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वे इंसान नहीं, राक्षसों की तरह... दीपु चंद्र दास के साथी ने बताई हिंसा के दिन की पूरी बात, कहा- फैक्ट्री के सामने ही ये सब हुआ

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के बीच दीपु चंद्र दास की बेरहमी से की गई हत्या ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता बढ़ा दी है. मृतक के सहकर्मी ने बताया कि कैसे झूठे ब्लास्फेमी आरोपों के बाद दीपु को फैक्ट्री से भीड़ के हवाले कर दिया गया. गवाही के अनुसार, उसे पीटने के बाद घसीटा गया और आग के हवाले कर दिया गया. बाद में अधिकारियों ने साफ किया कि ब्लास्फेमी का कोई सबूत नहीं मिला. घटना ने Muhammad Yunus की अंतरिम सरकार के सुरक्षा दावों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.

वे इंसान नहीं, राक्षसों की तरह... दीपु चंद्र दास के साथी ने बताई हिंसा के दिन की पूरी बात, कहा- फैक्ट्री के सामने ही ये सब हुआ
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( Image Source:  sora ai )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 28 Dec 2025 8:02 AM

बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के बीच दीपु चंद्र दास की हत्या अब एक प्रतीक बनती जा रही है. डर, नफरत और संस्थागत चुप्पी का. यह घटना केवल एक व्यक्ति की नृशंस मौत की कहानी नहीं है, बल्कि उस माहौल की तस्वीर है जिसमें अल्पसंख्यक अपनी पहचान के कारण असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. प्रत्यक्षदर्शी की गवाही इस हिंसा की भयावहता को बेपर्दा करती है.

इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मृतक का सहकर्मी अपनी पहचान छिपाकर सामने आया है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, उसने बताया कि सच बोलना भी जानलेवा हो सकता है. उसने जो कुछ देखा, वह बताता है कि भीड़ की हिंसा किस तरह योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दी गई.

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कौन थे दीपु चंद्र दास?

Dipu Chandra Das एक साधारण मजदूर थे, जो एक फैक्ट्री में काम करते थे. वह एक छोटी बच्ची के पिता थे और अपने परिवार की आजीविका के लिए मेहनत कर रहे थे. सहकर्मी के अनुसार, दीपु अपने काम में ईमानदार थे, लेकिन उनकी धार्मिक पहचान उन्हें अलग-थलग करने लगी थी.

कार्यस्थल से शुरू हुई साजिश

प्रत्यक्षदर्शी का दावा है कि फैक्ट्री में कुछ ऐसे लोग थे, जिन्हें नौकरी नहीं मिल पाई थी. उन्होंने अपनी नाकामी का ठीकरा दीपु दास पर फोड़ते हुए उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलानी शुरू कर दीं. इन्हीं अफवाहों में सबसे खतरनाक आरोप था- ईशनिंदा (ब्लास्फेमी) का.

HR ऑफिस बना पहला पड़ाव

घटना वाले दिन दीपु दास को फैक्ट्री के मानव संसाधन (HR) कार्यालय बुलाया गया. वहां उनसे जबरन इस्तीफा दिलवाया गया. गवाह के अनुसार, यह सब अचानक और दबाव में हुआ. इसके बाद फैक्ट्री में मौजूद बाहरी लोगों के हवाले उन्हें कर दिया गया.

फैक्ट्री गेट पर भीड़ तैयार

जैसे ही दीपु दास को फैक्ट्री गेट से बाहर लाया गया, वहां पहले से मौजूद भीड़ ने उन्हें घेर लिया. गवाह के मुताबिक, यह कोई अचानक जमा हुई भीड़ नहीं थी, बल्कि पहले से तैयार लोग थे, जो हिंसा के इरादे से आए थे.

बेरहमी से पीटा गया

भीड़ ने दीपु दास को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया. चेहरे, सीने और पूरे शरीर पर वार किए गए. वह खून से लथपथ हो गए. यह सब फैक्ट्री गेट के ठीक बाहर हुआ, लेकिन कोई आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर सका. गवाह के अनुसार, भीड़ का उन्माद यहीं नहीं रुका. दीपु दास के अचेत शरीर को करीब एक किलोमीटर तक घसीटा गया. फिर उसे एक पेड़ से लटकाया गया और आग के हवाले कर दिया गया. कुछ देर बाद जब शरीर नीचे गिरा, तब भीड़ वहां मौजूद रही.

खामोशी का कारण: डर

जब यह सवाल उठा कि किसी ने विरोध क्यों नहीं किया, तो जवाब था—डर. गवाह ने बताया कि कुछ लोगों ने बीच-बचाव करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी हमला किए जाने का डर था. उसके शब्दों में, “वे इंसान नहीं, राक्षसों की तरह बर्ताव कर रहे थे.” बाद में स्थानीय प्रशासन ने स्पष्ट किया कि दीपु दास पर लगाए गए ईशनिंदा के आरोपों का कोई प्रमाण नहीं मिला. यानी जिस आरोप के आधार पर इतनी बड़ी हिंसा हुई, वह पूरी तरह झूठा था.

हिंदू समुदाय में गहरा भय

दीपु दास के गांव और आसपास के इलाकों में हिंदू परिवार सदमे में हैं. लोगों का कहना है कि अब वे अपने बच्चों और परिवार की सुरक्षा को लेकर डरे हुए हैं. ढाका में रहने वाले हिंदुओं ने भी बताया कि हमले राजनीतिक नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान के कारण हो रहे हैं.

तस्लीमा नसरीन और समुदाय की चेतावनी

मशहूर लेखिका Taslima Nasreen ने पहले भी ऐसे मामलों को लेकर चेताया है. उनका कहना है कि कलाकारों, बुद्धिजीवियों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है. अंतरिम सरकार और Muhammad Yunus से जुड़े अधिकारी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के दावे करते हैं, लेकिन लगातार सामने आ रही घटनाएं इन दावों पर सवाल खड़े करती हैं. समुदाय का कहना है कि शिकायतों के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं हो रही.

अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय

मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, अगर ऐसी घटनाओं पर सख्ती से रोक नहीं लगी, तो बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय छवि और आंतरिक स्थिरता दोनों को नुकसान पहुंचेगा. दीपु दास की हत्या अब केवल एक केस नहीं, बल्कि अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर वैश्विक बहस का हिस्सा बनती जा रही है.

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