मंगल ग्रह पर पहुंचने में लगेगा आधा वक्त, ब्रिटिश कंपनी ने बनाया ऐसा रॉकेट जो दूसरे ग्रहों की यात्रा बनाएगा आसान
कल्पना कीजिए कि इंसान बड़ी ही आसानी से मंगल ग्रह या किसी अन्य ग्रह पर जाने मे कमायाब हो जाए तो क्या हो. आपको जरूर कुछ हॉलीवुड फिल्मों या ओटीटी पर आने वाली कुछ सीरीज की याद आ गई होगी. लेकिन यह केवल पर्दे की बात नहीं, शायद जल्द ही हकीकत भी बन सकती है.

मंगल ग्रह – एक ऐसा ग्रह जो वर्षों से इंसान की कल्पनाओं और सपनों का केंद्र बना हुआ है. अब यह सपना धीरे-धीरे हकीकत में बदल रहा है. दुनिया की कई स्पेस एजेंसियां जैसे NASA, SpaceX, और ESA (European Space Agency) मिलकर उस दिन की तैयारी कर रही हैं जब इंसान पहली बार अपने कदम लाल ग्रह पर रखेगा. लेकिन मौजूदा तकनीक फिलहाल इंसानों को वहां तक ले जा पाने में सक्षम नहीं है. हालांकि इस ओर लगातार प्रयास हो रहे हैं. इसी कड़ी में ब्रिटेन की एक कंपनी ने परमाणु ऊर्जा से चलने वाला रॉकेट बनाने का दावा किया है जिसकी मदद से बेहद कम समय में चंद्रमा या मंगल ग्रह पर पहुंचना संभव हो सकेगा.
इस मिशन का उद्देश्य है – मंगल की सतह का अध्ययन, जीवन की संभावनाओं की तलाश और भविष्य में इंसानों की बस्ती बसाना. हालांकि वहां का वातावरण, ऑक्सीजन की कमी और रेडिएशन जैसी चुनौतियां मौजूद हैं, लेकिन तकनीक के सहारे यह सपना जल्द ही हकीकत बन सकता है.
न्यूक्लियर पावर वाला रॉकेट
अंतरिक्ष यात्रा में एक नई तकनीक आ रही है. ब्रिटेन की एक स्टार्टअप कंपनी Pulsar Fusion ने एक खास रॉकेट बनाया है, जिसका नाम है Sunbird. यह रॉकेट न्यूक्लियर फ्यूज़न की ताकत से चलेगा और अंतरिक्ष में पहले से मौजूद स्पेसक्राफ्ट से जुड़कर उन्हें तेज़ी से मंज़िल तक पहुंचाएगा. Pulsar Fusion के सीईओ रिचर्ड डिनन ने कहा, "धरती पर फ्यूज़न करना मुश्किल होता है, लेकिन अंतरिक्ष इसके लिए सही जगह है क्योंकि वहां यह प्राकृतिक रूप से होता है."
फ्यूजन तकनीक पर चलेगा रॉकेट
यह रॉकेट Duel Direct Fusion Drive (DDFD) इंजन से चलेगा, जिसमें हीलियम-3 और ड्यूटीरियम का इस्तेमाल होता है. यह इंजन सीधे ताकत बनाता है जिससे रॉकेट तेज़ी से आगे बढ़ सके. कंपनी का कहना है कि इस तकनीक से प्लूटो तक पहुंचने में अब 4 साल ही लगेंगे, और मंगल तक का सफर भी आधा हो जाएगा. हालांकि अभी तक इसका अंतरिक्ष में कोई टेस्ट नहीं हुआ है.
अभी तो बस शुरुआत है
Sunbird रॉकेट अभी शुरुआती टेस्टिंग में है और 2027 तक अंतरिक्ष में फ्यूज़न करने का लक्ष्य है. अगर यह कामयाब होता है, तो मंगल जाने की यात्रा काफी तेज़ और आसान हो जाएगी. ये रॉकेट धरती से लॉन्च नहीं किए जाएंगे क्योंकि ये बहुत ज़्यादा ताकतवर होते हैं. लेकिन एक बार जब ये अंतरिक्ष में पहुंच जाएं, तो ये किसी स्पेसक्राफ्ट को पकड़कर उसे चांद, मंगल या और भी दूर भेज सकते हैं. शुरुआत में इनका इस्तेमाल सैटेलाइट पहुंचाने में किया जाएगा, लेकिन आगे चलकर ये दूसरे ग्रहों की यात्रा में मदद करेंगे.
क्यों खास है मंगल ग्रह?
मंगल ग्रह धरती से सबसे नज़दीकी ग्रहों में से एक है और इसके कई पहलू धरती से मिलते-जुलते हैं. यहां दिन का समय धरती के बराबर है, और साल भर में लगभग 687 दिन होते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि अतीत में मंगल पर पानी और शायद जीवन के कुछ संकेत भी मौजूद थे. यही वजह है कि इसे इंसानों के लिए अगला "घर" माना जा रहा है.