चिल्लाते रहें ट्रंप, फर्क नहीं पड़ता! अमेरिका के दबाव में पुतिन से दोस्ती नहीं तोड़ेंगे पीएम मोदी
डोनाल्ड ट्रंप भारत-रूस के गहरे संबंधों से खफा हैं, खासकर रूसी तेल और हथियार सौदों को लेकर. ट्रंप ने भारत को चेतावनी दी, लेकिन मोदी सरकार ने दबाव में झुकने से इनकार कर दिया. व्यापार समझौते में भी भारत ने किसानों के हितों को प्राथमिकता दी. विदेश नीति के मोर्चे पर भारत का रुख अब कहीं अधिक आत्मनिर्भर और स्पष्ट नजर आ रहा है.
भारत और रूस की गहराती दोस्ती ने अमेरिका, खासकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भौंहें चढ़ा दी हैं. ट्रंप ने भारत को चेतावनी दी है कि रूस से तेल खरीदकर वह यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से फंड कर रहा है. लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने रणनीतिक रिश्तों को किसी तीसरे देश के दबाव में नहीं बदलेगा.
ट्रंप ने रूसी तेल की खरीद को लेकर भारत को दंडित करने की बात कही थी. हालांकि, भारत ने इसपर तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी. हाल ही में खबरें आई थीं कि भारत ने रूसी तेल की खरीद बंद कर दी है, लेकिन जल्दी ही यह साफ हो गया कि तेल आयात जारी है और उसमें गिरावट केवल बाज़ार के व्यावसायिक कारणों से हुई है.
भारत को F-35 बेचना चाहते हैं ट्रंप
भारत रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम के अलावा Su-57 फाइटर जेट्स जैसे आधुनिक हथियार भी खरीदना चाहता है. अमेरिका ने भारत को F-35 बेचने की पेशकश की थी, लेकिन भारत ने उसे ठुकरा दिया. संसद में भी सरकार ने साफ किया कि F-35 को लेकर कोई बातचीत नहीं चल रही. मोदी सरकार आत्मनिर्भर रक्षा नीति पर काम कर रही है, और अमेरिका का दबाव यहां काम नहीं कर रहा.
डोभाल और जयशंकर करेंगे रूस दौरा
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर अगस्त में रूस की यात्रा कर सकते हैं. इससे यह और स्पष्ट होगा कि भारत रूस से संबंधों को सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक रूप से भी बहुत अहम मानता है. यह दौरा ट्रंप को और चिढ़ा सकता है, लेकिन भारत स्पष्ट संकेत दे रहा है – 'हम अपनी विदेश नीति खुद तय करेंगे.'
व्यापार पर अमेरिका-भारत में टकराव
ट्रंप प्रशासन भारत पर लगातार दबाव बना रहा है कि वह अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों के लिए बाज़ार खोले. भारत ने दो टूक कहा कि किसानों के हित सर्वोपरि हैं और किसी अमेरिकी कंपनी को GMO फसलों या गोमांस-आधारित उत्पादों की इजाज़त नहीं दी जाएगी. भारत 25% टैरिफ से होने वाले 0.2% GDP नुकसान को झेलने के लिए तैयार है, लेकिन मूल नीतियों से समझौता नहीं करेगा.
सिर्फ तेल ही नहीं, रणनीतिक साझेदारी भी ज़रूरी
भारत और रूस की साझेदारी केवल ऊर्जा या रक्षा तक सीमित नहीं है. यह साझेदारी दशकों पुरानी है जिसमें कई संयुक्त परियोजनाएं, तकनीकी सहयोग और वैश्विक मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन शामिल है. भारत रूस को एक भरोसेमंद सहयोगी मानता है, खासकर जब पश्चिमी देश अक्सर दोहरा मापदंड अपनाते हैं.
भारत की मजबूरी नहीं, प्राथमिकता है
भारत जिस तरह रूसी तेल, रक्षा उपकरणों और रणनीतिक सहयोग पर भरोसा करता है, वह पश्चिमी देशों की सोच से अलग है. भारत के लिए सस्ता तेल जरूरी है ताकि वह अपने नागरिकों के लिए महंगाई नियंत्रित रख सके. वहीं, रूस से आयातित रक्षा तकनीक भारत की सैन्य शक्ति को मजबूत करती है. अमेरिका की ओर से दी जाने वाली मदद या दबाव के बावजूद भारत अपनी प्राथमिकताओं पर टिका हुआ है.
हम अपने फैसले खुद लेते हैं: भारत
विदेश मंत्रालय की हालिया टिप्पणी, “हम अपने रिश्ते किसी तीसरे देश के नज़रिए से नहीं देखते” एक सीधा संदेश था. यह ट्रंप के लिए एक जवाब था कि भारत को धमकाकर उसके रणनीतिक फैसले नहीं बदले जा सकते. भारत ने एक परिपक्व लोकतंत्र और वैश्विक शक्ति के रूप में यह साफ कर दिया है कि वह दुनिया के किसी कोने से निर्देश लेने को तैयार नहीं.





