Chamoli Cloudburst : मलबे के नीचे दबकर हुई कितनी जिंदगियां तबाह, मदद के इंतजार में बेटो संग मां की टूटी सांसे
शुक्रवार दोपहर 1 बजे के बाद जब कांता देवी और उनके बेटों के शव बाहर निकाले गए, तो गांव में चीख-पुकार मच गई. अपनों की लाशें देखकर परिजन टूटकर बिखर गए. राहत और बचाव कैंपों में रह रहे ग्रामीण सुबह-सुबह अपने घरों और अपनों की तलाश में लौटे थे, लेकिन वहां केवल मलबा और खामोशी मिली. गु

उत्तराखंड के चमोली जिले से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसे छोटे से गांव कुंतरी लगा फाली में बीते गुरुवार रात जो तबाही मची, उसने पूरे इलाके को शोक और खामोशी में डुबो दिया. भारी बारिश के बाद हुआ भूस्खलन और अचानक आई बाढ़ इतनी खतरनाक थी कि पूरा गांव मानो धरती में समा गया हो. शुक्रवार को जब NDRF और SDRF की टीमें लगातार 32 घंटे तक मलबा हटाने के बाद राहत-बचाव कार्य कर रही थीं, तब एक दिल दहला देने वाला दृश्य सामने आया. 38 साल की कांता देवी अपने 10 साल के जुड़वां बेटों को दोनों बाहों में कसकर पकड़े हुए मलबे के नीचे दबी मिली.
यह दृश्य देख वहां मौजूद हर किसी की आंखें भर आईं. ऐसा लग रहा था मानो कांता देवी ने अपनी आखिरी सांस तक अपने बच्चों को बचाने की कोशिश की हो. लेकिन प्रकृति के इस प्रचंड प्रकोप के आगे उनका संघर्ष भी काम नहीं आया. इस हादसे में कांता देवी और उनके दोनों बेटों की मौत हो गई. उनके पति कुंवर सिंह को गुरुवार को 16 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद जिंदा निकाला गया था. लेकिन अब उनके पास न घर बचा है और न ही परिवार. उनका पूरा संसार मलबे में तबाह हो चुका है.
पूरे गांव में पसरा मातम
शुक्रवार दोपहर 1 बजे के बाद जब कांता देवी और उनके बेटों के शव बाहर निकाले गए, तो गांव में चीख-पुकार मच गई. अपनों की लाशें देखकर परिजन टूटकर बिखर गए. राहत और बचाव कैंपों में रह रहे ग्रामीण सुबह-सुबह अपने घरों और अपनों की तलाश में लौटे थे, लेकिन वहां केवल मलबा और खामोशी मिली. गुरुवार सुबह आई इस प्राकृतिक आपदा ने कुंतरी लगा फाली के साथ-साथ आसपास के गांवों को भी बुरी तरह प्रभावित किया. नंदानगर से बाजबगड़ जाने वाली सड़क पर चार जगहों पर भूस्खलन और मलबे के ढेर जम गए. छोटे-छोटे नाले और नदियां उफान पर आ गईं, जिनके साथ बहकर आया मलबा सड़कों और घरों को तबाह कर गया.
आसपास के गांवों की भी तबाही की कहानी
कुंतरी से आधा किलोमीटर दूर स्थित कुंतरी लगा सरपाणीं गांव में भी पहाड़ की ऊंची चोटी से आई बाढ़ ने कई मकान निगल लिए. यहां एक घर के मलबे में दबकर पति-पत्नी की जान चली गई. सूबेदार मेजर दिलबर सिंह रावत, जिन्होंने इस हादसे में अपनी पत्नी को खो दिया, रोते हुए बोले- हमारा गांव हमेशा सुरक्षित माना जाता था. चुफलागढ़ नदी तो गांव से काफी नीचे बहती है, हमने कभी सोचा भी नहीं था कि ऊपर से बाढ़ आएगी और इस तरह सब कुछ खत्म कर देगी. मेरी आंखों के सामने मेरी पत्नी मलबे में दब गई और मैं कुछ भी नहीं कर सका.'
संगिता देवी का उजड़ा संसार
गांव की ही संगीता देवी, जो कई साल पहले पति को खो चुकी थीं, अपनी छोटी बेटी के साथ यहां रहती थी. वे पशुपालन और खेती से अपना गुजारा करती थी. इस हादसे में उनका घर और सारी संपत्ति मलबे में दब गई. टूटे दिल से उन्होंने कहा, 'एक रात में सब कुछ खत्म हो गया। अब आगे क्या होगा, यह सोचकर ही डर लगता है.'
आंखों देखी गवाही
नंदानगर की पूर्व प्रधान चंद्रकला सती, जो कुंतरी लगा सरपाणीं गांव के पास रहती हैं, ने बताया, 'बुधवार रात 7 बजे से बारिश शुरू हुई थी. धीरे-धीरे बारिश तेज होती गई और रात 2 बजे अचानक जोरदार धमाकों की आवाजें सुनाई देने लगी. पूरे गांव में लोग नींद से उठकर बाहर भागे. हमें अंदाजा भी नहीं था कि इतनी बड़ी तबाही होने वाली है. सुबह तक कई घर पूरी तरह मलबे में दब चुके थे.' इस आपदा में गांव के नरेंद्र सिंह ने कई लोगों को सचेत करके उनकी जान बचाई. लेकिन अफसोस की बात यह है कि दूसरों को चेतावनी देने वाले नरेंद्र खुद मलबे की चपेट में आ गए और उनकी भी जान चली गई. सेरा गांव के अवतार सिंह गुसाईं ने कहा कि यह त्रासदी कहीं न कहीं अनियोजित विकास और सड़क निर्माण में लापरवाही का नतीजा है. निर्माण कार्य के दौरान मलबे को ठीक से हटाया नहीं गया था, जो बारिश में नदी में बह गया और गांव को तबाह कर गया.
गांव का भविष्य सवालों में
इस हादसे ने न सिर्फ कई लोगों की जान ले ली, बल्कि दर्जनों परिवार बेघर हो गए. टूटी-फूटी सड़कें, मलबे में दबे मकान और उजड़े हुए सपने अब इस इलाके की पहचान बन गए हैं. NDRF और SDRF की टीमें लगातार राहत और बचाव कार्य में लगी हुई हैं. लेकिन ग्रामीणों के सामने अब सबसे बड़ा सवाल है- वे जाएं तो कहां जाएं? जिनके परिवार उजड़ गए, उनके लिए जिंदगी अब पहले जैसी कभी नहीं होगी.