इस राज्य की पुलिस भुतहा वीरान इमारतों में क्यों छोड़ रही ‘स्निफर-डॉग्स’? वजह जानकर हैरान रह जाएंगे - Inside Story
उत्तराखंड पुलिस देहरादून के वीरान, जर्जर और खंडहरनुमा इमारतों में स्निफर डॉग्स के साथ गश्त कर रही है. वजह है राज्य में बढ़ती ड्रग तस्करी, जो पर्यटन स्थलों के कारण ज्यादा सक्रिय है. SSP अजय कुमार सिंह ने बताया कि ये जगहें ड्रग सेवन और छोटे स्तर पर खरीद-फरोख्त का अड्डा बन चुकी हैं. सीएम पुष्कर सिंह धामी के 'ड्रग-फ्री देवभूमि' अभियान के तहत पुलिस ने इन इलाकों में ऑपरेशन तेज किया है. स्निफर डॉग्स की मदद से कई संदिग्ध गतिविधियां पकड़ी जा रही हैं.

वीरान, जर्जर हाल, बेहद पुरानी खंडहरनुमा मकान-इमारतों की ओर कोई आम-इंसान डर के मारे कदम भी रखना नहीं चाहता है. ऐसी वीरान सूनी जगहों को देखकर क्या-बच्चे या जवान या बूढ़े. हर किसी की डरकर घिग्घी बंध जाती है. ऐसे में उत्तराखंड की राजधानी देहरादून पुलिस (Dehradun Uttarakhand) के लिए यही वीरान-डरावनी जगहों बेहद ‘काम’ की नजर आ रही हैं. आखिर ऐसा क्या है इन डरावनी खंडहरनुमा वीरार जगहों में, जो देहरादून पुलिस (Dehradun Police) के लिए बेहद मतलब की नजर आने लगी हैं. यहां तक काम की कि इन इमारतों में देहरादून पुलिस के जवान अधिकांश वक्त अपने स्निफर-डॉग की टीमों को लेकर भटकते रहते हैं. आइए जानते हैं इस सबकी वह ‘इनसाइड स्टोरी’ जिसे जान-पढ़कर किसी का भी दिमाग घूम जाएगा. या हैरानी से किसी का भी मुहं खुला रह जाएगा.
दरअसल इस वक्त देश के तीन-चार राज्य (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, बिहार, गोवा) ड्रग्स (Drug Smuggling in Uttarakhand) और शराब के काले-कारोबार की समस्या से जूझ रहे हैं. इनमें हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड (Anti-Drug in Uttarakhand) की तो हालत बद-से-बदतर ही हो चुकी है. इसकी प्रमुख वजह इन दोनों ही राज्यों का देश में प्रमुख ‘पर्यटन-स्थल’ होना है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में चाहे मौसम-सीजन कोई भी हो. यहां देशी और विशेषकर विदेशी पर्यटकों की भीड़ हमेशा मौजूद रहती है. इन विदेशी-टूरिस्टों को इन राज्यों की खुली सुहावनी आब-ओ-हवा, हरियाली, खुशगवार मौसम-वातावरण तो अपनी ओर आकर्षित करता ही है.
इसलिए उत्तराखंड, हिमाचल, गोवा ‘गोरों’ की पसंद
इसके अलावा यहां (उत्तराखंड-हिमाचल) आने वाले पर्यटकों को दूसरी जो चीज सबसे ज्यादा अपनी ओर आकर्षित करती है वह है ‘ड्रग’. वह ड्रग जो इन विदेशी पर्यटकों को अपने (विदेश) देशों में या तो नसीब ही नहीं होती है. अगर इन्हें भारत के उत्तराखंड-हिमाचल राज्यों के जैसा ड्रग नसीब होता भी है तो बहुत महंगा होता है. बेहद मुश्किल से हासिल हो पाता है. दूसरे, इन विदेशी पर्यटकों के अपने-अपने देशों में ड्रग्स की खरीद-फरोख्त और सेवन में भी खासे कड़े-कानून बाधा बनते हैं. लिहाजा हर साल हजारों विदेशी पर्यटक तो भारत के इन दो राज्यों (उत्तराखंड-हिमाचल, गोवा) में मौज-मस्ती के लिए आते ही इसी लालच में हैं कि, उन्हें यहां (उत्तराखंड-हिमाचल, गोवा) आसानी से उच्च कोटि का मन-पसंद ड्रग बेहद सस्ते दाम में (विदेशी पर्यटकों को उनके अपने देश में ड्रग्स की कीमतों की तुलना में) उपलब्ध हो जाता है.
अब तस्वीर का डरावना रूप भी समझिए
यह तो रहा तस्वीर का एक और पहला वह रुख जिसके चलते विदेशी पर्यटक हिमाचल-गोवा और उत्तरांखड में सैर-सपाटे के लिए हमेशा लालायित रहते हैं. अब समझिए इस खतरनाक खेल के दूसरे पहलू को. जब यह विदेशी पर्यटक (Foreign Tourist in Uttarakhand) ऊंची कीमतों पर ड्रग खरीदकर बेफिक्री के आलम में, इन राज्यों में इस्तेमाल भी करते हैं. ऐसे में एक अहम बिंदु यह है कि ये विदेशी पर्यटक खुद अपने देश से तो ड्रग साथ बांधकर लाते नहीं है. यह पर्यटक जानते हैं कि ऊंची कीमतों पर उनकी पसंद का ड्रग इन राज्यों में आसानी से उपलब्ध है. ड्रग-तस्कर-दलाल (Drug Smuggler in Uttarakhand) खुद ही ड्रग-एडिक्ट इन विदेशी पर्यटकों की तलाश में भटकते रहते हैं. क्योंकि विदेशी पर्यटक ही तस्करों के हाथों बेवकूफ बनकर, उनसे ऊंची-मुंहमांगी कीमत पर ड्रग के खरीददार होते हैं.
उत्तराखंड के CM पुष्कर सिंह धामी का अभियान
बस यहीं से शुरू होता है उत्तराखंड, हिमाचल और गोवा जैसे राज्यों में स्थानीय लोगों का ड्रग तस्करी के इस खतरनाक खेल या कहिए काले-कारोबार में शामिल होना. यही सबसे बड़ी चिंता का विषय है राज्य सरकारों का कि आखिर कैसे आज की पीढ़ी को ड्रग तस्करी के इस खतरनाक धंधे से बाहर निकाल कर दूर किया जाए? इसी कोशिश में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (CM Pushkar Singh Dhami) ने उत्तराखंड को “ड्रग-फ्री देवभूमि” (Anti-Drug Uttarakhand) अभियान छेड़ा हुआ है. इसके लिए राज्य की अन्य संबंधित एजेंसियां तो जुटी हुई हैं ही. सबसे ज्यादा जिम्मेदारी राज्य यानी उत्तराखंड पुलिस के कंधों पर है. पुलिस चाहती है कि हर हाल में राज्य को ड्रग-फ्री देवभूमि, तय समय से पहले ही बना डाला जाए.
Image Source: Dehradun District Police Headquarters
ड्रग माफिया हमारे दुश्मन: SSP अजय कुमार सिंह
इस बारे में 'स्टेट मिरर हिंदी' से बात करने पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक आईपीएस अजय कुमार सिंह (SSP Dehradun IPS Ajay Kumar Singh) कहते हैं, “राज्य में ड्रग तस्करी की समस्या सभी के लिए परेशानी है. फिर चाहे वह कानून-व्यवस्था हो. या फिर युवा पीढ़ी को इससे दूर रखने का सवाल. ड्रग न सिर्फ सेहत के लिए हानिकारक-जानलेवा है. अपितु यह समाज के लिए कैंसर है. ड्रग की खरीद-फरोख्त, इसका सेवन दोनो ही बर्बादी की ओर ले जाते हैं. इसीलिए राज्य की स्पेशल टास्क फोर्स में रहते हुए भी मैंने ड्रग-फ्री उत्तराखंड के लिए काफी काम किया था. अब देहरादून को भी ड्रग-फ्री अभियान में नए-नए प्रयोग किए जा रहे हैं. जिला पुलिस ने इसमें अब स्निफर डॉग्स की मदद लेना शुरू किया है. इस कदम के सकारात्मक परिणाम भी सामने आने लगे हैं.”
देहरादून पुलिस प्रवक्ता हेमंत खंडूरी बोले...
आजकल देहरादून पुलिस मय 'स्निफर-डॉग्स' उन खंडहर, पुरानी-सूनसान जर्जर बदहाल पड़ी इमारतों, मकानों और सूनी जगहों पर लगातार गश्त कर रही है जहां किसी आम-इंसान की आवाजाही की तो कोई संभावना ही नहीं है. फिर यहां स्निफर डॉग्स के साथ पुलिस की गश्त क्यों? पूछने पर देहरादून जिला पुलिस मुख्यालय प्रवक्ता हेमंत खंडूरी (SI Hemant Khanduri Dehradun Police Spokesperson) कहते हैं, “दरअसल हम लोगों के पास कुछ समय से लोकल इंटलीजेंस इनपुट आ रहा था. जिसमें बताया गया कि इन सूनी खंडहर-इमारतों असामाजिक तत्वों का जमावाड़ा होता है. इनमें अधिकांश संख्या शराब, ड्रग का सेवन और छोटे स्तर पर खरीद-फरोख्त करने वाले शामिल हैं. चूंकि इन सूने-वीरान इलाकों से आम-आदमी का कोई सरोकार नहीं होता है. पुलिस को भी लगता था कि इन वीरान इलाकों-इमारतों में भला कौन और क्यों जाएगा?
खंडहर मकान-इमारतें इसलिए संदिग्ध साबित हुए
देहरादून जिला पुलिस के एलआईयू (Local Intelligence Unit LIU) और एंटी-ड्रग टीमों को भनक लगी कि इन सूने इलाकों को ही अपने बेहतर और सुरक्षित इस्तेमाल की जगह, शराब-ड्रग बेचने-खरीदने व इस्तेमाल करने वालों ने बनाना शुरू कर दिया है. चूंकि यह स्थान निर्जन हैं. इनमें अकेले इंसान का जाना जोखिमपूर्ण भी हो सकता है. लिहाजा ऐसे में एंटी ड्रग अभियान के तहत स्निफर डॉग्स की मदद लेना ही एकमात्र सर्वोत्तम-सुरक्षित उपाय लगा. स्निफर डॉग्स आसानी से दूर से ही इशारा कर देते हैं कि इमारतों में कहां किस कोने में ड्रग की बू आ रही है. वहीं हमारी टीमें पहुंच जाती हैं. जबसे जिला पुलिस ने इस काम में स्निफर डॉग्स की मदद लेनी शुरू की है. तब से इन संभावित गलत और सूने स्थानों पर संदिग्ध प्रवृत्ति के लोगों का आना-जाना भी कम हुआ है.”
यूपी के ये जिले उत्तराखंड के लिए मुसीबत
जिक्र जब ‘ड्रग फ्री देवभूमि’ का हो रहा है, तब स्टेट मिरर हिंदी बताना चाहता है कि, उत्तर प्रदेश के बरेली, पीलीभीत, रामपुर, शाहजहांपुर, मुरादाबाद ऐसे बदनाम जिले हैं, जहां मादक पदार्थों की तस्करी बड़े पैमाने पर होती है. यूपी के इन इलाकों में तैयार ड्रग और यहां मौजूद ड्रग-तस्कर अपना अधिकांश माल, उत्तराखंड के ही सीमांत इलाकों में ले जाकर खपाते-बेचते हैं. यूपी के इन जिलों के ड्रग तस्करों के लिए उत्तराखंड का किच्छा, नैनीताल, रामनगर, हल्द्वानी, बनवसा, टनकपुर (चंपावत जिला नेपाल सीमा पर स्थित), देहरादून सबसे माफिक लगता है. उत्तराखंड की सीमा के करीब मौजूद उत्तर प्रदेश के ड्रग के लिए बदनाम इन्हीं जिलों में कई बार उत्तराखंड राज्य पुलिस ने कई बड़ी रेड भी कीं. और कई बड़े ड्रग तस्करों को भी गिरफ्तार किया है.
'एंटी-ड्रग' अभियान में अपना सिपाही गिरफ्तार
जहां तक मुझे ख्याल आ रहा है तो इस वक्त देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अजय कुमार सिंह ने, उत्तराखंड राज्य पुलिस स्पेशल टास्क फोर्स चीफ रहते हुए जब एंटी ड्रग अभियान में माफियाओं की कमर तोड़ी थी. तब इन्हीं आईपीएस अजय कुमार सिंह ने अपने ही पुलिस महकमे के एक सिपाही को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था. क्योंकि वह सिपाही यूपी के इन ड्रग-माफियाओं के लिए मुखबिरी करता था. जब भी एसटीएफ कहीं किसी ड्रग के अड्डे या ड्रग माफिया पर छापा मारने की तैयारी कर रही होती, तो यही वर्दी का दुश्मन सिपाही ड्रग माफियाओं से मोटी रकम वसूलने की एवज में उन्हें पुलिस टीम रेड की मुखबरी कर देता था.