क्या होता है Daylight Saving Time, क्या हैं इसके खतरे और वैज्ञानिक क्यों कर रहे इसे खत्म करने की मांग?
अधिकांश देशों में समय का निर्धारण एक निश्चित पैटर्न पर आधारित होता है, लेकिन कुछ स्थानों पर मौसम और भौगोलिक स्थिति के अनुसार समय में बदलाव देखने को मिलता है. क्या आप जानते हैं कि कुछ देशों में लोग दिन और रात की अवधि को संतुलित करने के लिए खुद घड़ी में बदलाव करते हैं?

अधिकांश देशों में समय का निर्धारण एक निश्चित पैटर्न पर आधारित होता है, लेकिन कुछ स्थानों पर मौसम और भौगोलिक स्थिति के अनुसार समय में बदलाव देखने को मिलता है. क्या आप जानते हैं कि कुछ देशों में लोग दिन और रात की अवधि को संतुलित करने के लिए खुद घड़ी में बदलाव करते हैं?
यह सुनकर भले ही आश्चर्य हो, लेकिन यह पूरी तरह सच है. भारत में इस अवधारणा से अधिकतर लोग अनजान हैं, लेकिन अमेरिका, ब्रिटेन और कई यूरोपीय देशों में इसे अपनाया जाता है. इन देशों में लोग साल में कुछ महीनों के लिए घड़ी को मौसम के अनुसार आगे या पीछे कर देते हैं. इस प्रक्रिया को डेलाइट सेविंग टाइम (Daylight Saving Time - DST) कहा जाता है.
इस रविवार को घड़ियां एक घंटे आगे बढ़ने वाली हैं, जिससे कई लोग अपनी नींद का एक घंटा खोने को लेकर चिंतित हैं. अब शीर्ष वैज्ञानिकों ने डे-लाइट सेविंग टाइम (DST) खत्म करने की मांग की है, क्योंकि यह कैंसर, सड़क दुर्घटनाओं और आत्महत्या के मामलों में वृद्धि से जुड़ा हुआ पाया गया है.
यूनिवर्सिटी ऑफ सरे की डॉ. ईवा विनबेक और डॉ. विक्की रेवेल का कहना है कि DST हमारे नींद और जैविक घड़ी को प्रभावित करता है. उन्होंने कहा, 'हालांकि कई लोग लंबे दिन का आनंद लेते हैं, लेकिन वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि पूरे वर्ष 'स्टैंडर्ड टाइम' (Standard Time) बनाए रखना स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा. हालांकि, सभी विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं. रॉयल ऑब्जर्वेटरी ग्रीनविच के विज्ञान संचारक फिन बरीज के अनुसार, DST से ऊर्जा की खपत कम होती है और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है.
डेलाइट सेविंग टाइम क्या है?
DST एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गर्मियों के दौरान घड़ियों को एक घंटा आगे बढ़ा दिया जाता है, ताकि लोग अधिक समय तक दिन की रोशनी का उपयोग कर सकें. यह परिवर्तन मार्च के अंतिम रविवार को लागू होता है और अक्टूबर के अंतिम रविवार को घड़ियों को वापस एक घंटे पीछे कर दिया जाता है. इसका उद्देश्य दिन के उजाले का अधिकतम उपयोग करना और ऊर्जा की बचत करना है.
DST का इतिहास और प्रभाव
1916 में पहली बार लागू किए गए डे-लाइट सेविंग टाइम का उद्देश्य दिन की रोशनी का अधिकतम उपयोग करके उत्पादकता बढ़ाना था. इसके तहत मार्च के अंतिम रविवार को घड़ियां एक घंटा आगे और अक्टूबर के अंतिम रविवार को एक घंटा पीछे कर दी जाती हैं. हालांकि, ब्रिटिश स्लीप सोसाइटी के अनुसार, घड़ियों में बदलाव के कई नकारात्मक प्रभाव भी देखे गए हैं=-
- सड़क दुर्घटनाओं का खतरा 6% बढ़ जाता है.
- कार्डियोवैस्कुलर समस्याएं और आत्महत्या के मामलों में वृद्धि होती है.
- शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित होती है, जिससे कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, जो लोग समय क्षेत्र के पश्चिमी हिस्से में रहते हैं, जहां जैविक घड़ी और सूरज की रोशनी में ज्यादा असमानता होती है, उनमें लीवर कैंसर, पेट का कैंसर, फेफड़ों का कैंसर और स्तन कैंसर का खतरा अधिक पाया गया है.
DST के खिलाफ वैज्ञानिकों की दलीलें
डॉ. विनबेक का कहना है कि सुबह की प्राकृतिक रोशनी जैविक घड़ी को संतुलित करने के लिए बेहद जरूरी होती है. जब घड़ियों को आगे बढ़ाया जाता है, तो लोगों को सुबह कम रोशनी मिलती है और उन्हें अंधेरे में काम पर जाना पड़ता है, जिससे उनकी नींद पर बुरा असर पड़ता है. नॉर्थम्ब्रिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैलकम वॉन शैंट्ज़ कहते हैं, 'कुछ लोग पूरे साल DST लागू करने की वकालत कर रहे हैं, लेकिन यह गलत विचार है. वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि सुबह की रोशनी स्वास्थ्य के लिए अधिक महत्वपूर्ण होती है.
DST का स्वास्थ्य पर प्रभाव
🔹 अमेरिकियों की नींद पर असर: घड़ियों के आगे बढ़ने के बाद, रविवार से सोमवार की रात लोग औसतन 40 मिनट कम सोते हैं.
🔹 हार्ट अटैक का खतरा: शोध में पाया गया कि DST लागू होने के बाद दिल के दौरे के मामले 5% बढ़ जाते हैं.
🔹 नैतिक निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित: ओरेगॉन यूनिवर्सिटी के एक प्रयोग में पाया गया कि DST के बाद लोग नैतिक रूप से सही और गलत में अंतर करने में कम सक्षम होते हैं.
🔹 न्यायिक निर्णय पर प्रभाव: एक अध्ययन के अनुसार, DST के बाद सोमवार को जजों द्वारा दी गई सजाएं 5% अधिक कठोर होती हैं.
हालांकि, DST के पक्ष में तर्क देने वालों का कहना है कि यह ऊर्जा की बचत करता है और पर्यटन को बढ़ावा देता है, लेकिन वैज्ञानिक इसे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक मानते हैं,. वर्तमान में, 70 से अधिक देश अभी भी इस परंपरा को जारी रखे हुए हैं.