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क्‍या किसी देश की परमाणु शक्ति छीनी जा सकती है, कितना पावरफुल है IAEA?

IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए काम करती है. हालांकि, इसके पास किसी देश से सीधे उसकी परमाणु शक्ति जब्त करने या छीनने का अधिकार नहीं है. यह संस्था परमाणु कार्यक्रमों का निरीक्षण करती है और अंतरराष्ट्रीय संधियों के तहत निगरानी रखती है. परमाणु हथियारों को नियंत्रित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक सहमति और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आदेश जरूरी होते हैं. इसलिए, IAEA की ताकत तकनीकी और नियामक है, सैन्य या राजनीतिक नहीं.

क्‍या किसी देश की परमाणु शक्ति छीनी जा सकती है, कितना पावरफुल है IAEA?
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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 15 मई को पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की निगरानी में रखने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने पाकिस्तान को 'न्यूक्लियर ब्लैकमेलिंग' करने वाला एक 'रोग राष्ट्र' करार दिया और कहा कि ऐसे देशों के पास परमाणु हथियार नहीं होने चाहिए. सिंह ने यह टिप्पणी श्रीनगर में भारतीय सेना के जवानों को संबोधित करते हुए की. उनका कहना था कि पाकिस्तान की परमाणु क्षमता पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी से क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा. यह बयान भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव और हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद आया है, जिसमें भारत ने पाकिस्तान में आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए थे.

पाकिस्तान ने राजनाथ सिंह की टिप्पणी को 'गैर-जिम्मेदाराना' और 'गहरी असुरक्षा का संकेत' बताया है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा कि सिंह की टिप्पणी IAEA की जिम्मेदारियों और अधिकारों के प्रति अज्ञानता को दर्शाती है. उसने यह भी आरोप लगाया कि भारत में परमाणु और रेडियोधर्मी सामग्री की चोरी और अवैध तस्करी की घटनाएं अधिक चिंता का विषय हैं.


बता दें कि IAEA ने पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों की सुरक्षा को लेकर किसी भी प्रकार के रेडिएशन लीक या संरचनात्मक क्षति की रिपोर्ट को नकारा है. IAEA का कहना है कि पाकिस्तान के सभी परमाणु प्रतिष्ठान सुरक्षित हैं और हालिया भारतीय मिसाइल हमलों के दौरान कोई रेडिएशन रिलीज़ या संरचनात्मक क्षति नहीं हुई है. इससे यह स्पष्ट होता है कि IAEA पाकिस्तान के परमाणु प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर संतुष्ट है. और उसने किसी भी प्रकार की सुरक्षा उल्लंघन की रिपोर्ट को खारिज किया है.

क्या किसी देश की परमाणु शक्ति छीनी जा सकती है?

किसी देश की परमाणु शक्ति (Nuclear Capability) को 'छीनना' एक जटिल, संवेदनशील और व्यावहारिक रूप से बहुत कठिन मुद्दा है. यह न केवल तकनीकी और सैन्य पहलुओं पर निर्भर करता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून, कूटनीति, और वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी...

अंतरराष्ट्रीय कानून और संप्रभुता

  • कोई भी देश अपनी संप्रभुता के तहत परमाणु हथियार विकसित और रखने का अधिकार रखता है, जब तक कि वह किसी अंतरराष्ट्रीय संधि (जैसे- Nuclear Non-Proliferation Treaty - NPT) का उल्लंघन न कर रहा हो.
  • परमाणु हथियारों को जबरन छीनने के लिए सैन्य हस्तक्षेप या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सहमति आवश्यक होगी, जो कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के माध्यम से संभव है. हालांकि, UNSC के स्थायी सदस्यों (USA, Russia, China, UK, France) में से किसी का वीटो इसे रोक सकता है.
  • इराक (2003) में अमेरिका ने परमाणु हथियारों के संदेह में सैन्य कार्रवाई की, लेकिन कोई परमाणु हथियार नहीं मिले. यह कार्रवाई विवादास्पद थी. इसे लेकर अमेरिका पर अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगा.

परमाणु निरस्त्रीकरण (Denuclearization)

कुछ मामलों में, देश स्वेच्छा से अपनी परमाणु क्षमता छोड़ देते हैं, जैसे- दक्षिण अफ्रीका ने 1990 के दशक में अपने परमाणु हथियार नष्ट किए. लीबिया (2003) ने भी अपने परमाणु कार्यक्रम को छोड़ दिया, लेकिन यह कूटनीतिक दबाव और प्रोत्साहन के कारण हुआ, न कि जबरदस्ती. बता दें कि जबरन निरस्त्रीकरण बहुत दुर्लभ है, क्योंकि परमाणु हथियार किसी देश की रक्षा और रणनीतिक शक्ति का प्रतीक होते हैं।

अंतरराष्ट्रीय दबाव और प्रतिबंध

यदि कोई देश NPT जैसे समझौतों का उल्लंघन करता है या अवैध रूप से परमाणु हथियार विकसित करता है, तो आर्थिक प्रतिबंध, कूटनीतिक अलगाव, या सैन्य कार्रवाई के माध्यम से दबाव डाला जा सकता है. उदाहरण: ईरान पर परमाणु कार्यक्रम के लिए प्रतिबंध लगाए गए, जिसके बाद JCPOA (2015) समझौता हुआ. हालांकि, किसी देश के परमाणु हथियारों को पूरी तरह 'छीनना' (जैसे, सैन्य रूप से नष्ट करना) वैश्विक युद्ध या गंभीर भू-राजनीतिक संकट को जन्म दे सकता है.

तकनीकी और सैन्य चुनौतियां

परमाणु हथियार और उनके उत्पादन की सुविधाएं अक्सर गुप्त और सुरक्षित होती हैं। इन्हें नष्ट करने के लिए सटीक खुफिया जानकारी और सैन्य क्षमता चाहिए. उदाहरण: उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों को नष्ट करने की बात अक्सर उठती है, लेकिन यह सैन्य और कूटनीतिक रूप से अत्यंत जटिल है.


हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सुझाव दिया कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को International Atomic Energy Agency (IAEA) की निगरानी में लिया जाना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान को 'गैर-जिम्मेदार' और 'आतंक-समर्थक' देश माना गया है. यह बयान कूटनीतिक और रणनीतिक है, लेकिन IAEA के पास किसी देश के परमाणु हथियारों को जबरन निगरानी में लेने की शक्ति नहीं है. यह केवल एक प्रस्ताव या दबाव बनाने का प्रयास हो सकता है.

IAEA कितना शक्तिशाली है?

IAEA एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसका गठन 1957 में हुआ था. इसका मुख्य उद्देश्य परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना है. इसकी शक्ति और सीमाओं को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है:

भूमिका और अधिकार

  • परमाणु सुरक्षा और निरीक्षण: IAEA NPT के तहत देशों के परमाणु कार्यक्रमों की निगरानी करता है ताकि यह सुनिश्चित हो कि परमाणु सामग्री का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों (जैसे, बिजली उत्पादन) के लिए हो. यह सुरक्षा उपाय (Safeguards) लागू करता है और निरीक्षण करता है.
  • सत्यापन: IAEA यह सत्यापित करता है कि कोई देश परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा. उदाहरण: ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी IAEA करता है.
  • तकनीकी सहायता: IAEA देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में तकनीकी सहायता प्रदान करता है.

शक्ति की सीमाएं

  • बाध्यकारी शक्ति की कमी: IAEA के पास किसी देश के परमाणु हथियारों को जबरन छीनने, नष्ट करने, या उनकी निगरानी में लेने की कोई कानूनी या सैन्य शक्ति नहीं है. यह केवल निरीक्षण और सलाह दे सकता है.
  • सहमति पर निर्भरता: IAEA केवल तभी निरीक्षण कर सकता है, जब कोई देश NPT या अन्य समझौतों के तहत सहमत हो. उदाहरण: उत्तर कोरिया ने IAEA निरीक्षकों को बाहर कर दिया था.
  • राजनीतिक दबाव: IAEA की रिपोर्ट्स का उपयोग UNSC द्वारा प्रतिबंध लगाने के लिए किया जा सकता है, लेकिन IAEA स्वयं प्रतिबंध लागू नहीं कर सकता.

हालिया प्रभाव

  • IAEA के महानिदेशक राफेल ग्रॉसी ने हाल ही में परमाणु हथियारों के प्रसार की चिंता व्यक्त की है, खासकर उन देशों में जो परमाणु हथियार हासिल करने की इच्छा रखते हैं.
  • IAEA ने ईरान जैसे मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जहां इसकी निगरानी ने JCPOA समझौते को लागू करने में मदद की.
  • हालांकि, पाकिस्तान जैसे देश, जो पहले से ही परमाणु हथियार रखते हैं और NPT के बाहर हैं, IAEA की निगरानी से प्रभावित नहीं होते.

सदस्यता और पहुंच

IAEA के 180 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत और पाकिस्तान शामिल हैं. भारत और पाकिस्तान जैसे गैर-NPT देशों पर IAEA का सीमित नियंत्रण है, क्योंकि वे अपनी परमाणु सुविधाओं का केवल आंशिक हिस्सा IAEA निरीक्षण के लिए खोलते हैं.


विश्वसनीयता और चुनौतियां

  • IAEA को एक निष्पक्ष संगठन माना जाता है, लेकिन कुछ देश (जैसे, उत्तर कोरिया) इसे पश्चिमी देशों के प्रभाव में मानते हैं.
  • परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने में IAEA की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन यह पूरी तरह प्रभावी नहीं है, क्योंकि कुछ देश (जैसे, उत्तर कोरिया, ईरान) इसके नियमों का पालन नहीं करते.

परमाणु शक्ति छीनना

किसी देश की परमाणु शक्ति को जबरन छीनना लगभग असंभव है, क्योंकि यह सैन्य, कूटनीतिक, और कानूनी रूप से जटिल है. यह तभी संभव है, जब कोई देश स्वेच्छा से परमाणु हथियार छोड़ दे या अंतरराष्ट्रीय समुदाय (UNSC के माध्यम से) सैन्य कार्रवाई करे, जो दुर्लभ और जोखिम भरा है.


IAEA की शक्ति

IAEA एक महत्वपूर्ण संगठन है, जो परमाणु सुरक्षा और हथियारों के प्रसार को रोकने में भूमिका निभाता है, लेकिन इसकी शक्ति सीमित है. यह निरीक्षण और सलाह दे सकता है, लेकिन किसी देश के परमाणु हथियारों को जबरन नियंत्रित या नष्ट नहीं कर सकता. पाकिस्तान जैसे देशों के मामले में IAEA की भूमिका केवल कूटनीतिक दबाव तक सीमित है, जैसा कि हाल के बयानों में देखा गया.

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