अमेरिकियों के मुंह पर ही पड़ रहा ट्रंप के टैरिफ का तमाचा, बाजार में हाहाकार, नहीं मिल रहा रोजगार; कीमत चुका रहा आम अमेरिकी
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन की टैरिफ नीति के चलते अमेरिका में रोजमर्रा की चीजों के दाम आसमान छूने लगे हैं. महंगाई की मार झेल रहे उपभोक्ता अब इस नीति के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं. इतना ही नहीं, इसके असर की वजह से रोजगार में बढ़ोतरी 70 प्रतिशत कम हो गया है. मुद्रास्फीति की वजह से आने वाले दिनों में मंदी आने के संकेत हैं, जिसका खामियाजा अमेरिकियों को भुगतना पड़ सकता है.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का एक अहम हिस्सा आयात पर भारी टैरिफ अब अमेरिकियों की जेब पर भारी पड़ने लगा है. चीन समेत कई देशों पर टैरिफ बढ़ाने के बाद अमेरिकी बाजार में वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं, जिसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं की जेब पर अभी से पड़ने लगा है. खाने-पीने के सामान, जूते, आवास, स्वास्थ्य और शिक्षा समेत लगभग हर चीज महंगी हो गई हैं. मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़े और रोजगार वृद्धि में तेजी से आई कमी इसके के संकेत हैं कि ट्रंप के टैरिफ वार की लागत अब सिर्फ व्यापार वार्ताकारों या वॉल स्ट्रीट तक सीमित नहीं रहा.
कीमतों में 2.7 फीसदी की बढ़ोतरी
द गार्जियन ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के हवाले से बताया है कि उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की कीमत एक साल पहले की तुलना में 2.7 प्रतिशत बढ़ गया है. हालांकि, यह कोरोना महामारी के दौरान देखे गए शिखर से कम है. खाद्य और ऊर्जा की कीमतों में पिछले महीने 3.1 प्रतिशत बढ़ी, जो जून की तुलना में काफी ज्यादा है. कीमतों में बढ़ोतरी विशेष रूप से बाहर खाने और रेस्टोरेंट में खाने 3.9 प्रतिशत दर्ज की गर्ठ है. आवास, चिकित्सा देखभाल और पुरानी कारों की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिला है.
हालिया कीमतों में उछाल का एक मुख्य कारण राष्ट्रपति ट्रंप का 10 प्रतिशत "सार्वभौमिक टैरिफ" है, जो 2025 से अमेरिका में प्रवेश करने वाली सभी वस्तुओं पर लागू एक व्यापक आयात शुल्क है. इस उपाय के साथ स्टील और एल्युमीनियम जैसे कुछ क्षेत्रों पर शुल्क भी बढ़ गया है.
आम अमेरिकी को होगा 2 लाख रुपये का नुकसान
येल बजट लैब का अनुमान है कि ट्रंप के टैरिफ के कारण बढ़ी हुई कीमतों से 2025 में एक सामान्य अमेरिकी परिवार को 2,400 डॉलर (लगभग 2 लाख रुपये) का नुकसान होगा. एक औसत अमेरिकी परिवार के लिए यह कई शहरों में एक पूरे महीने के किराए या एक छोटे परिवार के लिए एक साल के किराने के बिल के बराबर है. कपड़ों की कीमतों में 37 प्रतिशत और जूतों की कीमतों में 39 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है. अमेरिका में ये बढ़ोतरी इसलिए मायने रखती है क्योंकि परिधान और जूते-चप्पल आम खरीदारी हैं, जिसका अर्थ है कि बढ़ी हुई कीमतों को आगे के लिए टाला नहीं जा सकता.
रोजगार बढ़ोतरी में 70 प्रतिशत की गिरावट
अमेरिकी श्रम सांख्यिकी ब्यूरो (बीएलएस) के अनुसार, इस महीने की शुरुआत में जारी किए गए रोजगार के आंकड़ों में भारी संशोधन किया गया है। शुरुआत में मई और जून में मिलाकर 2,91,000 नौकरियों के सृजन की सूचना दी गई थी, जिसे अब संशोधित कर केवल 33,000 कर दिया गया है.
अमेरिकी पत्रकार स्टीवन ग्रीनहाउस ने द गार्जियन में प्रकाशित एक लेख में लिखा है कि ट्रंप द्वारा अप्रैल में "मुक्ति दिवस" पर लगाए गए टैरिफ (जो 2 अप्रैल को घोषित किए गए व्यापार शुल्कों के बड़े पैकेज का संदर्भ है) के बाद से तीन महीनों में रोजगार वृद्धि में 70 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है. वे लिखते हैं कि इन उपायों से उत्पन्न अनिश्चितता और बढ़ती लागत ने कॉर्पोरेट अधिकारियों को निवेश या विस्तार करने से हिचकिचाहट में डाल दिया है, जिससे विभिन्न उद्योगों में नियुक्तियां धीमी हो गई हैं.
फोर्ड के मुनाफे में 80 करोड़ डॉलर की गिरावट
मोटरसाइकिल निर्माता हार्ले-डेविडसन ने टैरिफ संबंधी अनिश्चितता और बढ़े हुए खर्चों के कारण उत्पादन में कटौती की है, जबकि कार निर्माता फोर्ड ने बढ़ी हुई इनपुट लागत के कारण तिमाही मुनाफे में 80 करोड़ डॉलर की गिरावट दर्ज की है.
अमेरिका में मंदी का खतरा
कई अर्थशास्त्री अब मुद्रास्फीतिजनित मंदी की संभावित वापसी की चेतावनी दे रहे हैं. इससे पहले अमेरिका में 1970 के दशक में मंदी का असर देखने को मिला था. मुद्रास्फीतिजनित मंदी से निपटना विशेष रूप से कठिन है क्योंकि मुद्रास्फीति से निपटने के सामान्य उपाय (जैसे ब्याज दरें बढ़ाना) विकास को और भी धीमा कर सकते हैं, जबकि विकास को प्रोत्साहित करने के उपायों से मुद्रास्फीति को और बढ़ावा मिलने का खतरा है.
आयात पर शुल्क 1930 के बाद सबसे ज्यादा
दरअसल, हाल ही में ट्रंप ने 90 देशों पर 15 से 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने की घोषणा की थी. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस फैसले से अमेरिका की औसत प्रभावी टैरिफ दर 18 प्रतिशत हो जाएगी, जो 1930 के कुख्यात स्मूट-हॉली टैरिफ अधिनियम के बाद से सबसे अधिक है. 1930 के स्मूट-हॉली टैरिफ अधिनियम को वैश्विक व्यापार को बाधित कर महामंदी को और बदतर बनाने के लिए व्यापक रूप से दोषी माना जाता है.