सीरिया में तख्तापलट का मिडिल ईस्ट पर क्या होगा असर, किसकी हालत खराब और किसे होगा फायदा?
Syria Civil War: फिर से शुरू हुए संघर्ष ने इजरायल को सीरियाई क्षेत्र में हमले को फिर करने की अनुमति दे दी है. रविवार को दमिश्क के माजेह जिले में संदिग्ध इजरायली हवाई हमलों की सूचना मिली. ऐसे में आइए जानते हैं कि सीरिया में तख्तापलट का मिडिल ईस्ट पर क्या असर होने वाला है.

Syria Civil War: 14 साल के संघर्ष के बाद सीरिया में विद्रोहियों ने बशर अल-असद की 30 साल की सत्ता को खत्म कर दिया है. राष्ट्रपति देश छोड़कर भाग चुके हैं. विद्रोहियों ने तख्तापलट कर राजधानी दमिश्क पर कब्ज़ा कर लिया है. बशर अल-असद का पतन क्षेत्र के केंद्र में रूस और ईरान के प्रभाव के लिए एक बड़ा झटका था, जो प्रमुख सहयोगी थे. इन्होंने संघर्ष के दौरान राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन किया था.
पश्चिमी और अरब राज्य, इजरायल के साथ मिलकर सीरिया में ईरान के प्रभाव को कम करने की कोशिश करेंगे, लेकिन असद की जगह कट्टरपंथी इस्लामी शासन का समर्थन करने की संभावना नहीं है. यहां हम इस बात पर नजर डालते हैं कि कैसे सीरिया में तख्तापलट का मिडिल ईस्ट पर प्रभाव पड़ने वाला है, क्योंकि इजरायल-ईरान युद्ध से पहले से ही अशांति फैली हुई है. यहां तो ये भी माना जा रहा है कि सीरिया में हुए बदलाव ने ईरान की टेंशन बढ़ा दी है.
तख्तापलट का मिडिल ईस्ट पर असर
ईरान
ईरान ने सालों से सीरिया का इस्तेमाल मुख्य रूप से सुन्नी राष्ट्र में तैनात प्रॉक्सी समूहों के माध्यम से अपने क्षेत्रीय प्रभाव का विस्तार करने के लिए किया है. तेहरान ने अपने प्रॉक्सी हिजबुल्लाह के साथ मिलकर सीरियाई सरकारी बलों को खोए हुए क्षेत्र को वापस पाने में मदद की है. इस्लामिक रिपब्लिक ने असद की सेना को सलाह देने के लिए अपने इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) कमांडरों को भी भेजा, जो राष्ट्रपति को सत्ता में बनाए रखने में सहायक साबित हुए.
ईरान कथित तौर पर इजरायल से लड़ने वाले अपने प्रॉक्सी को हथियार भेजने के लिए सीरिया में आपूर्ति मार्गों का उपयोग कर रहा है. अलेप्पो और संभावित रूप से लेबनान की सीमा से लगे अन्य शहरों के पतन से वे मार्ग बाधित हो सकते हैं, जिससे ईरान मुश्किल स्थिति में आ सकता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि सीरिया को खोना ईरान के लिए बहुत बड़ा झटका होगा.
लेबनान
एक्सपर्ट्स का कहना है कि सीरिया में हो रही घटनाओं का लेबनान पर भी असर पड़ना तय है, जहां तेहरान के हिजबुल्लाह और इजरायल के बीच युद्धविराम समझौता अधर में लटका हुआ है. हिजबुल्लाह असद शासन को बचाए रखने में अहम भूमिका निभाता था, लेकिन इजरायल के साथ युद्ध के कारण यह कमजोर पड़ गया है.
यदि सीरियाई विद्रोही लेबनान की सीमा तक पहुंचने में सफल हो जाते हैं तो ईरान से हिजबुल्लाह का प्रमुख रसद और आपूर्ति मार्गसकट सकता है जो सीरिया और इराक से होकर गुजरता है. इससे लेबनान में तेहरान का प्रतिनिधि सीमित हो सकता है.
तुर्की
तुर्की, राष्ट्रपति असद के साथ अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा था, जिससे क्षेत्र में अपनी स्थिति को मजबूत किया जा सके और तुर्की-सीरिया सीमा पर स्थित कुर्द अलगाववादियों पर अधिक नियंत्रण बनाए रखा जा सके, ताकि एक बफर ज़ोन बनाया जा सके. विपक्षी ताकतों को समर्थन देने के बावजूद तुर्की ने सीरिया के साथ मेल-मिलाप की संभावना से इनकार नहीं किया है.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा कि सीरिया हर जातीय, धार्मिक और सांप्रदायिक समुदाय के साथ सिर्फ सीरियाई लोगों का है. तुर्की की आर्थिक स्थिति खराब है. ऐसे में उसका लक्ष्य तेल-समृद्ध सीरियाई अभयारण्यों पर नियंत्रण बनाए रखना है. इसलिए माना जा रहा है कि ये तख्तापलट तुर्की के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. हालांकि, तुर्की की मुश्किलें इस वजह से बढ़ती हैं, क्योंकि वह NATO का सदस्य है और असद के सहयोगी रूस से उसकी नीतियां अक्सर टकराती हैं.
इजराइल
सीरिया में सत्ता के असंतुलन ने भी इजरायल को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है. हालांकि राष्ट्रपति असद इजरायल को दुश्मन मानते थे, लेकिन उन्होंने तेल अवीव को कोई सीधा खतरा नहीं बताया और पिछले एक साल में सीरिया में नियमित इज़रायली हमलों का जवाब नहीं देने का विकल्प चुना.
असद की सरकार ने लेबनान में हिजबुल्लाह को हथियार सप्लाई करने के लिए ईरान को अपने क्षेत्र का इस्तेमाल करने की अनुमति दी. लेकिन असद के पतन से इजरायल को राहत नहीं मिली क्योंकि सीरिया में विद्रोह का नेतृत्व करने वाला समूह हयात तहरीर अल शाम (HTS) है, जिसका नेता अबू मुहम्मद अल जोलानी एक पूर्व अल कायदा लड़ाका है जिसकी इस्लामवादी विचारधारा इजरायल का विरोध करती है.
असद के पतन का कारण
पिछले हफ़्ते इज़रायल की ओर से हिज़्बुल्लाह को कमज़ोर करने और क्षेत्र में ईरान की मौजूदगी कमज़ोर करने के बाद विद्रोहियों को कथित तौर पर अलेप्पो की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. असद विरोधी समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले सीरियाई विपक्षी नेता हादी अल-बहरा ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'लेबनान युद्ध और हिज़्बुल्लाह बलों में कमी के कारण, (असद की) सरकार को कम समर्थन मिल रहा है.' उन्होंने कहा कि ईरान समर्थित मिलिशिया के पास भी कम संसाधन हैं और रूस अपनी यूक्रेन समस्या के कारण असद की सेनाओं को कम हवाई कवर दे रहा है.