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अमेरिका के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकता है SCO? ट्रंप को भारत की नाराजगी पड़ेगी भारी!

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एशिया की सबसे बड़ी बहुपक्षीय संस्थानों में से एक है, जिसमें भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान और मध्य एशियाई देश शामिल हैं. वैश्विक मंच पर इसकी बढ़ती भूमिका और सामरिक प्रभाव, अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. यह संगठन न सिर्फ एशिया में अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देता है बल्कि ऊर्जा, सुरक्षा और व्यापारिक मोर्चे पर भी अमेरिका को विकल्पहीन बना सकता है.

अमेरिका के लिए कितनी बड़ी चुनौती बन सकता है SCO? ट्रंप को भारत की नाराजगी पड़ेगी भारी!
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( Image Source:  ANI )

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ के नाम पर ऐसा 'सेल्फ गोल' किया है, जो आने वाले वर्षों में सुपर पावर के लिए इतना बड़ा नुकसानदेह साबित होगा, जिसकी कल्पना अभी उन्होंने नहीं की है. ऐसा इसलिए कि अमेरिका लंबे समय से एशिया में अपनी रणनीतिक पकड़ बनाए रखने की कोशिश करता रहा है. इसकी आड़ में वह इराक, कुवैत, सीरिया, अफगानिस्तान, वियतनाम सहित कई देशों में सैन्य दखल देकर वहां के संसाधनों को अपने हित में इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बढ़ती सक्रियता और उसका प्रभाव अमेरिका के लिए घातक साबित होने की संभावना है. यूनाइटेड स्टेट्स की यह एकाधिकारवादी सोच खुद उसी के लिए चिंता का सबब है.

दरअसल, रूस-चीन की अगुवाई में गठित यह संगठन अब सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और भू-राजनीति का अहम केंद्र बन चुका है. इससे अमेरिका पहले से ही परेशान है. दूसरी तरफ ट्रंप द्वारा टैरिफ पॉलिसी के तहत इंडिया को दबाने की कोशिशों ने उसे भारत से दूर करता जा रहा है. यही वजह है कि मोदी सरकार ने एससीओ में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है.

भारत का इस कदम से जहां एससीओ को मजबूती मिलेगी, वहीं अमेरिका के नई विश्व व्यवस्था में सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा. आप पूछ सकते हैं कि ऐसा क्यों? ऐसा इसलिए कि चीन और रूस पहले से ही यूनाइटेड नेशंस, विश्व व्यापार संगठन, एफएटीएफ (फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स) जैसे वैश्विक मंचों अमेरिकी मंशा पर कुठाराघात करते आए हैं. अब भारत का साथ मिलने से यूएस का और ज्यादा नुकसान तय है. ऐसा क्यों, जानें डिटेल.

अमेरिका के लिए SCO चुनौती कैसे?

1. जियो पॉलिटिक्स का बिगड़ेगा संतुलन

डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से आने वाले समय में तेजी से भू-रजनीति परिदृश्य बदलने की संभावना है. एससीओ में दुनिया को दो सबसे बड़े आबादी वाले देश हैं. चीन राजनीतिक, रणनीतिक, आर्थिक, आर्म रेस, स्पेस साइंस और व्यापार सहित कई क्षेत्रों में अमेरिका के लिए चुनौती बना हुआ है. वहीं, भारत न केवल दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है बल्कि दुनिया को सबसे विशाल कंज्यूमर मार्केट भी है. भारत दुनिया की चौथी अर्थव्यवस्था में शुमार है. रूस द्वितीय विश्व के समय से ही पश्चिम और यूरोपीय देशों के लिए चुनौती बना हुआ है. खासकर अमेरिका के लिए.

अब ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा, मेक्सिको समेत अन्य देशों का खुलकर भारत के पक्ष में आने अमेरिका चिंतित है. ग्लोबल साउथ यानी अफ्रीकी और लेटिन अमेरिकी देशों के समूह के सदस्य देशों का भारत के साथ दोस्ताना रवैये से ट्रंप पहले से ही झुंझलाए हुए हैं. यानी भू-राजनीतिक संतुलन अमेरिका के खिलाफ जाना तय है. रूस और चीन SCO के रूप में अमेरिकी प्रभाव का विकल्प तैयार करने में जुटे हैं. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी 'इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी' को सीधे चुनौती दे रहे हैं, इंडिया का एससीओ की तरफ झुकाव इधर बढ़ने से कमजोर पड़ेगा.

2. अमेरिका को करना होगा ऊर्जा संकट का सामना

शंघाई सहयोग संगठन में शामिल 10 से ज्यादा देशों के पास दुनिया के ऊर्जा और अन्य संसाधनों पर पकड़ है. SCO के सदस्य देशों के पास दुनिया के बड़े ऊर्जा स्रोत (तेल, गैस, कोयला) भी हैं. इन सब कारणों की वजह से अब बदले परिवेश में अमेरिका के वर्चस्व को मध्य एशिया में कम करना संभव होगा.

3. सुरक्षा और रक्षा सहयोग

एससीओ आतंकवाद और सीमा सुरक्षा के नाम पर सदस्य देशों के खिलाफ अमेरिका नेतृत्व वाली नाटो की संयुक्त सैन्य कवायद का जवाब भी है. यह अमेरिकी सैन्य गठजोड़ (NATO, AUKUS, QUAD) की रणनीति को चुनौती देता है.

4. ट्रंप नहीं खेल पाएंगे इंडिया कार्ड

एससीओ यानी शंघाई सहयोग संगठन में भारत, अमेरिका का रणनीतिक साझेदार होते हुए भी SCO का अहम सदस्य है. अमेरिका भारत से नजदीकी का लाभ एससीओ और रूस के खिलाफ उठाता रहा है, जो अब नहीं कर पाएगा. इससे अमेरिका की ‘इंडिया कार्ड’ रणनीति कमजोर पड़ सकती है.

5. डॉलर के वर्चस्व को चुनौती

शंघाई सहयोग संगठन के गठन के पीछे अहम मकसद से एक सदस्य देशों के बीच स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाना है. डॉलर-निर्भरता घटाने की कोशिश से अमेरिकी आर्थिक प्रभुत्व पर असर पड़ेगा. इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था बड़ा झटका लगने की संभावना है. डॉलर का मूल्य आने वाले वर्षों कि किसी भी समय धड़ाम से गिर सकता है.

6. वैकल्पिक वैश्विक नैरेटिव

पश्चिमी ‘लिबरल डेमोक्रेसी’ मॉडल के सामने SCO सहयोग का नया मॉडल है. यह विकासशील देशों के लिए यह आकर्षक विकल्प बन सकता है. ऐसे में इंडोनेशिया, मलेशिया भी इस संगठन का हिस्सा बन सकते हैं. नाटो देश अमेरिका के गलत नीतियों से नाराज हैं. वह टैरिफ मसले पर अप्रत्यक्ष रूप से भारत के साथ हैं. अगर डोनाल्ड ट्रंप नीति से पीछे नहीं हटे तो नाटो खुद उन्हें बाहर निकाल सकता है. इस बात के संकेत नाटो में शामिल 30 देशों ने दे दिए हैं.

7. अमेरिका का इन देशों से छत्तीस का आंकड़ा

शंघाई सहयोग संगठन के कुछ देश हमेशा से पश्चिमी देशों के खिलाफ ही रहते आए हैं. इसमें रूस, ईरान और बेलारूस शामिल हैं. भारत और चीन का इन दिनों टैरिफ वॉर की वजह से अमेरिका से टकराव हो गया है. 2001 से इस संगठन में चीन ही अगुआ रहता था. रूस चाहता था कि कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान पर उसका प्रभाव बरकरार रहे. ईरान और बेलारूस अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से एससीओ का हिस्सा बने हैं. पाकिस्तान चीन पर ही निर्भर रहता है. ऐसे में चीन ने ही उसे इस संगठन में शामिल कर लिया. कुल मिलाकर अमेरिका के खिलाफ वैश्विक स्तर पर नैरेटिव तैयार होने लगा है.

एससीओ क्या है?

शंघाई सहयोग संगठन में 10 स्थायी सदस्य हैं जिनमें रूस, बेलारूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. मध्य एशिया में अमेरिका के प्रभाव कम करने के लिए ही इस संगठन का गठन किया गया था. इस मकसद से 2017 में इसमें दो सदस्यों को मिलाया गया जिनमें भारत और पाकिस्तान शामिल हैं. साल 2023 में ईरान और 2024 में बेलारूस भी इसका हिस्सा बन गया. इस बार एससीओ में मेहमान के तौर पर एजिप्ट, नेपाल और अन्य दक्षिण पूर्व के देशों को भी शामिल किया गया है.

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