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बांग्‍लादेश में क्‍यों हो रही इस्‍कॉन को बैन करने की मांग? सड़क पर उतरे लोग, कट्टरपंथी संगठनों ने दिया अल्टीमेटम

बांग्लादेश में इस्कॉन को लेकर सियासी और धार्मिक उबाल तेज़ है. कट्टरपंथी संगठनों ने इस्कॉन पर बैन की मांग करते हुए इसे “भारत समर्थक संगठन” बताया है. ढाका और चटगांव में प्रदर्शन जारी हैं, जबकि यूनुस सरकार पर अल्पसंख्यकों की अनदेखी के आरोप लग रहे हैं. इस विवाद ने देश की राजनीति और हिंदू समुदाय की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.

बांग्‍लादेश में क्‍यों हो रही इस्‍कॉन को बैन करने की मांग? सड़क पर उतरे लोग, कट्टरपंथी संगठनों ने दिया अल्टीमेटम
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( Image Source:  tbsnews.net )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 28 Oct 2025 2:38 PM

ढाका की गलियों में एक बार फिर धार्मिक और राजनीतिक उबाल है- इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (इस्कॉन) पर बैन लगाने की मांग के साथ बांग्लादेश की सियासत में नई हलचल मच गई है. कट्टरपंथी इस्लामी संगठन हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम और इंतिफ़ादा बांग्लादेश ने इस्कॉन को “चरमपंथी हिंदुत्व संगठन” करार देते हुए सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं. इस बीच, ढाका हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में अंतरिम सरकार ने इस्कॉन को “धार्मिक कट्टरपंथी संगठन” बताते हुए उसका बचाव करने से इनकार कर दिया है.

यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों और इस्कॉन केंद्रों पर लगातार हमले हो रहे हैं और हिंदू समुदाय एक बार फिर डरा हुआ महसूस कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि शेख हसीना सरकार के पतन के बाद मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के इस्लामी झुकाव ने हालात को और विस्फोटक बना दिया है. बांग्लादेश अब एक ऐसे मोड़ पर है जहां धार्मिक असहिष्णुता और राजनीतिक ध्रुवीकरण का टकराव खुलकर सामने आ गया है.

क्यों हो रही बैन करने की मांग?

ढाका और चटगांव में हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम और इंतिफ़ादा बांग्लादेश के हजारों कार्यकर्ताओं ने इस्कॉन के खिलाफ प्रदर्शन किए. बांग्लादेश के इस्लामी संगठनों ने इस्कॉन पर आरोप लगाया कि यह संगठन “भारत के हित में काम कर रहा है” और “मुस्लिम समाज में विभाजन पैदा करने” की कोशिश कर रहा है.

इंतिफ़ादा बांग्लादेश की छह विवादित मांगें

ढाका की बैतुल मुकर्रम नेशनल मस्जिद के बाहर इंतिफ़ादा बांग्लादेश ने प्रदर्शन के दौरान छह प्रमुख मांगें रखीं, जिनमें से एक थी, इस्कॉन पर प्रतिबंध और उसकी गतिविधियों की जांच. उन्होंने कहा कि “देश में शांति और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने का एकमात्र तरीका इस्कॉन को बैन करना है.”

अल-कायदा से जुड़े संगठन का समर्थन

स्थानीय अखबार देश रूपांतर के मुताबिक, अंसारुल्लाह बांग्ला टीम (ABT) के मुखिया जसिमुद्दीन रहमानी ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया. उसने कहा, “इस्कॉन कोई धार्मिक संस्था नहीं बल्कि यहूदियों द्वारा बनाया गया एक चरमपंथी संगठन है.” यह बयान दर्शाता है कि इस अभियान के पीछे अंतरराष्ट्रीय इस्लामी नेटवर्क का प्रभाव भी हो सकता है.

चटगांव रैली में उग्र भाषण और हिंसा की धमकी

चटगांव में इंतिफ़ादा की सभा के दौरान कई वक्ताओं ने खुले तौर पर इस्कॉन को “आतंकवादी संगठन” करार दिया. एक वक्ता ने कहा, “जिस तरह अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाया गया, उसी तरह इस्कॉन को भी कानून के दायरे में लाया जाए.” इस बयान के बाद रैली हिंसक हो गई और कई जगह इस्कॉन मंदिरों के बाहर पथराव की घटनाएं हुईं.

हाथजारी मदरसे से उठी ‘भारत एजेंट’ की थ्योरी

हाथजारी मदरसे के मुहद्दिस अशरफ अली निज़ामपुरी ने कहा कि इस्कॉन “भारत के एजेंट के रूप में” काम करता है और “मुसलमानों के खिलाफ तोड़फोड़ वाली गतिविधियों” में शामिल है. उन्होंने आरोप लगाया कि इस्कॉन ने “इज़राइली मॉडल” पर मंदिरों की श्रृंखला बनाई है और बांग्लादेश में “हिंदुत्व नेटवर्क” फैला रहा है.

मुहम्मद यूनुस की सरकार पर पक्षपात के आरोप

मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार इस विवाद पर चुप है क्योंकि वह इस्लामी संगठनों को नाराज नहीं करना चाहती. सरकार की यह चुप्पी देश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए बड़ा खतरा बन रही है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, हिंदू व्यापारियों और पुजारियों पर बढ़ते हमलों के बावजूद प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है.

कृष्णा दास प्रभु की गिरफ्तारी और विवाद

इस्कॉन के पूर्व सदस्य कृष्णा दास प्रभु को अगस्त 2024 में गिरफ्तार किया गया था. वह अल्पसंख्यक हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे. उनकी गिरफ्तारी ने यह संकेत दिया कि सरकार विरोधी आवाजों को दबाने के लिए इस्कॉन समर्थकों को निशाना बना रही है.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बढ़ती चिंता

संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठनों ने बांग्लादेश से इस्कॉन और अन्य धार्मिक संस्थाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की अपील की है. भारत सरकार ने भी राजनयिक चैनलों के जरिए ढाका से जवाब मांगा है कि उसके नागरिकों और संस्थाओं की सुरक्षा क्यों नहीं सुनिश्चित की जा रही.

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