जब पत्थर बोलते हैं... जब ईंटें गूंगी नहीं होतीं, जब दीवारों की दरारों में पुरखों की साँसें बची होती हैं, जब वक़्त मिट्टी बनकर दीवारों से चिपका होता है, तब पैदा होती है — विरासत. ये धरोहरें नहीं, ये भारत की आत्मा हैं, जो ताजमहल की नज़ाकत से लेकर हम्पी की वीरता तक बसी हैं. UNESCO ने इन्हें पहचान दी, पर ये पहचान इनके होने से नहीं, हमारे समझने से बनती है.