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गैस, तेल और ब्रह्मोस का कॉम्बो! विदेश मंत्री ने रूस को बताया 'भारत का प्लान बी', व्यापार घाटा पर क्या करने जा रहे दोनों देश?

विदेश मंत्री एस जयशंकर मॉस्को दौरे पर हैं, जहाँ उन्होंने भारत-रूस व्यापारिक संबंधों को और मजबूत करने और 58.9 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करने के उपाय सुझाए. उन्होंने ऊर्जा, लॉजिस्टिक्स, भुगतान तंत्र और रक्षा सहयोग में सुधार पर जोर दिया. दोनों देश 2030 तक 100 अरब डॉलर द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य हासिल करने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं.

गैस, तेल और ब्रह्मोस का कॉम्बो! विदेश मंत्री ने रूस को बताया भारत का प्लान बी, व्यापार घाटा पर क्या करने जा रहे दोनों देश?
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( Image Source:  ANI )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 21 Aug 2025 6:42 AM

विदेश मंत्री एस जयशंकर इन दिनों रूस दौरे पर हैं. इस यात्रा के दौरान उन्होंने भारत-रूस व्यापारिक संबंधों में बढ़ते असंतुलन पर चिंता जताई है. रूस से भारत की तेल खरीद ने जहां रिकॉर्ड ऊंचाई छुई है, वहीं 2024-25 में यह व्यापार घाटा 58.9 अरब डॉलर तक पहुंच गया. जयशंकर ने कहा कि इसे दूर करना अब बेहद ज़रूरी है क्योंकि लंबे समय तक असंतुलन साझेदारी पर दबाव डाल सकता है.

जयशंकर की रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से मुलाक़ात से पहले, मॉस्को ने साफ किया कि दोनों देशों का ध्यान उन आपूर्ति शृंखलाओं को मज़बूत करने पर होगा जो पश्चिमी प्रतिबंधों से स्वतंत्र हों. इसमें परिवहन, लॉजिस्टिक्स, बैंकिंग और वित्तीय लेन-देन की वैकल्पिक व्यवस्था बनाने पर ज़ोर दिया गया. रूस ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाना प्राथमिकता है.

व्यापार को संतुलित करने के सुझाव

जयशंकर ने अपनी ओर से कई ठोस उपाय सुझाए. इनमें टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म करना, लॉजिस्टिक्स सुधारना, भुगतान तंत्र को सुचारू बनाना और भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ एफटीए को जल्द पूरा करना शामिल है. उन्होंने कहा कि इन कदमों से न सिर्फ व्यापार में विविधता आएगी बल्कि 2030 तक 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी.

कनेक्टिविटी पर बड़ा फोकस

जयशंकर ने कहा कि भारत-रूस व्यापार तभी नई ऊंचाई छू सकता है जब कनेक्टिविटी में सुधार होगा. उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे, उत्तरी समुद्री मार्ग और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर को सक्रिय बनाने का आह्वान किया. साथ ही उन्होंने 2030 तक आर्थिक सहयोग कार्यक्रम को समय पर लागू करने की ज़रूरत पर भी बल दिया.

ऊर्जा व्यापार पर पश्चिमी दबाव

भारत, चीन के बाद रूस से तेल खरीदने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. भारत की ऊर्जा आपूर्ति का लगभग 40% हिस्सा मॉस्को से आता है. यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने रूसी तेल की खरीद में वृद्धि की. अब अमेरिका 28 अगस्त से भारत पर रूसी तेल आयात पर 25% दंडात्मक शुल्क लगाने की तैयारी में है, जिससे नई चुनौतियां खड़ी होंगी.

रूस ने क्या कहा?

रूसी अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बावजूद तेल आपूर्ति पर असर नहीं पड़ेगा. मॉस्को ने शिपिंग और बीमा जैसी बाधाओं से निपटने के लिए विशेष व्यवस्था बनाई है. गुजरात की वाडिनार रिफाइनरी, जो रूस की कंपनी रोसनेफ्ट की साझेदारी में है, यूरोपीय प्रतिबंधों के बावजूद सामान्य रूप से तेल आयात कर रही है.

रक्षा साझेदारी पर भी चर्चा

भारत-रूस संबंधों की एक बड़ी मज़बूत कड़ी रक्षा सहयोग है. हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने रूसी ब्रह्मोस मिसाइल और एस-400 वायु रक्षा प्रणाली का सफल इस्तेमाल किया. रूसी राजनयिक रोमन बाबुश्किन ने कहा कि रूस भारत का “पसंदीदा रक्षा साझेदार” है और भविष्य में भी उन्नत हथियार प्रणालियों के संयुक्त उत्पादन की संभावनाएँ बढ़ेंगी.

2030 तक 100 अरब डॉलर व्यापार का लक्ष्य

दोनों देशों के बीच 2024-25 में व्यापार रिकॉर्ड 68.7 अरब डॉलर पर पहुंचा. लेकिन इसमें भारत का निर्यात मात्र 4.88 अरब डॉलर रहा. रूस ने माना कि 60 अरब डॉलर से अधिक का यह असंतुलन चुनौतीपूर्ण है. इसके बावजूद दोनों देश 2030 तक 100 अरब डॉलर द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य हासिल करने के लिए नई रणनीतियों पर काम कर रहे हैं.

पुतिन की भारत यात्रा की तैयारी

रूसी अधिकारियों ने पुष्टि की है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के अंत में भारत की यात्रा करेंगे. मोदी और पुतिन के बीच यह वार्षिक शिखर सम्मेलन व्यापार, ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे और परमाणु सहयोग जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगा. रूस चाहता है कि इस यात्रा के दौरान भारत के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी और गहरी हो.

बदलती भू-राजनीति में साझेदारी की अहमियत

भारत-रूस संबंध सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं. दोनों देश वैश्विक भू-राजनीति में एक-दूसरे के रणनीतिक सहयोगी बने हुए हैं. पश्चिमी दबाव और अमेरिका के नए कदमों के बावजूद, मॉस्को और नई दिल्ली दोनों ही इस रिश्ते को दीर्घकालिक दृष्टि से देखते हैं. जयशंकर का दौरा इसी बात की पुष्टि करता है कि दोनों देशों की प्राथमिकता व्यापार संतुलन सुधारने और रक्षा-सुरक्षा साझेदारी को और मजबूत करने पर है.

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