सत्ता के संग्राम में हिली बांग्लादेश की ज़मीन! यूनुस सरकार और सेना प्रमुख के टकराव से होगा तख्तापलट?
बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख वकार-उज-जमान के बीच टकराव गहराता जा रहा है. यूनुस पर विदेशी ताकतों की कठपुतली होने और सेना में फूट डालने के आरोप हैं. सेना प्रमुख जल्द चुनाव चाहते हैं जबकि यूनुस NSA नियुक्ति जैसे कदमों से सत्ता पर पकड़ मजबूत कर रहे हैं. इस टकराव से देश की स्थिरता खतरे में है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख वकार-उज-जमान के बीच हालात सामान्य नहीं हैं. सेना मुख्यालय में हुई एक इमरजेंसी मीटिंग ने इस अनबन को उजागर कर दिया. सेना प्रमुख ने अधिकारियों को ‘कार्य योजना’ पर चर्चा के लिए तलब किया. सूत्रों के अनुसार, सेना प्रमुख जमान चाहते हैं कि यूनुस जल्द से जल्द आम चुनाव की घोषणा करें ताकि देश में बढ़ते विदेशी दबाव का असर रोका जा सके.
सेना को सबसे बड़ा डर यह है कि यूनुस विदेशी शक्तियों, खासकर अमेरिका के इशारे पर काम कर रहे हैं. सेना को लगता है कि यूनुस की नीतियां देश को अस्थिर बना सकती हैं. यूनुस पर यह भी आरोप है कि वे कार्यकारी आदेशों के जरिए मनमाने तरीके से कैदियों को रिहा कर रहे हैं, जिससे सेना की निगरानी कमजोर पड़ रही है. एक और चिंता यह है कि यूनुस सेना में दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं.
सिविल सोसायटी की राजनीति बर्दाश्त नहीं
सेना प्रमुख जमान ने NSA की नियुक्ति जैसे कदमों पर आपत्ति जताई है, जो उनकी गैरमौजूदगी में लिए गए. उन्होंने दो टूक कहा है कि सेना किसी सिविल सोसायटी के दबाव में नहीं आएगी. विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने के लिए सेना प्रमुख के आवास और कार्यालय के बाहर सुरक्षा बढ़ा दी गई है. यह संदेश साफ है कि सेना राजनीतिक हस्तक्षेप से तंग आ चुकी है.
सेना प्रमुख को हटाने की साजिश?
खुफिया सूत्रों का दावा है कि यूनुस और उनके नियुक्त NSA खलीलुर रहमान, सेना प्रमुख को हटाने की कोशिश में लगे हैं. हालांकि, जमान को सेना के भीतर अभी भी व्यापक समर्थन हासिल है. सेना के कई वरिष्ठ अधिकारी चुनाव की जल्द घोषणा के पक्षधर हैं और वे किसी भी अस्थिरता को रोकना चाहते हैं. यही कारण है कि यूनुस के राजनीतिक फैसलों को लेकर सेना में असंतोष बढ़ता जा रहा है.
शेख हसीना की विदाई और सत्ता का शून्य
अगस्त 2024 में जब बांग्लादेश हिंसा की आग में झुलस रहा था, तब प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत चली गईं. उनके जाने के बाद यूनुस को अंतरिम सरकार की कमान सौंपी गई, लेकिन वे कभी भी जनमत से निर्वाचित नहीं हुए. ऐसे में सवाल उठता है कि उन्हें इतने बड़े फैसले लेने का अधिकार किसने दिया? सेना और आंदोलनकारी संगठनों ने तब उनकी अस्थायी भूमिका स्वीकार की थी, लेकिन अब वह स्वीकार्यता चुनौती के घेरे में है.
भारत-पाक झुकाव की राजनीति में फंसा बांग्लादेश
यूनुस और जमान के बीच टकराव की एक बड़ी वजह उनकी वैचारिक सोच है. जहां जमान को भारत समर्थक माना जाता है और वे इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ हैं, वहीं यूनुस पर पाकिस्तान समर्थकों और विदेशों में सक्रिय इस्लामी समूहों से जुड़े होने के आरोप हैं. यूनुस की राजनीतिक दिशा, शेख मुजीब की विरासत को मिटाने और अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश, अब बांग्लादेश की राजनीति को एक और गहरे संकट की ओर धकेल रही है.