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वेटांगी संधि पर न्यूज़ीलैंड संसद में हाका से विरोध की आग, क्या है माओरी समुदाय और उनकी पहचान की कहानी?

न्यूज़ीलैंड संसद में माओरी सांसदों का हाका: वेटांगी संधि में बदलाव के खिलाफ उठी उनकी आवाज़, संघर्ष और पहचान की ये कहानी बन गई एक ऐतिहासिक विरोध. एक्शन, गुस्सा और आत्मसम्मान का संगम, जो उनके हक के लिए लड़ी जा रही जंग का प्रतीक बन गया.

वेटांगी संधि पर न्यूज़ीलैंड संसद में हाका से विरोध की आग, क्या है माओरी समुदाय और उनकी पहचान की कहानी?
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न्यूज़ीलैंड की संसद में आज कुछ ऐसा हुआ, जो शायद इतिहास में दर्ज हो जाएगा. Māori सांसदों ने संसद के अंदर खड़े होकर हाका किया. वो गुस्से में थे, आक्रोश से भरे हुए. उनकी आवाज़ें, उनके हाव-भाव सब कुछ कह रहे थे, 'बस बहुत हुआ'. वो Waitangi संधि में बदलाव के खिलाफ अपनी नाराज़गी जता रहे थे.

जैसे ही 'वेटांगी संधि' को दोबारा परिभाषित करने का बिल संसद में लाया गया, माओरी सांसद आगे बढ़े और उन्होंने अपनी पहचान की गर्जना करते हुए ‘हाका’ करना शुरू कर दिया. 'हाका'—माओरी लोगों का एक पारंपरिक युद्ध नृत्य, जिसमें ताकत, गर्व और अपने अधिकारों की मांग होती है. देखते ही देखते संसद का माहौल बदल गया. सांसदों की यह हरकत केवल विरोध नहीं थी, बल्कि यह उनके अस्तित्व की आवाज़ थी.

हाका: विरोध का सबसे दमदार तरीका

अब सोचिए, संसद के अंदर एकदम सन्नाटा और अचानक माओरी सांसद उठते हैं. वो अपने पारंपरिक हाका की शुरुआत करते हैं. चेहरे पर गुस्सा, आंखों में चमक, और हर शब्द जैसे कोई तलवार बनकर वार कर रहा हो. हाका माओरी संस्कृति का हिस्सा है. इसे गुस्सा, विरोध या फिर जश्न मनाने के लिए किया जाता है.

आज का हाका एक जंग का ऐलान था. ये जंग थी उनके हक और पहचान के लिए.

कहानी शुरू होती है एक सभ्यता से जो दुनिया के सबसे अलग-थलग हिस्से, न्यूजीलैंड के दूर-दराज के द्वीपों पर बसी है—यहां की जमीन, हवा, पानी, हर चीज़ माओरी लोगों के लिए खास मायने रखती है. सदियों पहले, लगभग 1000 ई.पू., माओरी पूर्वजों ने प्रशांत महासागर में दूर-दूर तक सफर किया और आखिरकार अपनी कश्तियों से न्यूजीलैंड के इन पहाड़ों और जंगलों से घिरे धरती के कोनों में बसे. अब ये सिर्फ जमीन नहीं थी, ये उनकी मातृभूमि थी—उनका अपना “आओटियारोआ,” मतलब “लम्बे सफेद बादलों की भूमि.

Waitangi संधि: माओरी समुदाय की उम्मीद और दर्द

ज़रा पीछे चलते हैं, 1840 का साल. माओरी प्रमुखों और ब्रिटिश क्राउन के बीच Waitangi संधि साइन होती है. माओरी लोगों से कहा गया, ‘तुम्हारी ज़मीन, तुम्हारे अधिकार, सब कुछ सुरक्षित रहेगा.’ बदले में ब्रिटिश सरकार उन्हें अपने नागरिकों जैसे अधिकार देने की बात करती है.

लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी. अंग्रेज़ी और माओरी भाषा में लिखी गई इस संधि के मतलब अलग-अलग निकले. माओरी ने सोचा, ‘चलो, अब सब ठीक होगा.’ लेकिन ब्रिटिश सरकार ने धीरे-धीरे उनकी ज़मीनें छीन लीं, उनकी संस्कृति को दबाया, और उन्हें उनके ही देश में पराया बना दिया.

बिल जो बना हंगामे की वजह

अब संसद में जो बिल आया है, उसमें वायटांगी संधि की परिभाषा बदलने की बात की जा रही है. माओरी समुदाय को लगता है कि ये उनके अधिकार छीनने की साजिश है.

माओरी सांसदों का कहना है, ‘ये हमारी ज़िंदगी और हमारी पहचान का सवाल है. Waitangi सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा नहीं, ये हमारे पुरखों का सपना है.’

माओरी सांसदों का संसद में हुंकार

तो अब वापस आते हैं आज के उस नज़ारे पर. माओरी सांसदों का हाका जैसे संसद की दीवारों को हिला रहा था. उनकी आवाज़ों में वो दर्द था, जो उनके पुरखों ने सहा था. उनका हर कदम, हर ताल, हर नारा एक ही बात कह रहा था, ‘हमारा हक़ मत छीनो.’

हाका करते वक्त उनके चेहरे पर जो भाव थे, वो किसी फिल्म के सीन जैसे लग रहे थे. ये सीन रियल था. वो संसद में खड़े होकर सिर्फ विरोध नहीं कर रहे थे, बल्कि अपने पुरखों की आवाज़ बन रहे थे.

माओरी समुदाय का संघर्ष

माओरी लोग न्यूज़ीलैंड के पहले बाशिंदे हैं. उनकी संस्कृति, उनकी भाषा, उनकी परंपराएं अनोखी हैं. लेकिन ब्रिटिश उपनिवेशवाद के बाद उन्हें धीरे-धीरे हाशिये पर धकेल दिया गया. उनकी ज़मीनें छीन ली गईं. उनकी भाषा दबा दी गई. लेकिन माओरी लोग झुके नहीं. उन्होंने हमेशा लड़ाई लड़ी. 20वीं सदी में उनके अधिकारों को लेकर बड़े आंदोलन हुए. वायटांगी ट्रिब्यूनल बनाया गया, जहां माओरी समुदाय से जुड़े मामलों को सुना जाने लगा.

लेकिन ये लड़ाई आज भी खत्म नहीं हुई है. माओरी लोग अब भी अपने हक और सम्मान के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

आज का हाका: एक नई शुरुआत?

आज का हाका एक चेतावनी थी. माओरी समुदाय ने सरकार और पूरे देश को ये साफ संदेश दिया कि वो अपने अधिकारों पर कोई समझौता नहीं करेंगे. संसद में माओरी सांसदों का हाका जैसे कह रहा था, 'हमारे पुरखों का खून बहा है, हमारी आवाज़ दबाई गई है, लेकिन अब और नहीं.' ये सिर्फ माओरी सांसदों का विरोध नहीं था, ये उनके पूरे समुदाय की आवाज़ थी.

अब सवाल ये है कि सरकार इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाती है. माओरी समुदाय वायटांगी संधि में किसी भी बदलाव के खिलाफ एकजुट हो गया है. ये मामला सिर्फ संसद तक सीमित नहीं रहेगा. माओरी लोग अपने विरोध को सड़कों तक ले जा सकते हैं.आज का हाका सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं था. ये माओरी समुदाय की ताकत, उनका आत्मसम्मान और उनके पुरखों के सपनों का प्रतीक था. ये साबित करता है कि जब हक़ की बात आती है, तो माओरी लोग अपनी आवाज़ बुलंद करना जानते हैं.

तो अब देखने वाली बात ये है कि न्यूज़ीलैंड की सरकार माओरी लोगों की इस हुंकार को कैसे जवाब देती है. क्या वायटांगी संधि में बदलाव होगा या माओरी समुदाय का संघर्ष फिर से इतिहास रचने वाला है?

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