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कौन हैं भारतीय मूल के नील कात्याल, कोर्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ताकत को दे रहे सीधी चुनौती

भारतीय-अमेरिकी वकील नील कात्याल आज अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में उस ऐतिहासिक केस में बहस करने जा रहे हैं, जिसमें तय होगा कि राष्ट्रपति को आपातकाल के नाम पर असीमित टैरिफ लगाने का अधिकार है या नहीं. यह वही कानून है जिसे ट्रंप ने अपनी सरकार के दौरान हथियार की तरह इस्तेमाल किया था. मामला सिर्फ व्यापार नीति का नहीं, बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र में राष्ट्रपति बनाम संसद की शक्ति संतुलन का है. अदालत का फैसला इतिहास बदल सकता है.

कौन हैं भारतीय मूल के नील कात्याल, कोर्ट में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ताकत को दे रहे सीधी चुनौती
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( Image Source:  X/Neal_Katyal )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 4 Nov 2025 11:58 AM

अमेरिकी इतिहास के सबसे अहम कानूनी मुकाबलों में से एक आज सुप्रीम कोर्ट में होने जा रहा है और इस लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं एक भारतीय मूल के वकील, नील कात्याल. यह केस सिर्फ कानूनी बहस नहीं, बल्कि शक्ति संघर्ष है कि क्या राष्ट्रपति को आर्थिक आपातकाल के नाम पर असीमित टैरिफ लगाने का अधिकार मिलना चाहिए, या यह अधिकार अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस के पास ही रहे?

डोनाल्ड ट्रंप इस केस को 'अमेरिका के भाग्य का फैसला' बता चुके हैं, वहीं कात्याल इसे संविधान की मूल संरचना की रक्षा का युद्ध मानते हैं. अदालत का फैसला तय करेगा कि अमेरिका लोकतांत्रिक नियंत्रण के साथ आगे बढ़ेगा या राष्ट्रपति के आर्थिक फैसलों को ‘असीमित अधिकार’ मिल जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में होगी निर्णायक सुनवाई

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगी कि 1977 के International Emergency Economic Powers Act के तहत राष्ट्रपति को एकतरफा टैरिफ लगाने का अधिकार है या नहीं. कात्याल उस फैसले के समर्थन में खड़े हैं जिसमें अपील अदालत ने राष्ट्रपति के अधिकारों को सीमित बताया था

ट्रंप ने कहा – “हार गए तो अमेरिका तीसरी दुनिया बन जाएगा”

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सुनवाई को “इतिहास की सबसे बड़ी अदालत लड़ाई” बताया है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि “अगर हम जीते तो अमेरिका सबसे अमीर और सुरक्षित देश बनेगा, अगर हारे तो देश तीसरी दुनिया जैसा हो जाएगा.”

कौन हैं नील कात्याल?

नील कात्याल का जन्म शिकागो में भारतीय माता-पिता के घर हुआ. मां डॉक्टर, पिता इंजीनियर. उनकी बहन सोनिया कात्याल अमेरिका की टॉप लॉ प्रोफेसर हैं. उन्होंने Yale Law School से डिग्री ली और मशहूर संवैधानिक विशेषज्ञ अखिल अमर के शिष्य रहे. 54 वर्षीय नील कात्याल अब तक अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में 50 से ज्यादा बार दलीलें रख चुके हैं, जो किसी भी जीवित वकील के लिए रिकॉर्ड है. वे 2000 के ऐतिहासिक Bush vs Gore केस में भी शामिल थे, जिसने राष्ट्रपति चुनाव का फैसला बदल दिया था.

ट्रंप सरकार के सबसे बड़े कानूनी चैलेंजर

कात्याल ने ट्रंप के मुस्लिम बैन, फास्ट-ट्रैक डिपोर्टेशन पॉलिसी, और कई प्रशासनिक आदेशों को चुनौती दी है. अमेरिकी मीडिया उन्हें “Trump’s legal nightmare” और “Constitution’s frontline defender” कहता है.

केस पर दुनिया की नजर

सुनवाई के लिए 80 मिनट तय किए गए हैं, जो किसी साधारण केस में नहीं होता. कोर्टरूम में जगह पाने के लिए वकीलों और मीडिया की कतारें लग चुकी हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह केस चर्चा में है क्योंकि फैसला वैश्विक व्यापार व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है.

साथ में एक और भारतीय वकील

इस केस में एक और भारतीय-अमेरिकी वकील प्रतीक शाह भी शामिल हैं, जो दो शैक्षणिक कंपनियों की तरफ से तर्क रख रहे हैं. कौन बोलेगा पहले, यह तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 'coin toss' किया, और कात्याल मुख्य बहसकर्ता चुने गए.

लोकतांत्रिक ढांचे की असली परीक्षा

यह मामला सिर्फ आर्थिक नीति नहीं, बल्कि अमेरिकी संविधान में Executive Power vs Legislative Power की सबसे बड़ी लड़ाई है. अगर कात्याल जीतते हैं, तो यह राष्ट्रपति की शक्तियों पर ऐतिहासिक नियंत्रण होगा. अगर ट्रंप का पक्ष जीतता है, तो भविष्य में कोई भी राष्ट्रपति “इमरजेंसी” घोषित कर टैरिफ, निवेश, व्यापार सब पर अकेले फैसला कर सकेगा.

वर्ल्‍ड न्‍यूजडोनाल्ड ट्रंप
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