिर मंटा (Gangster Qadir Manta History Sheeter) को पकड़ने के लिए आधी रात नोएडा पुलिस कादिर के गांव नाहल पहुंची थी, वह कादिर पुलिस से ज्यादा काबिल और तिकड़मी या कहिए कि खाकी वर्दी से भी चार कदम आगे निकला.
अगर नोएडा पुलिस अपने शिकार यानी बदमाश हिस्ट्रीशटर कादिर मंटा से ज्यादा काबिल या चतुर होती तो आज, उसका (गौतमबुद्ध नगर नोएडा जिला पुलिस) बहादुर सिपाही सौरभ देशवाल कादिर मंटा जैसे गली-कूचे के किसी गैंग द्वारा आधी रात को इतनी आसानी से कत्ल न किया गया होता! यह आप किस आधार पर कह रहे हैं?
मसूरी थाने के रोजनामचे की जांच हो
स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम-इनवेस्टीगेशन के पूछने पर 1974 बैच यूपी कैडर के पूर्व आईपीएस अधिकारी और, उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (रि.) डॉ. विक्रम सिंह बोले, ‘मैं पुष्टि तो नहीं कर सकता हूं, मगर मैंने मीडिया में आ रही खबरों से ही देखा पढ़ा सुना है कि, जब नोएडा पुलिस की टीम (दारोगा उदित सिंह, निखिल, सिपाही सचिन, सौरभ देशवाल, संदीप कुमार और सोनित) आधी रात को नाहल गांव (जहां मोस्ट वॉन्टेंड बदमाश कादिर मंटा रहता है) पहुंची, तो नोएडा पुलिस टीम ने लोकल पुलिस स्टेशन (मसूरी थाना जिला गाजियाबाद) के रोजनामचा में अपनी आमद तक दर्ज नहीं कराई थी. जबकि सुरक्षा और कानून के लिहाज से होना यह चाहिए कि नोएडा पुलिस को, स्थानीय थाने के रोजनामचा (मसूरी थाना) में इंट्री करवानी चाहिए थी कि वह (नोएडा पुलिस टीम), नाहल गांव (थाना मसूरी क्षेत्र) में मौजूद बदमाश कादिर मंटा को घेरने जा रहे हैं.''
उन्होंने कहा कि ''अब यह जांच का विषय है कि क्या नोएडा पुलिस ने थाना मसूरी में अपनी आमद दर्ज कराई थी या नहीं? यह जांच से ही साबित हो पाएगा. अगर नोएडा पुलिस ने मसूरी थाने के रोजनामचा में आमद दर्ज करवाई तो, सवाल यह है कि क्या मसूरी थाने का कोई हथियारबंद पुलिसकर्मी, नोएडा पुलिस के साथ गया था? दूसरे, यह भी जांच होनी चाहिए कि अगर नोएडा पुलिस ने मसूरी थाने के रोजनामचा में कादिर मंटा के अड्डे पर छापा मारने की आमद-सूचना दर्ज नहीं कराई तो क्यों नहीं कराई?''
लोकल थाने को सूचित करने से पुलिस बचती है
नोएडा पुलिस ने मसूरी थाने में अपनी आमद क्यों नहीं कराई होगी? स्टेट मिरर हिंदी के सवाल पर, पूर्व पुलिस महानिदेशक यूपी और मेरठ रेंज के तत्कालीन डीआईजी/आईजी (गाजियाबाद जिला पुलिस में कमिश्नर प्रणाली लागू होने से पहले तक गाजियाबाद पुलिस जिला आता था इसी मेरठ रेंज की सीमा में आता था) डॉ. विक्रम सिंह बोले, “ऐसा आज इसी कांड में नहीं हुआ है. जब मैं पुलिस की नौकरी में था. तब और उसके बाद आज तक भी निर्बाध, यूपी सहित तमाम राज्यों की पुलिस महकमे में यह ‘कुरीति’ फैली हुई है कि, बाहरी थाने की पुलिस जिस लोकल थाना-क्षेत्र में छापा मारने जाती है, अमूमन कई बार अपनी आमद (छापा मारने की लिखित सूचना) स्थानीय थाना पुलिस को लिखित में अक्सर देने से कतराती है.”
कादिर मंटा पुलिस के ‘ब्लैक-मनी-बैंक’
बेबाकी से उसी पुलिस की खामियों को उजागर करते हुए उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह बोले, “इसकी एक प्रमुख और इकलौती वजह है कि लोकल थाना पुलिस और बदमाशों की बेहद जबरदस्त दोस्ती होती है. क्योंकि कादिर मंटा जैसे बदमाश/ हिस्ट्रीशीटर/गैंगस्टर लोकल थाना पुलिस से दोस्ती गांठकर उसे, मोटा पैसा पुहंचाते हैं. ऐसे में सोचिए भला कि लोकल पुलिस क्यों कभी चाहेगी कि, कोई बाहरी पुलिस टीम आकर उसकी (लोकल थाना पुलिस) रोजाना या महीने में एक बार या फिर, वीकली सोने का अंडा देने वाली मुर्गी (कादिर मंटा जैसे खतरनाक अपराधी) को ही उड़ा ले जाए (गिरफ्तार करके ले जाए)?
पुलिस वसूली के चलते-फिरते ATM हैं कादिर मंटा!
36-40 साल की आईपीएस/पुलिस की नौकरी में मैंने जो कुछ अनुभव किया है उसके अनुसार तो, कादिर मंटा जैसे गली-कूचे के गुंडे-बदमाश लोकल थाना पुलिस के लिए चलते-फिरते ‘ब्लैक-मनी-बैंक’ हैं. तमाम थाना-पुलिस-चौकी-बीट अफसरों के लिए तो, कादिर मंटा जैसे अपराधियों को मैं उनका अवैध-वसूली एटीएम कहूं तो अनुचित नहीं होगा. ऐसा नहीं है कि देश के हर थाने-चौकी की पुलिस ही हफ्ता वसूली में जुटी है. हां, इतना जरूर है कि जो थाने-चौकी बदमाशों से दोस्ती-वसूली से बचे होंगे. उन थाना क्षेत्रों में अपराधों और अपराधियों का नंबर भी बेहद नीचे रहता है.”
असली एनकाउंटर मतलब खतरे में पुलिस!
इसीलिए आप देख लीजिए पुलिस एनकाउंटर्स का इतिहास उठाकर कि, जब जहां और जो असली एनकाउंटर होगा, उसमें पक्का पुलिस वाला या पुलिस टीम के बहुत हद तक नुकसान उठाने के चांस बने रहते हैं. फिर चाहे वह दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का बाटला हाउस वाला एनकांउटर हो, जिसमें मोहन चंद शर्मा शहीद हो गये. या फिर कानपुर के माफिया विकास दुबे के साथ पुलिस टीम की असली मुठभेड़. अथवा दो चार दिन के अंदर ही हुई गाजियाबाद के मसूरी थाना क्षेत्र में नोएडा पुलिस और बदमाश कादिर मंटा के बीच नाहल गांव में हुई मुठभेड़.”
पाले हुए बदमाशों से ‘वसूली’ धंधा खतरनाक!
पुलिस थानों का यह काला-कारोबार जब मैं यूपी का डीजीपी (DGP Uttar Pradesh Police) बना तब भी था. और इन थानों के बीच फैली इसी दुश्मनी-वैमनस्यता का नाजायाज फायदा अपराधी उठाते हैं. क्योंकि वे (कादिर मंटा जैसे खूंखार अपराधी) जानते हैं कि लोकल थाना पुलिस का पेट और मुंह ब्लैक-मनी से भरकर बंद किए रहो. बाहरी पुलिस जब भी इन बदमाशों को पकड़ने आएगी तो वह लोकल थाने में जैसे ही छापा मारने की आमद रोजनामचा में दर्ज कराएगी. बदमाशों से मिलने वाली हफ्ता-वसूली राशि की एवज में लोकल थाना पुलिस, बाहरी पुलिस टीम के छापा मारने से पहले ही उसे (जिस बदमाश के अड्डे पर छापा पड़ना होता है) खबर कर देगी. और बदमाश बाहरी थाना पुलिस की टीम द्वारा छापा पड़ने से पहले ही अड्डे से साफ बच निकलेगा.”
उस मनहूस रात की खौफनाक कहानी
सिपाही सौरभ के कत्ल का मुकदमा थाना मसूरी (गाजियाबाद) में नोएडा फेज-3 थाने के सब-इंस्पेक्टर सचिन राठी के बयान पर दर्ज किया गया था. दर्ज मुकदमे के मुताबिक छापा मारने पहुंची नोएडा पुलिस टीम ने अपने वॉन्टेड क्रिमिनल और कई थानों में नामजद बदमाश कादिर मंटा को जिंदा ही दबोच भी लिया था. जैसे ही नोएडा पुलिस टीम बदमाश मंटा को लेकर गांव से बाहर की ओर बढ़ने लगी. मंटा ने शोर मचाकर गांव वालों की भीड़ इकट्ठी कर ली.
रणबांकुरे सिपाही सौरभ देशवाल को श्रृद्धांजलि
उस भीड़ में से ही कुछ ने पुलिस पार्टी पर ईंट-पत्थर फेंकते हुए गोलियां चलानी शुरू कर दीं. एक गोली सिपाही सौरभ देशवाल के सिर में जा लगी और उनकी ठौर मौत हो गई. साल 2016 में उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भर्ती होने वाले जांबाज सिपाही सौरभ देशवाल मूल रूप से यूपी के शामली जिले के गांव बदेउ (बढ़ेव) के रहने वाले थे. साल 2019 में शादी हुई. उसके बाद से वह नोएडा सेक्टर 122 में पत्नी के साथ रहते थे. सौरभ देशवाल कुछ समय तक गौतमबुद्ध नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय और उसके बाद जिला स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में भी तैनात रह चुके थे.