September 30, 2025
वेश्याओं के घर की आंगन की मिट्टी पवित्र मानी जाती है क्योंकि यह विरुद्ध भूमि यानी उन स्थानों में से होती है जहां समाज के नियम सीधे नहीं चले जाते.
ऐसा माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति वेश्याओं के आंगन से भीतर जाता है, तो वह अपने कुछ नैतिक पाप या शुद्धता को दरवाजे पर ही छोड़ देता है. इस तरह बाहर की आंगन की मिट्टी पवित्र हो जाती है.
कुछ क्षेत्रों में ये रीतियां इस तरह स्थापित हैं कि मूर्ति तभी पूरी मानी जाती है जब उसमें गंगा की मिट्टी, गौ मूत्र-गोबर आदि के साथ यह ‘punya mati’ शामिल हो. अगर यह मिट्टी नहीं हो, तो मूर्ति अधूरी मानी जाती है.
एक बार कुछ वेश्याएं गंगा स्नान के समय एक रोगी की सहायता की थी, जो कि एक देवता होता है. प्रसन्न होकर उस शिव ने यह वरदान दिया कि वेश्याओं के आंगन की मिट्टी को पूजा में इस्तेमाल किया जाए.
इस प्रथा से यह संदेश जाता है कि देवी दुर्गा को पूजा करने वाले हर व्यक्ति बराबर है. चाहे वह समाज की किन्हीं उपेक्षित श्रेणियों से हो.
बंगाली संस्कृति में निषिद्ध पल्लियां एक विशेष स्थान रखती हैं. वहां से मिट्टी लेना एक तरह से लोक परंपरा और पुरानी धार्मिक विधियों का हिस्सा है जिसे समय-समय पर याद किया और किया जाता है.
यह परंपरा सिर्फ मिट्टी लेने तक नहीं है. इसे सम्मान, नम्रता और सच्चे मन से करना चाहिए. कलाकार या पुजारी वेश्याओं से मृदा को विनम्रता से लेते हैं.