हर्ष गुप्ता मुंबई के कल्याण की एक चॉल में पले-बढ़े. उनके पिताजी पानीपुरी बेचते थे. संसाधनों की भी भारी कमी थी. 11वीं कक्षा में फेल होने के बाद सबने कहा कि अब कुछ नहीं हो सकता, लेकिन हर्ष ने अपने संघर्ष को अपनी ताकत बना लिया. प्रेरणा मिली कोटा फैक्ट्री और संदीप भैया से, और वहीं से शुरू हुई एक नई शुरुआत... कठिनाइयों से लड़ते हुए, आर्थिक तंगी को मात देते हुए, बिना किसी ट्यूशन या महंगे कोचिंग के हर्ष ने IIT रुड़की में दाखिला पाया. उनकी यह कहानी साबित करती है कि सपनों को पूरा करने के लिए महंगे संसाधनों की नहीं, जज्बे, मेहनत और आत्मविश्वास की जरूरत होती है. हर्ष गुप्ता की पूरी कहानी सुनिए 'स्टेट मिरर हिंदी' के पॉडकास्ट में...