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केवल 96 घंटे और पाकिस्तान बर्बाद... गोला-बारूद बचा नहीं तो जंग कैसे लड़ेगा पड़ोसी देश?

पाकिस्तान वर्तमान में गहरे सैन्य संकट से गुजर रहा है. केवल 96 घंटे तक युद्ध लड़ने लायक गोला-बारूद बचा है, जबकि आर्टिलरी सिस्टम लगभग निष्क्रिय हो चुके हैं. यूक्रेन को हथियार भेजने, POF की विफलता और आर्थिक पतन ने स्थिति और बिगाड़ी है. कोर कमांडर्स की आपात बैठक और भारत-पाक तनाव के बीच, यह संकट एक बड़े रणनीतिक खतरे की चेतावनी है.

केवल 96 घंटे और पाकिस्तान बर्बाद... गोला-बारूद बचा नहीं तो जंग कैसे लड़ेगा पड़ोसी देश?
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 4 May 2025 11:12 AM

पाकिस्तान की सैन्य तैयारियों में आई दरार अब खुलकर सामने आ रही है. पाकिस्तान की सेना के पास वर्तमान में मात्र 96 घंटे तक किसी युद्ध को झेलने का गोला-बारूद बचा है. एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, यह आंकड़ा न केवल सेना की परिचालन क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि पाकिस्तान अब रणनीतिक स्तर पर एक उच्च तीव्रता वाले युद्ध का भार उठाने की स्थिति में नहीं है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह स्थिति भारत जैसे पड़ोसी के साथ बढ़ते तनाव के बीच और भी चिंता का विषय बन जाती है.

इस संकट की जड़ में पाकिस्तान की वह नीति है, जिसके तहत उसने पश्चिमी शक्तियों को लुभाने और आर्थिक सहयोग प्राप्त करने के उद्देश्य से यूक्रेन को भारी मात्रा में सैन्य गोला-बारूद निर्यात किया. खासकर 155 मिमी आर्टिलरी शेल्स की आपूर्ति ने उसकी स्वयं की रक्षा क्षमता को खोखला कर दिया. अल्पकालिक विदेशी मुद्रा आय के लालच में उठाया गया यह कदम अब पाकिस्तान को उसकी सीमाओं की सुरक्षा तक खतरे में डालने पर मजबूर कर रहा है.

उत्पादन प्रणाली की जर्जर स्थिति

पाकिस्तान ऑर्डनेंस फैक्ट्री (POF), जो कि सेना की आपूर्ति की रीढ़ मानी जाती है, अब वर्षों पुराने उपकरणों और सीमित उत्पादन क्षमता के कारण अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में नाकाम साबित हो रही है. हालांकि कंपनी यह दावा करती है कि उसकी प्राथमिकता घरेलू जरूरतें हैं, लेकिन जब विदेश में कमाई का अवसर आता है, तो उसकी प्राथमिकताएं स्पष्ट रूप से बदल जाती हैं. यह नीति अब राष्ट्रीय सुरक्षा को सीधी चोट पहुंचा रही है.

रणनीतिक भंडारण में भारी गिरावट

विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान के पास अब पर्याप्त मात्रा में न तो M109 हॉवित्जर के लिए गोले हैं और न ही BM-21 ग्रैड रॉकेट सिस्टम के लिए रॉकेट्स. युद्ध नीति में आर्टिलरी-हैवी सिद्धांत को अपनाने वाला पाकिस्तान अब अपने ही बनाए सिद्धांत की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ हो गया है. ऐसे में किसी भी आकस्मिक सैन्य संघर्ष की स्थिति में पाकिस्तान की प्रतिक्रिया न केवल कमजोर बल्कि अस्त-व्यस्त हो सकती है.

सैन्य नेतृत्व में बढ़ती बेचैनी

2 मई को इस संकट पर चर्चा के लिए विशेष कोर कमांडर्स सम्मेलन आयोजित किया गया, जहां गोला-बारूद की किल्लत को सबसे बड़ी चिंता के रूप में चिन्हित किया गया. अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, सेना के शीर्ष अधिकारी हालात की गंभीरता से बेहद चिंतित हैं. कुछ रिपोर्टों के मुताबिक, यह घबराहट इतनी बढ़ गई है कि सेना के भीतर नेतृत्व स्तर पर स्पष्ट मतभेद सामने आने लगे हैं.

पुरानी चेतावनियों की अनदेखी

पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा वर्षों पहले ही इस दिन की चेतावनी दे चुके थे. उन्होंने बार-बार कहा था कि आर्थिक अस्थिरता, बढ़ती महंगाई और सैन्य लॉजिस्टिक्स की कमजोर नींव पाकिस्तान की युद्धक्षमता को सीमित कर रही है. वर्तमान में ईंधन की कमी के चलते युद्धाभ्यास रद्द किए जा रहे हैं, राशन में कटौती हो रही है और सैनिकों का मनोबल भी गिर रहा है. यह सब मिलकर एक भयावह भविष्य की झलक दे रहे हैं.

अव्यवस्थित रणनीति और खोखली तैयारी

हालात की गंभीरता को देखते हुए पाकिस्तान ने भारत की सीमा के पास नए गोला-बारूद डिपो बनाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन जब उन्हें भरने के लिए गोले ही नहीं हैं, तो उनका अस्तित्व ही नहीं है. एक वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ ने ANI को बताया, "डिपो बनाकर पाकिस्तान शायद यह दिखाना चाहता है कि वह तैयार है, लेकिन असलियत यह है कि यह एक खोखली रणनीति है, जो केवल दिखावे के लिए बनाई गई है."

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