मौत के मुहाने से लौटी ज़िंदगी! यमन में केरल की नर्स निमिषा प्रिया की फांसी आखिरी पल में कैसे टली?
केरल की नर्स निमिषा प्रिया की यमन में होने वाली फांसी आखिरी समय में टाल दी गई. भारत के ग्रैंड मुफ्ती कंथापुरम अबूबकर मुसलियार द्वारा यमन के इस्लामी विद्वानों से संपर्क और केंद्र सरकार के निरंतर प्रयासों के चलते यह राहत संभव हुई. यह मामला मानवीयता, धार्मिक संवाद और कूटनीति के सामूहिक प्रभाव का उदाहरण बन गया है.

केरल के पलक्कड़ ज़िले की रहने वाली 38 वर्षीय नर्स निमिषा प्रिया को यमन की अदालत ने 2020 में एक यमनी नागरिक की हत्या के मामले में मौत की सज़ा सुनाई थी. नवंबर 2023 में यमन की सुप्रीम जुडिशियल काउंसिल ने भी उनकी अपील खारिज कर दी थी, और 16 जुलाई 2025 को उन्हें फांसी दी जानी थी. लेकिन ठीक पहले, इस फैसले को अस्थायी रूप से टाल दिया गया, जिससे एक नई उम्मीद जगी.
इस राहत के पीछे एक बड़ी भूमिका निभाई भारत के ग्रैंड मुफ्ती शेख कंथापुरम ए. पी. अबूबकर मुसलियार ने. उन्होंने धार्मिक और मानवीय आधार पर यमन के इस्लामी विद्वानों से संपर्क कर निमिषा की जान बचाने का प्रयास किया. उन्होंने कहा, “इस्लाम में अगर किसी को मौत की सज़ा दी जाती है, तो पीड़ित परिवार को क्षमा का अधिकार होता है. मैंने यमन के जिम्मेदार लोगों से बात की और उन्हें इंसानियत के पहलू समझाए.”
धार्मिक संवाद ने बदला फैसला
मुसलियार ने बताया कि उन्होंने बहुत दूरी से यमन के धार्मिक विद्वानों से संपर्क किया और उन्हें इस मामले की जटिलता समझाई. विद्वानों ने उनके अनुरोध पर विचार कर बैठक की और घोषणा की कि वे इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे. इसके बाद एक औपचारिक दस्तावेज़ भारत को भेजा गया, जिसमें बताया गया कि फांसी की तारीख फिलहाल स्थगित कर दी गई है.
केंद्र सरकार को दी गई जानकारी
शेख कंथापुरम ने इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी भारत सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय को दी. उन्होंने पत्र के माध्यम से बताया कि किस तरह इस्लामी कानूनों के तहत यह राहत संभव हुई और भारत को इसे आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयास करना चाहिए.
...फिर भी सक्रिय रही भारत सरकार
भारत की यमन में कोई औपचारिक दूतावास या राजनयिक उपस्थिति नहीं है क्योंकि वहां हालात बेहद अस्थिर हैं और राजधानी सना ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों के नियंत्रण में है. फिर भी भारत सरकार शुरू से ही निमिषा के मामले में सक्रिय रही है. भारतीय अधिकारी सऊदी अरब स्थित मिशन से इस केस की निगरानी कर रहे हैं और लगातार यमन के अभियोजन अधिकारियों और जेल प्रशासन से संपर्क में हैं.
मां ने की थी भावनात्मक अपील
निमिषा की मां प्रेमकुमारी ने अपनी बेटी की रिहाई के लिए खुद यमन की यात्रा की थी. यह कदम बेहद साहसी था क्योंकि यमन में हालात असुरक्षित हैं. उन्होंने वहां जाकर मानवीय आधार पर कई अपीलें कीं. यह व्यक्तिगत प्रयास भी भारत सरकार और अन्य संस्थानों को सक्रिय करने में सहायक रहा.
ब्लड मनी का दिया गया ऑप्शन
भारत सरकार ने 'दियत' या ब्लड मनी के विकल्प पर भी विचार किया, जिसमें आरोपी की ओर से पीड़ित परिवार को क्षतिपूर्ति की जाती है और बदले में क्षमा मिल सकती है. हालांकि, सूत्रों के अनुसार यह रास्ता भी कई कानूनी और सांस्कृतिक अड़चनों के चलते फिलहाल सफल नहीं हो सका. इसके बावजूद, यह दिखाता है कि भारत सरकार ने हर विकल्प को गंभीरता से परखा.
सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने रखा अपना पक्ष
इस पूरे मामले में भारत के सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई हुई. एक याचिका में केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई कि वह निमिषा को बचाने के लिए राजनयिक प्रयास करे. इस पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने कोर्ट को बताया कि भारत सरकार "हरसंभव प्रयास" कर रही है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यमन की वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए भारत के प्रयासों की सीमा है, लेकिन सरकार अपने नागरिक को बचाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है.