किस देश में हर पांच साल में लगता है 'खूनी' मेला? लाखों जानवरों की चढ़ाई जाती है बलि
नेपाल के गढ़ीमाई मेले में लाखों जानवरों की सामूहिक बलि दी जाती है. यह परंपरा लगभग 265 साल पुरानी है, जो गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी से जुड़ी एक मान्यता के वजह से शुरू हुई. मन्नत पूरी होने के लिए भक्त यहां भैंस, बकरियां, कबूतर और मुर्गियों जैसे जानवरों की बलि देते हैं.

नेपाल के बारा जिले के बरियारपुर गांव में हर पांच साल में गढ़ीमाई का मेला लगता है. इस मेले में लाखों जानवरों की सामूहिक बलि दी जाती है. यह परंपरा लगभग 265 साल पुरानी है, जो गढ़ीमाई मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी से जुड़ी एक मान्यता के वजह से शुरू हुई. गढ़ीमाई मेले में लाखों जानवरों की बलि देने की परंपरा है. मन्नत पूरी होने के लिए भक्त यहां भैंस, बकरियां, कबूतर और मुर्गियों जैसे जानवरों की बलि देते हैं. जानकारों के मुताबिक, मेले के दौरान करीब 2.5 लाख से 5 लाख जानवरों की बलि दी जाती है.
इस बार सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) और स्थानीय प्रशासन ने बलि के लिए ले जाए जाने वाले जानवरों को बचाने का बड़ी कोशिश की. इस अभियान में भारतीय सुरक्षाबलों ने 750 से अधिक जानवरों को बचाया, जिनमें 74 भैंसें, बकरियां और अन्य जानवर शामिल हैं. इन जानवरों को गुजरात के जामनगर स्थित रिलायंस ग्रुप के वाइल्डलाइफ रिहैबिलिटेशन सेंटर में भेजा गया. इस बार दो दिन में यानि 8 और 9 दिसंबर को 4200 भैंसों की बलि दे दी गई है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और बलि रोकने की कोशिश
2014 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि नेपाल ले जाए जाने वाले जानवरों को बलि से बचाया जाए. इसके अलावा, नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने भी 2019 में जानवरों की बलि पर रोक लगाने का आदेश दिया था. इसके बावजूद, बलि की यह परंपरा पूरी तरह बंद नहीं हुई. गढ़ीमाई मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि मंदिर के संस्थापक भगवान चौधरी को सपना आया था कि माता गढ़ीमाई ने जेल से छुड़ाने के लिए बलि मांगी. तब से यह परंपरा चलती आ रही है. भक्तों का मानना है कि बलि देने से उनकी मुराद पूरी होती है.
गढ़ीमाई मेले में भारत और नेपाल के साथ-साथ विदेशों से भी लोग बड़ी संख्या में आते हैं. 16 नवंबर से 15 दिसंबर तक चलने वाले इस मेले को दुनिया में सबसे बड़ी जानवरों की बलि देने की जगह माना जाता है.
सामाजिक संगठनों की कोशिश
एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया और अन्य संगठनों की मदद से पहली बार इतने बड़े स्तर पर जानवरों को बचाने का अभियान चलाया गया. स्थानीय प्रशासन ने भी बलि के लिए जानवरों की सीमा पार तस्करी को रोकने में अहम भूमिका निभाई.