चीन को रोकना है तो अमेरिका को भारत की ज़रूरत, वर्ना बीजिंग ले जाएगा बाज़ी! निक्की हेली ने क्यों ट्रंप को चेताया?
पूर्व अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने चेतावनी दी है कि अमेरिका अगर सचमुच चीन की वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को रोकना चाहता है तो उसे भारत के साथ मजबूत दोस्ती करनी होगी. ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए अतिरिक्त टैरिफ और रूस-भारत तेल विवाद से दोनों देशों के रिश्ते कमजोर हुए हैं. हेली का कहना है कि भारत के बिना एशिया में चीन का सामना करना असंभव है.

आज दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती चीन का विस्तारवाद बन चुका है. दक्षिण चीन सागर से लेकर इंडो-पैसिफिक तक, बीजिंग अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. ऐसे समय में अमेरिका के लिए यह समझना बेहद जरूरी है कि अकेले वह चीन को रोक नहीं सकता. पूर्व अमेरिकी राजदूत निक्की हेली ने इसी हकीकत को सामने रखते हुए कहा कि अगर वॉशिंगटन सचमुच चीन की महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाना चाहता है, तो उसके पास भारत जैसा मित्र होना ही चाहिए.
निक्की हेली ने साफ शब्दों में बताया कि ट्रंप प्रशासन के फैसलों ने भारत-अमेरिका संबंधों पर गहरा असर डाला. भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाना और रूसी तेल खरीद को लेकर भारत पर दबाव बनाना, इन दोनों कदमों ने भरोसे की नींव हिला दी. उन्होंने चेताया कि इन नीतियों का सबसे बड़ा फायदा चीन उठा रहा है. अमेरिका को समझना होगा कि भारत पर आर्थिक दबाव बनाना, रणनीतिक रूप से खुद के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है.
सुरक्षा से लेकर अर्थव्यवस्था तक भारत की अहमियत
निक्की हेली ने अपने लेख में विस्तार से बताया कि क्यों भारत अमेरिका के लिए अपरिहार्य है. सुरक्षा के लिहाज से देखें तो भारत एशिया में चीन के बढ़ते प्रभुत्व का एकमात्र मजबूत संतुलन है. वहीं आर्थिक दृष्टि से देखें तो अमेरिका जिस सप्लाई चेन को चीन से हटाना चाहता है, उसकी भरपाई भारत कर सकता है. भारत का विशाल उपभोक्ता बाज़ार, सस्ते लेकिन कुशल मानव संसाधन और तेजी से बढ़ता टेक सेक्टर, अमेरिका के लिए नए अवसर खोल सकता है.
भारत का उभार और चीन के लिए खतरा
निक्की हेली का तर्क है कि आने वाले समय में भारत की शक्ति और प्रभाव इतना बढ़ सकता है कि वह चीन को पीछे छोड़ देगा. उन्होंने कहा कि भारत न केवल जनसंख्या और लोकतांत्रिक ढांचे में सबसे बड़ा है, बल्कि उसका विकास मॉडल वैश्विक मंच पर स्थिरता का प्रतीक भी है. भारत की आर्थिक वृद्धि, डिजिटल क्रांति और रणनीतिक साझेदारियाँ आने वाले वर्षों में चीन की महत्वाकांक्षाओं को सीमित कर सकती हैं. अमेरिका के लिए यह अवसर है कि वह समय रहते भारत के साथ अपने रिश्ते गहरे करे.
रिश्तों में आई दरार की असली कीमत
हेली ने चेतावनी दी कि पिछले ढाई दशकों में अमेरिका और भारत ने जिस विश्वास और सहयोग की इमारत खड़ी की है, उसे गिराना बहुत बड़ी रणनीतिक भूल होगी. अगर यह दरार और बढ़ी तो चीन इसका सीधा लाभ उठाएगा. बीजिंग पहले ही कई देशों को आर्थिक और सामरिक मदद देकर अपनी पकड़ बना रहा है. ऐसे में अगर अमेरिका भारत से दूर होता है, तो एशिया में अमेरिका की पकड़ कमजोर हो जाएगी.
इतिहास से सबक: साझा लक्ष्य सबसे बड़ा
निक्की हेली ने अपने लेख में उस ऐतिहासिक पल का जिक्र भी किया जब 1982 में व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने इंदिरा गांधी से कहा था, “अगर वॉशिंगटन और नई दिल्ली कभी अलग-अलग रास्तों पर भी चलते हैं, तो उनका अंतिम लक्ष्य एक होना चाहिए.” हेली का मानना है कि यही सोच आज भी सबसे बड़ी सीख है. भारत और अमेरिका दोनों लोकतांत्रिक मूल्य, सुरक्षा चिंताएँ और वैश्विक शांति का साझा एजेंडा रखते हैं. ऐसे में अगर वे एक-दूसरे से दूर होते हैं तो यह न केवल दोनों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी होगी.