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शांति की बात करने वाले ट्रंप की 'शांति नीति' बेअसर, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत-पाक सीजफायर ने भी दिखाया आईना

भारत-पाक युद्धविराम के कुछ ही घंटों में उल्लंघन ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कूटनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इससे पहले यूक्रेन, गाजा और यमन में भी ट्रंप की मध्यस्थता अस्थायी और नाकाम रही है. ट्रंप की छवि 'शांति दूत' के बजाय एक असफल वैश्विक वार्ताकार की बनती जा रही है, जो केवल घोषणाओं तक सीमित रह गया है.

शांति की बात करने वाले ट्रंप की शांति नीति बेअसर, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत-पाक सीजफायर ने भी दिखाया आईना
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 11 May 2025 11:48 AM

डोनाल्ड ट्रंप ने शनिवार को भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा कर खुद को एक वैश्विक शांति-दूत के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की. व्हाइट हाउस में लौटने के बाद से वे बार-बार खुद को 'पीसमेकर' बताने में लगे हैं, लेकिन उनके द्वारा घोषित यह संघर्ष विराम चंद घंटों में ही टूट गया. यह केवल पाकिस्तान की नीयत नहीं, ट्रंप की सीमित समझ और सतही कूटनीति की पोल भी खोलता है.

भारत-पाक संघर्षविराम की घोषणा के तुरंत बाद LOC और पंजाब में ड्रोन हमलों और फायरिंग की खबरें आईं. इन घटनाओं ने न केवल पाकिस्तान के इरादों पर सवाल उठाए बल्कि अमेरिका की 'सुपरपावर' छवि को भी कमजोर किया. भारत में सुरक्षा विशेषज्ञ अब खुलेआम ट्रंप को एक अविश्वसनीय वार्ताकार मानने लगे हैं, जो दुनिया की जटिलताओं को समझने में असफल रहे हैं.

हमास-इज़राइल संघर्ष बना ट्रंप की नाकामी का आईना

जनवरी में अमेरिका, कतर और मिस्र की मदद से हुआ संघर्ष विराम मार्च में इज़राइल द्वारा तोड़ दिया गया और गाजा फिर बमबारी की चपेट में आ गया. तब से ट्रंप प्रशासन शांति बहाल नहीं कर सका. विशेषज्ञ इसे ट्रंप की भ्रामक मध्यस्थता की एक और मिसाल मानते हैं, जहां अस्थायी समाधान सिर्फ समय काटने की कोशिश भर थे.

हूती विद्रोह और रेड सी का संकट

यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ अमेरिका की सैन्य कार्रवाई और फिर ओमान की मध्यस्थता से हुआ युद्धविराम भी ट्रंप के पक्ष में नहीं गया. हूती अब भी लाल सागर और इज़राइल के ठिकानों पर हमले कर रहे हैं. इससे साफ है कि ट्रंप केवल अमेरिका की सीमित हिस्सेदारी की चिंता करते हैं, वैश्विक स्थिरता की नहीं.

यूक्रेन संकट: सिर्फ वादे, समाधान नहीं

चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने दावा किया था कि वो रूस-यूक्रेन युद्ध 24 घंटे में रुकवा सकते हैं. लेकिन हकीकत यह रही कि महीनों की कोशिशों के बावजूद केवल 30 दिनों का अस्थायी संघर्षविराम ही संभव हो सका. क्रेमलिन और कीव दोनों ट्रंप के प्रस्तावों पर गंभीर नहीं दिखे, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि उनकी 'तुरंत शांति' की रणनीति सिर्फ भाषणों में कारगर है.

ट्रंप का रिपोर्ट कार्ड: 'शांति' सिर्फ प्रचार का हथियार

इन सभी असफल सीजफायर पहलुओं को देखने से स्पष्ट होता है कि ट्रंप का कूटनीतिक रिकॉर्ड बहुत कमजोर है। चाहे भारत-पाक हो, यूक्रेन या गाजा ट्रंप की मध्यस्थता अस्थायी राहत से आगे नहीं बढ़ पाई. वे बार-बार खुद को शांति दूत कहते हैं, लेकिन हकीकत में उनकी भूमिका एक असफल अगुआ की बनकर रह गई है, जो हर बार देर से आता है और जल्द ही भुला दिया जाता है.

डोनाल्ड ट्रंप
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