डोनाल्ड ट्रंप ने माना 'अमेरिका में टैलेंट की कमी', H-1B वीज़ा पर पड़े नरम, बोले - “हमें बाहर से हुनर लाना होगा”
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा पर अपने सख्त रुख को नरम करते हुए कहा कि अमेरिका को विदेशी टैलेंट की ज़रूरत है. उन्होंने स्वीकार किया कि देश में कुछ विशेष क्षेत्रों में पर्याप्त प्रशिक्षित लोग नहीं हैं. इससे पहले ट्रंप प्रशासन ने वीज़ा आवेदन पर $100,000 का अतिरिक्त शुल्क लगाया था. भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स इस नीति से सबसे अधिक प्रभावित हैं, लेकिन ट्रंप के ताजा बयान से नीति में राहत के संकेत मिल रहे हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को H-1B वीज़ा पर अपने पुराने सख्त रुख को नरम करते हुए कहा कि अमेरिका को कुछ खास क्षेत्रों में विदेशी टैलेंट की ज़रूरत है. यह बयान ऐसे समय आया है जब उनकी प्रशासन ने हाल ही में वीज़ा प्रणाली पर सख्त पाबंदियां लगाई हैं और शुल्क में भारी बढ़ोतरी की है.
ट्रंप ने Fox News की एंकर लौरा इंग्राहम को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “हमें देश में प्रतिभाशाली लोगों को लाना होगा. हमारे पास हर क्षेत्र में पर्याप्त टैलेंट नहीं है.” जब उनसे पूछा गया कि क्या अमेरिका में टैलेंट की कमी है, तो ट्रंप ने साफ शब्दों में कहा, “नहीं, हमारे पास नहीं है… कुछ खास तरह की प्रतिभा हमारे पास नहीं है, लोगों को वो चीज़ें सीखनी पड़ेंगी.”
उनका यह बयान पहले के रुख से बिल्कुल अलग माना जा रहा है, क्योंकि वे अपने पिछले कार्यकाल के दौरान H-1B वीज़ा को अमेरिकी नौकरियों के लिए खतरा बताते रहे थे. उन्होंने तब यह तर्क दिया था कि विदेशी प्रोफेशनल्स अमेरिकी युवाओं से नौकरियां छीन लेते हैं.
H-1B वीज़ा पर सख्ती और नई शर्तें
ट्रंप प्रशासन ने सितंबर 2025 में ‘Restriction on Entry of Certain Nonimmigrant Workers’ नामक एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत 21 सितंबर 2025 के बाद दाखिल किए जाने वाले हर नए H-1B वीज़ा आवेदन पर 100,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग ₹83 लाख) का अतिरिक्त शुल्क लगाया गया है. अमेरिकी विदेश विभाग ने बाद में स्पष्ट किया कि यह नियम केवल नए आवेदन या लॉटरी में प्रवेश करने वालों पर लागू होगा. जो वीज़ा पहले से धारक हैं या जिनके आवेदन पहले जमा हो चुके हैं, उन्हें इससे छूट दी गई है. यह शुल्क हर नए आवेदन पर अनिवार्य रूप से देना होगा, चाहे वह 2026 की लॉटरी के लिए ही क्यों न हो.
भारतीय प्रोफेशनल्स पर असर
H-1B वीज़ा धारकों में सबसे बड़ा समूह भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स का है. अमेरिका की टेक कंपनियां - जैसे Google, Microsoft, Amazon, Infosys और TCS - इन्हीं वीज़ा धारकों के जरिए अपने इंजीनियरिंग और रिसर्च सेक्टर में विशेषज्ञता हासिल करती हैं. नई पाबंदियों और बढ़े शुल्क ने भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में अवसर पाना कठिन बना दिया है. हालांकि, ट्रंप के इस हालिया बयान ने संकेत दिया है कि भविष्य में नीति में कुछ राहत दी जा सकती है.
सिर्फ अमेरिकी बेरोजगारों से काम नहीं चल सकता
ट्रंप ने इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका के पास ऐसे जटिल क्षेत्रों के लिए पर्याप्त प्रशिक्षित लोग नहीं हैं, खासकर डिफेंस, हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग और साइबर सुरक्षा में. उन्होंने कहा, “आप लंबे समय से बेरोजगार अमेरिकियों को उठाकर इन जटिल कामों में नहीं लगा सकते. उन्हें व्यापक ट्रेनिंग चाहिए होती है, जो तुरंत संभव नहीं है.” उनके इस बयान को एक यथार्थवादी स्वीकारोक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जो यह मानता है कि तकनीकी नवाचार और रक्षा क्षेत्र में अमेरिका को वैश्विक प्रतिभा की आवश्यकता है.
नीति में बदलाव के संकेत
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह नया रुख आगामी चुनावों को देखते हुए रणनीतिक भी हो सकता है. अमेरिकी टेक उद्योग और भारतीय डायस्पोरा लंबे समय से वीज़ा सुधार की मांग कर रहे हैं. ट्रंप के बयान से उम्मीद जगी है कि उनकी सरकार आने वाले महीनों में H-1B नीति में लचीलापन ला सकती है - ताकि अमेरिका वैश्विक प्रतिभा को आकर्षित करते हुए अपनी आर्थिक और तकनीकी बढ़त बनाए रखे.





