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क्‍या गुल खिलाएगी Pak-बांग्‍लादेश की दोस्‍ती, पहली बार चटगांव पहुंचा पाकिस्‍तानी जहाज; भारत के लिए क्या हैं मायने?

Pakistan Bangladesh Relations: शेख हसीना के पद से हटते ही पाकिस्तान ने बांग्लादेश की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है. दोनों देश 1971 की कड़वी यादों कोे भुलाकर आगे बढ़ना चाहते हैं. यही वजह है कि बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से न्यूयॉर्क में मुलाकात की थी.

क्‍या गुल खिलाएगी Pak-बांग्‍लादेश की दोस्‍ती, पहली बार चटगांव पहुंचा पाकिस्‍तानी जहाज; भारत के लिए क्या हैं मायने?
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( Image Source:  X )

Pakistan Bangladesh Relations: शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संबंध सुधरते हुए दिखाई दे रहे हैं. कराची से पहला मालवाहक जहाज 13 नवंबर को चटगांव पहुंचा. यह दोनों देशों के बीच पहली समुद्री सेवा है. ढाका में पाकिस्तानी उच्चायोग ने इसे द्विपक्षीय व्यापार में बड़ा कदम बताया.

पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत दिखाई दे रहे हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर 1971 की काली छाया लंबे समय से मंडरा रही है.

1971 में क्या हुआ था?

साल 1971 में 9 महीने तक मुक्ति युद्ध हुआ था. इस दौरान पाकिस्तानी सेना और उसके सहयोगियों ने बांग्लादेश के लोगों पर जमकर अत्याचार किए. इसमें करीब 30 लाख लोग मारे गए, जबकि हजारों लोगों को प्रताड़ित किया गया और उनका रेप किया गया. लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर दूसरी जगह जाना पड़ा.

'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने कभी भी बांग्लादेश पर अपनी सेना की तरफ से किए गए अपराधों के लिए माफी नहीं मांगी. इससे दोनों देशों के बीच संबंधों को नुकसान पहुंचा. पाकिस्तान ने 1971 की घटना के लिए भारत को जिम्मेदार बताने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं नहीं मिली. पाक का आरोप है कि भारत ने पाकिस्तान को तोड़ने के लिए यह षड्यंत्र रचा.

शेख हसीना के समय पाकिस्तान के साथ कैसे थे संबंध?

शेख हसीना जब प्रधानमंत्री थीं, तब बांग्लादेश का पाकिस्तान के साथ संबंध खराब रहे. हसीना ने मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा बांग्लादेशियों पर किए गए अत्याचार के लिए जिम्मेदार लोगों पर मुकदमा चलाया. उन्होंने 2010 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) की स्थापना की और पाकिस्तान समर्थक जमात-ए-इस्लामी पर बैन भी लगाया.

जमात नेता को हसीना ने दी फांसी

रिपोर्ट के मुताबिक, ICT ने 2013 में जमात नेता अब्दुल कादर मोल्लाह को 344 नागरिकों की हत्या और अन्य युद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराया था. वे हसीना के कार्यकाल के दौरान फांसी पर चढ़ने वाले सहयोगियों और रजाकारों में पहला था. उस समय के पाकिस्तान के गृह मंत्री चौधरी निसार अली खान ने मोल्लाह की फांसी को बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोल्लाह को पाकिस्तान के प्रति उनकी वफादारी के कारण फांसी दी गई.

शेख हसीना और बांग्लादेश को निसार अली खान की टिप्पणी पसंद नहीं आई. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने मोल्लाह की फांसी पर निंदा प्रस्ताव पारित किया. इस पर हसीना ने कहा कि यह साबित हो जाता है कि पाकिस्तान ने 1971 के मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश की जीत को कभी स्वीकार नहीं किया.बांग्लादेश में उनके अभी भी सहयोगी हैं.

भारत के करीब आया बांग्लादेश

शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान बांग्लादेश भारत के काफी नजदीक आ गया. हसीना खुद नेहरू गांधी परिवार से व्यक्तिगत संबंध रखती हैं. उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद उन्हें नई दिल्ली में शरण दी गई थी. हसीना ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत सरकार के साथ मधुर संबंध बनाए रखा. उन्होंने दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा दिया.

बांग्लादेश में मौका देख रहा पाकिस्तान

शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद पाकिस्तान अब बांग्लादेश में अपने लिए नए अवसर देख रहा है. लोगों में हसीना के प्रति नाराजगी भारत के प्रति उनकी बढ़ती नजदीकियों की वजह से हुई. लोगों को लगा कि भारत उनके अंदरूनी मामलों में कुछ ज्यादा ही दखल दे रहा है. अब हसीना के पद से हटते ही पाकिस्तान में सत्ता पर बैठे लोगों को लगा कि यह बांग्लादेश की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाने का सुनहरा अवसर है. दोनों देशों को 1971 की कड़वी यादों को भुलाकर नई शुरुआत करनी चाहिए.

बांग्लादेश ने भी इस पर पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया है. सितंबर में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा में बांग्लादेश के अंतरिम प्रधानमंत्री मोहम्मद यूनुस ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शेख शहबाज शरीफ से मुलाकात की थी. इस दौरान उन्होंने द्विपक्षीय सहयोग को पुनर्जीवित करने और एक नई शुरुआत करने की आवश्यकता पर जोर दिया था।

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